नमस्कार दोस्तो,
स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के नौवें एपिसोड में.. आज हम आपको मिलवाने वाले है एक ऐसी सख्शियत से जिनसे परिचित तो सब है मगर नाम कोई नही जानता.. ब्लॉगर्स की डिमांड पर हम लेके आए है हम सबके प्यारे "अनोनामस जी" को ..जो यहा वहा कही पर भी टिप्पणी देने पहुँच जाते है.. टिप्पणियो में तो कई बार आपकी इनसे मुलाकात हुई होगी.. पर आज पहली बार कॉफी विद कुश के मंच पर हम आपको मिलवाते है खुद अनोनामस जी से..
कुश : नमस्कार अनोनामस जी.. स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में..
अनोनामस जी : शुक्रिया कुश, बहुत अच्छा लगा की हमे भी कोई कॉफी पिलाने वाला है.. हमे तो लगा की आप सिर्फ़ नामदार ब्लॉगरो को ही कॉफी पिलाते है
कुश : नही नही ऐसी बात नही हमारी कॉफी तो सबके लिए है.. बस जो पहले मिल जाए उसी को पकड़ लेते है..
अनोनामस जी : फिर भी आप एक अच्छा कार्य कर रहे है, मुझे खुशी हुई इस तरह का अनूठा प्रयोग देखकर.. मगर आप कुछ ब्लॉगर्स को मत बुलाइएगा वो यहा आने के लायक नही है
कुश : अच्छा? और वे ब्लॉगर कौन है?
अनोनामस जी : इतनी जल्दी सब कुछ बोल दु, बिना कॉफी पिलाए भगाना चाहते है क्या?
कुश : अरे नही नही, आप तो हमारे मेहमान है.. ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
अनोनामस जी : शुक्रिया, वाह बड़ी शानदार कॉफी है ये तो..
कुश : वैसे तो मैं सबसे यही सवाल करता हू की उन्हे कौनसे ब्लॉग पसंद है.. पर मुझे लगता है आपको कोई ब्लॉग पसंद नही तो आप अपनी नापसन्द वाले ब्लॉग बता दीजिए
अनोनामस जी : नही जी, ऐसी बात नही है की मुझे कोई ब्लॉग पसंद नही.. मैं अशोक पांडे जी का कबाड़खाना पढ़ता हू, राजेंद्र त्यागी जी का ओशो चिन्तन मुझे पसंद है.. आलोक पुराणिक जी की अगड़म बगड़म मुझे पसंद है.. राज भाटिया जी का शिकायत वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अमर कुमार जी का बच्चो वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अजीत जी का शब्दो का सफ़र..
कुश : अरे वाह काफ़ी लंबी पसंद है आपकी.. और कौन से ब्लॉग नही पसंद है आपको?
अनोनामस जी : हा हा हा इतनी आसानी से पकड़ में नही आने वाले हम.. हा मगर हमको मैडम जी का ब्लॉग पसंद नही है.. फालतू की बात करती है..
कुश : ये मैडम जी कौन है?
अनोनामस जी : अजी इस अनाम से नाम पूछना चाह रहे है..
कुश : पर आपका कोई नाम तो रखा होगा आपके माँ बाप ने
अनोनामस जी : जी हा रखा तो था पर वो हमने डूबा दिया.. इधर उधर घटिया से घटिया शब्दो में टीपिया टीपिया के.. सो अब लेना उचित नही लगता.. अब तो जब भी अपना नाम लेता हू तो लगता है गाली है..
कुश : ये तो बड़ी विकट समस्या है.. खैर आपके बचपन के बारे में बताइए?
अनोनामस जी : बचपन सारा अनामी में बिता.. अंधेरे में जामुन तोड़ के खाना, चंदा नही देने वाले के घर के दरवाजे पे गालिया लिखना.. लड़कियो के घरो में ब्लॅंक कॉल करना.. यू कह लीजिए अब तक जीवन हमने गुमनामी में ही बिताया है.. और यही आशा करते है की बाकी का भी यू ही बीते..
कुश : ज़रूर हम आशा करते है आपकी गुमनामी यूही बरकरार रहे.. अच्छा एक बात बताइए समीर जी को आपने क्यो कमेंट किया था वो तो सबके चहेते है..
अनोनामस जी : यही तो बात है की वो सबके चहेते है और हमे कोई पूछता ही नही.. बस खुन्नस के मारे कमेंट दे डाला.. पर वो भी बड़े चालक है उन्होने ब्लॉग पर टिप्पणी सक्षम लगा रखा है.. पर उन्होने जब दूसरे दिन हश हश नागराज वाली पोस्ट लिख डाली तो हम शर्म से डूब कर पानी पानी हो गये.. हमे लगा ग़लत आदमी से पंगा ले लिया है..
कुश : तो इसका मतलब आपको टिप्पणी देने के बाद पछतावा भी होता है?
अनोनामस जी : जी हा कभी कभी होता भी है पर क्या करू आदत से लाचार जो हू.. दिल है की मानता ही नही..
कुश : आपने मेरी एक दूसरे ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट पर भी टिपण्णी दी थी?
अनोनामस जी : अजी साहब क्यो शर्मिंदा कर रहे है.. सौ जूते मार लीजिए सर पर, मगर उन बातो को याद मत कीजिए.. जीवन की सबसे बड़ी भूल थी वो, दरअसल कुछ ग़लतफहमी हो गयी थी.. मुझे लगा वो ब्लॉग आपने शुरू किया है..
कुश : अगर मैं शुरू करता भी तो क्या बुरा था इसमे?
अनोनामस जी : अजी क्यो बुरा नही था. वहा पर नारी मुक्ति जैसे विषयो पर बात होनी थी.. इन विषयो पर पहले ही इतने ब्लॉग बने जा चुके है.. मुझे बुरा तब लगता है जब देखता हू की हमारी बहने ही आपस में एक नही है.. दो अलग अलग ब्लॉग बना रखे है.. इधर वाले उधर नही जाते उधर वाले इधर नही आते.. आपस में ही एकता नही है तो फिर क्या कहना..
कुश : अरे मगर ब्लॉग तो स्वतंत्र माध्यम है.. कोई भी जितने चाहे उतने बना सकता है.. आप चाहो तो आप भी बना लो..
अनोनामस जी : हा मगर जब एक जैसे ही विषय हो और एक जैसी ही चर्चा तो दो अलग ब्लॉग क्यो?
कुश : खैर इन सब बातो का फ़ैसला उन्हे ही लेने दीजिए जिनके वो ब्लॉग है.. आप तो ये बताइए की प्रशांत के ब्लॉग में क्या कमी थी जो आप वहा भी टिप्पणी छोड़ आए?
अनोनामस जी : अजी आप कहा कहा से पुरानी पोस्ट उखाड़ उखाड़ के ला रहे है.. वो तो उस दिन यूही लिख दिया था.. मूड ठीक नही था.. बाद में अफ़सोस भी हुआ की क्या पूरे ब्लॉग जगत को सुधारने का ठेका मैने ले रखा है? मगर क्या करू जैसा मैने कहा आदत से लाचार हू..
कुश : आप तो सुनील डोगरा 'जालिम' की ब्लॉग पर भी हंगामा कर आए थे..
अनोनामस जी : अजी उसकी तो बात ही ऐसी थी.. कितना घटिया शीर्षक था उसका..
कुश : मगर ये फ़ैसला करने वाले आप कौन है की शीर्षक कितना घटिया है और अच्छा?
अनोनामस जी : कैसी बाते कर रहे है कुश भाई, उसने वहा क्या लिखा था आपको मालूम है? ये सब पाठक बटोरने वाले काम है सस्ती पब्लिसिटी के सिवा कुछ नही..
कुश : ठीक बात है मगर देखिए उसने ये साबित कर दिया की लोग क्या पढ़ना चाहते है, उसने घटिया शीर्षक लिखा और आप वहा पहुँच गये.. क्यो आपने उसे इग्नोर नही किया.. कीचड़ में पत्थर उछाला जाता है क्या?
अनोनामस जी : अरे लेकिन मुझसे रहा नही गया, शीर्षक ही ऐसा था
कुश : देखा आप लोग ही तो बढ़ावा देते हो पढ़कर पढ़कर.. उस दिन ब्लॉगवानी में वो सबसे ज़्यादा बार पढ़ा गया चिट्ठा था..
अनोनामस जी : लेकिन आपको कैसे पता इसका मतलब आप भी गये थे वहा
कुश : हा बिल्कुल, मैं गया था मगर दूसरे दिन वो भी इतनी टिप्पणिया देखकर और सच मानिए जितनी जल्दी गया था उतनी जल्दी लौट आया..
अनोनामस जी : हा मगर मैं आपकी तरह नही हू.. मैं तो सबकी ********** (कॉफी विद कुश में तरह के शब्दो पर रोक है, इसलिए आपको स्टार नज़र आ रहे है)
कुश : मगर ये सब करने से आपको का लाभ होता है?
अनोनामस जी : आत्म संतुष्टि मिलती है और क्या?
कुश : सिर्फ़ यही कारण तो नही होगा इतना सबकुछ करने का?
अनोनामस जी : ठीक कहा आपने.. दरअसल मैं ये दिखाना चाहता हू की यहा पर कोई भी शरीफ नही है.. दिखने मैं चाहे कैसे भी हो पर हर एक के अंदर एक अनोनामस है यहा पर..
कुश : मैं समझा नही आपकी बात?
अनोनामस जी : देखिए ब्लॉगर बढ़िया रहता है जब तक की उसकी ब्लॉग पर अच्छी टिप्पणिया आती रहे.. मगर जैसे ही किसी ने अनोनामसली उसे कुछ कहा वो भी अशिष्ठता की हदे पर कर देता है.. और खुद भी अपशब्दो पर आ जाता है.. फिर मुझमे और उसमे कोई फ़र्क़ नही रहता.. मैं बस दुनिया को यही दिखाना चाहता हू की अंदर से हर ब्लॉगर अनोनामस है
कुश : तो इसका मतलब की आप कुछ भी लिख दे और सामने वाला जवाब भी ना दे?
अनोनामस जी : अजी ऐसा हमने कब कहा, दे मगर अच्छे शब्दो में.. जैसे आपने दिया था. अजी मुझे तो काटो तो खून नही था.. मैने तो सोचा की आप भी मुझे गालिया दोगे और मैं ये साबित कर दूँगा की आप भी अंदर से वैसे ही हो .. पर आपने मुझे ग़लत साबित कर दिया.. इसीलिए आज यहा आपसे बात कर रहा हू..
कुश : मेरी बात छोड़िए आप उनकी बात करिए जिन्हे आपने बहुत ग़लत कमेंट दिए.. कुछ टिप्पणिया तो बहुत ही व्यक्तिगत थी?
अनोनामस जी : मैं समझ रहा हू आपका इशारा किस तरफ है.. मगर एक बात बताइए वो तो जाकर टिप्पणियो में उल्टा सीधा लिख आते है.. मगर मैं लिखू तो बेईमानी.. ये कैसा इंसाफ़?
कुश : क्या आपको कभी दुख नही होता?
अनोनामस जी : अजी दुख तो तब होता है जब ये मुझसे मेरी पहचान भी छीन लेते है.. और खुद अनोनामसली मुझसे भी ज़्यादा गंदी भाषा में लोगो के यहाँ जाकर टीपिया आते है..
कुश : लेकिन हम कैसे मान ले की ये वही ब्लॉगर है?
अनोनामस जी : अजी भूल गये आई पी एड्रेस से जैसे आपने हमको पकड़ा था.. वो दिल्ली वाले ब्लॉगर जी जो अनोनामसली सबको टीपियाते है सोचते है पकड़े नही जाएँगे.. पर चोर कभी बचा है क्या.. और फिर आप तो खुद वेबसाइट बनाने वाली कंपनी में हो.. आप से यहा कौन छुपा है.. आप तो दो मिनिट में पता लगते हो..जैसे हमे पता लगाया था
कुश : मगर इन सब बातो से आप कहना क्या चाहते है?
अनोनामस जी : अजी मैं कौन होता हू साबित करने वाला.. यहा तो लोग ही एक दूसरे को साबित करने में लगे रहते है.. आपको क्या लगता है मैं अकेला ही अनोनामस हू.. गौर से देखिए कितने ही अनोनामस मिल जाएँगे आपको..
कुश : लेकिन क्यो? ये सब क्यो? कोई शांति से ब्लॉगिंग कर रहा है तो फिर आप उसे क्यो परेशान करते है?
अनोनामस जी : अरे तो शांति से करे अशांति फैलने की क्या ज़रूरत है? कभी कोई दूसरी सीटे से कॉपी करके डाल देता है, कभी कोई मर्दो को गलिया देता है तो कोई औरतो को गलिया देते हुए पोस्ट लिख देता है.. सस्ते प्रचार के लिए लोग उल्टा सीधा करते रहे और मैं कुछ भी ना करू.. इस से तो मैं अपने ज़िम्मेदार ब्लॉगर कर्तव्य से विमुख हो रहा हू..
कुश : लेकिन आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है कोई कुछ भी लिखे, अगर आपको लगता है की उनका लिखा बकवास है तो ना जाए पर अपशब्दो का प्रयोग क्यो? बाकी लोग तो नही जाते
अनोनामस जी : बाकी लोग ना जाए तो ना जाए पर मैं इसे अपना फ़र्ज़ समझता हू..
कुश : लेकिन इसे कौन निर्धारित करेगा की ब्लॉग पर क्या लिखा जाए और क्या नही?
अनोनामस जी : ये मैं कैसे बताऊ? मुझे तो ये पता है की ग़लत लिखोगे तो मैं आ रहा हू..
कुश : आपके आने की ज़रूरत नही.. मेरी राय में पाठक खुद निर्धारित करते है की उन्हे क्या पढ़ना है और क्या नही.. सड़क पर खड़ा होकर कोई गाली बोले तो क्या उत्तर में आप भी उसे गाली बोलते है?
अनोनामस जी : नही
कुश : तो फिर जब यहा कोई कुछ ग़लत लिखे तो आप क्यो बोलते है, पाठक उसे अपने आप बर्खास्त कर देंगे.. जैसा की वो करते आए है..
अनोनामस जी : क्या ऐसा संभव है?
कुश : क्यो नही? क्या आपने हमारे पाठको को इतना बेवकूफ़ समझा है की वो उलझलूल लिखने वालो की ब्लॉग पर कमेंट करते भी होंगे.. और यदि करते भी हो तो वो उनकी पसंद है.. जिसे जो पसंद हो वो वही करे.. हम ब्लॉगर है खुदा नही जो दूसरो की किस्मत बदले.
अनोनामस जी : मगर.......
कुश : मगर क्या?
अनोनामस जी : मगर...., रहने दीजिए कुश भाई मैं अभी कुछ कहने की स्थिति में नही हू, पता नही अचानक मुझे क्या हो गया है.. क्या वाकई मैं ग़लत हू?
कुश : आप ग़लत नही है अनोनामस जी, आपने जो किया वो ब्लॉग जगत की भलाई के लिए किया.. कही कही पर खुन्नस भी थी परंतु वो मनुष्य का स्वाभाव है धीरे धीरे बदलता है.. आपने जो किया वो ग़लत नही किया पर ग़लत तरीके से किया.. सारे विवाद बातचीत से ही हल होते है..
अनोनामस जी : आपने ठीक कहा कुश जी मैं यूही बेवजह लोगो को उल्टे सीधे कमेंट देता था.. और यकीन मानिए मुझे रात को नींद भी नही आती थी.. पता नही मैं क्या से क्या हो गया..
कुश : आप अगर मेरी सलाह माने तो एक बात कहु?
अनोनामस जी : हा कहिए कुश भाई
कुश : आप आज इस मंच पर यहा सभी से माफी माँगे और अपनी ग़लती का प्रायश्चित करे.. मैं जानता हू की हमारा ब्लॉग जगत का परिवार आपको माफ़ करेगा..
अनोनामस जी : मैं आप सभी महानुभावो से अपने किए हुए सभी अभद्र टिप्पणियो के लिए क्षमा चाहता हू.. भूलवश यदि मैने आपको दुख पहुँचाया हो या आपको ठेस पहुँची हो तो मुझे नासमझ मान कर क्षमा करे.. भविष्य में आपको इस प्रकार का कोई अवसर नही दूँगा
कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी, ये मेरे लिए हर्ष की बात है की आज अपने कॉफी विद कुश के मंच पर ब्लॉग जगत के कल्याण के लिए सभी से माफी माँगी.. इसके लिए मैं खड़े होकर आपका अभिवादन करता हू..
अनोनामस जी : कुश भाई इतना प्यार अगर मुझे पहले ही मिल जाता तो शायद मैं कभी अनोनामस बनता ही नही.. आज तो आपने मेरी आँखो में आँसू ला दिए..
कुश : मुझे उमीद है आपके इस निर्णय में ब्लॉगर परिवार के सभी सदस्य साथ होंगे.. मैं सभी से प्रार्थना करता हू की अनोनामस जी की भूल को माफ़ करके हिन्दी ब्लॉग्गिंग को नया आयाम प्रदान करे..
कुश : तो फिर अब चले वन लाइनर राउंड की तरफ?
अनोनामस जी : कुश भाई ये राउंड किसी और दिन कर ले? अभी तो दिल घबरा रहा है की सब लोग मुझे माफ़ करेंगे या नही..
कुश : कोई बात नही अनोनामस जी, ये हम किसी और दिन कर लेंगे.. जाते जाते आप हमारे ब्लॉगर मित्रो से कुछ कहना चाहेंगे?
अनोनामस जी : मैं अपने मित्रो को बस यही कहूँगा की जो भूल मैने की है वो आप कभी मत करे, बहुत आसान है किसी को बुरा बोलना.. मगर मुश्किल है किसी के बारे में दो शब्द प्यार के बोलना.. प्यार से सबके साथ मिलकर रहे बस मेरी यही कामना है..
कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी आप यहा आए और इतनी बढ़िया बातचीत की.. ये हमारी तरफ से आपको एक गिफ्ट हेम्पर..
अनोनामस जी : बहुत बहुत शुक्रिया कुश जी, इतना प्यार और सम्मान देने के लिए शुक्रिया ये इंटरव्यू जीवन भर मेरी यादो से जुड़ा रहेगा..
तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का नौवाँ एपिसोड अनोनामस जी के साथ.. कैसा लगा आपको ज़रूर बताईएएगा.. और ये भी बताईएगा की आपने उन्हे माफ़ किया या नही.. अगले सोमवार हम फिर मिलेंगे हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर से.. तब तक के लिए शुभम!
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27 comments:
:) काल्पनिक है क्या यह ..या सच :)
What a fine idea....!!! Kush ur motive is so kind... U simply Fine man....
Cheers
Rajesh Roshan :)
अजी क्या गजब ढा दिये हैं..
बहुत बढिया साक्षात्कार पढायें हैं आज तो..
दिन अच्छा गुजरेगा.. :)
badhiya.badhai aapko
अनोनामसली मेने तो आज तक आप की गलत टिपण्णी पर भी कुछ नही गलत कहा,फ़िर भी आप लगा तार आते रहे, या यह आप के दिल्ली वाले (वो दिल्ली वाले ब्लॉगर जी जो अनोनामसली सबको टीपियाते है सोचते है पकड़े नही जाएँगे.. पर चोर कभी बचा है क्या..)भाई साहिब तो नही जो नये नये नामो से आते हे, चलिये हमे क्या खुदा इन्हे अक्ल दे,
कुश भाई मजा आ गया पढ कर, धन्यवाद
hahaha...wah kya khayal hain? matlab don ka dilogue thoda badal ke kahe to aisa hi hoga...
kush se bachna mushkil hi nahin...namumkin hain....
कुश जी अनोनिमस जी को भी नहीं छोड़ा आपने.
अनोनिमस जी अगर किसी नाम से टिप्पणी करे तो और अच्छा होगा.
बड़िया प्रस्तुति.
bahut badiya....aap to sudharak bhi ban gaye. vaise ham jaanna chahte the ki anonymous ji ne "Gumnaam" film kitni baar dekhi hai jo itne inspired ho gaye "gumnaam" hone ke liye.
aapke is interview ke liye badhai
Good one kush. really a fine one...
but all the previous one was real is this too? if u can so mail me.
मैं बस दुनिया को यही दिखाना चाहता हू की अंदर से हर ब्लॉगर अनोनामस है
बात एक दम सही कही है आपने...सही और गहरी...लेकिन कभी हमारे ब्लॉग पर आए हुए तो तो शायद हम उन्हें ग़लत सिद्ध कर दिए होते..खैर...बहुत रोचक और जानकारी से भरपूर रही उनसे मुलाकात...क्या ही अच्छा होता यदि वो अपने चेहरे से नकाब उठा देते...नाम बता देते...
कुश जी, आपने हमारा नाम अभी तक काफी पीने वालों की सूची में नहीं डाला और बेक ग्राउंड में भी हमें ही चिपका रखा है...आने वाले ब्लोग्गर अपने इंटरव्यू के दौरान अगर इस बात पर आपत्ति करेंगे तो जवाब कौन देगा आप या मैं बताईये...:))
नीरज
एनॉनिमासाय: नम:!
(शनैश्चर भगवान से कौन भिड़े!):)
आओ मेरे अनोनामस, गले लग जाओ!!! कितने प्यारे हो तुम..हाय!!
--बहुत खूब, कुश!! सही तरीका है. बधाई.
आप को इतना प्रवचन नही देना चाहेये स्त्री लेखन के ऊपर .ये एक काल्पनिक इंटरव्यू हैं पर सीमा मे हो तो सही हैं वरना
काफ़ी, काफ़ी पिला दी बेनामी को , सारी तो नही खत्म कर डाली जी :)
अब मै कनफुसिया गया हूँ असली कौन है वो जिनका इंटरव्यू लिया है या वो जो अभी आपको धमका कर गया है ?गयी है ?यूँ के i.P एड्रेस नाम की चीज़ कह रहे थे आप कुछ ?अब इनके चक्कर में हमें पूरा इंटरव्यू ठीक से पढ़ना पढ़ा ,वरना हम एक दो टिप्पणिया मिला कर फ़िर टिपियाने वाले थे ....खैर नीरज जी की शिकायत वाजिब है ....एक ठो उनका भी नाम ठोक डाले कील से दीवार पर फोटुवा लगा के .......इधर ससुरे आप कुछ बदमाश हो गये है लोगो के नाम से अलत सलत पोस्ट भी डाल रहे है ....इस टिपण्णी को अब हम बाद में पूरा करेंगे .....देखे की आप i P एड्रेस बतलाते है की नही .....क्या हम भी anonimous hi टिपिया दे ?
ye kya chakkar hai bhai....apne hi interview par anonimous ji kaalpnik kahkar tippani kar gaye...
वाह कुश भाई वाह
क्या जबरदस्त साक्षात्कार लिया आपने.
पढ़ कर आनंद आ गया.
और अज्ञात महोदय के बारे में कई गलतफहमियां भी दूर हो गई.
आपको आभार इसे प्रस्तुत करने के लिए.
चलिये...
एक नई शुरुआत हुई..
सभी खुश रहेँ..
पर ये भी असँभव है.
मनुष्य का मन ,
बुध्धि और व्यवहार
एक साँचे मेँ कभी ढल न पाया है
ना आगे ऐसा होगा.
नहीँ तो कोई मुहम्मद,
कोई ईसा कोई मूसा
तो कोई गालिब या
गाँधी क्यूँ बनता ?
दुनिया ऐसे ही चले ..
ईश्वर , अल्ल्ला तेरे नाम,
सबको सम्मति देँ उपरवाला"
- लावण्या
कुश ने हॉस्ट और एनॉनिमस दोनों के पात्र बखूबी निभाए..सच है कि मानव की प्रकृति अनॉनिमस के रूप में हम सब के अन्दर कई रूपों में रहती है. माफ करने या न करने का सवाल ही नही उठता क्योंकि हम सभी गलतियों के पुतले हैं..अभी अभी अनुरागजी के ब्लॉग पर भी यही पढ़ कर आ रहे हैं.
.
अरे, यहाँ तो 'अचपन पचपन बचपन ' मौज़ूद है । चलो भाई नाम वालों को न सही बेनाम को तो पसंद आया ।
वैसे..कुश भाई आपने डबल रोल बख़ूबी निभाया है ! गठी हुई स्क्रिप्ट, सधे संयत संवाद..बड़े आत्मनियंत्रण का काम है !
बहुत बढ़िया लिखा है।
घुघूती बासूती
बढ़िया
कौन हैं गुमनाम अली , असली है या नकली इसकी फिक्र नहीं थी हमे। जब इस नायाब थीम पर कॉफी पिलाने की बात चली तो डर था कि हास्य तत्व हावी न हो जाए । शुक्र है कि आप निभा ले गए और इसके वैचारिक पक्ष को बखूबी उभारा।
शुक्रिया। बधाई
sach..itna confusing kaise hai ye sab kuch..kush bhai ,superb kaam kar rahe hai aap kintu
Jai ho !
बहुत खूब! अति रचनात्मक! अनोखा इंटरव्यू रहा यह तो. बधाई!
bahut sahi dimaag lagaye ho...bahut khoob
मैं बस दुनिया को यही दिखाना चाहता हू की अंदर से हर ब्लॉगर अनोनामस है
बात एक दम सही कही है आपने...
वाह कुश भाई वाह!!!!
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