कॉफी विद कुश का नया एपिसोड

नमस्कार दोस्तो..

एक बार फिर हाज़िर है हम कॉफी विद कुशमें एक और ब्लॉगर के साथ.. जी हा दोस्तो इस बार हम आपको मिलवा रहे है.. 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार, कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा जी से.. तो बस आप लोग भी कॉफी हाथ में लेकर बैठ जाइए.. और लुत्फ़ लीजिए इस मज़ेदार इंटरव्यू का..

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कॉफी विद कुश में मिलिए शिव कुमार मिश्रा जी से

नमस्कार दोस्तो..

एक बार फिर हाज़िर है हम कॉफी विद कुशमें एक और ब्लॉगर के साथ.. जी हा दोस्तो इस बार हम आपको मिलवा रहे है.. 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार, कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा जी से.. तो बस आप लोग भी कॉफी हाथ में लेकर बैठ जाइए.. और लुत्फ़ लीजिए इस मज़ेदार इंटरव्यू का.. तो आपका ज़्यादा वक़्त ना लेते हुए.. मैं बुलाता हू श्री शिव कुमार जी को..



कुश : नमस्कार मिश्रा जी स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में.. कैसा लगा आपको यहा आकर?
शिव जी: धन्यवाद कुश. बहुत बढ़िया लग रहा है. कितने दिनों की साध आज जाकर मिटी. असल में जब भी दूसरों को तुम्हारी काफ़ी पीकर मस्त होते देखा, यही बात मन में आती थी कि पता नहीं कब पीने का मौका मिलेगा? और देखो कि आज तुमने बुला ही लिया. बहुत खुश हूँ. जल्दी से काफ़ी मंगाओ.

कुश : जी बिल्कुल! ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
शिव जी : वाह लाजवाब.. वाकई मज़ा आ गया..

कुश : सबसे पहले तो ये बताइए की ब्लॉगिंग में कैसे आना हुआ आपका?
शिव जी : ये तो मज़बूरी की वजह से हुआ. हम कहीं जा नहीं पाते. हम केवल आने के आदी हैं. लिहाजा ब्लॉग-जगत में आना लगा रहता था. ज्ञान भइया ने ब्लॉग बनाया था और हम वहां टिप्पणी करने आते थे. फिर एक दिन उन्होंने कहा कि ब्लागिंग में आ जाओ. मैंने सोचा टिप्पणी करने आते ही हैं. ब्लागिंग करने भी आ जाते हैं.

कुश : पांडे जी के साथ साझा ब्लॉग बनाने की ज़रूरत क्यो महसूस हुई?
शिव जी: साझा ब्लॉग बनाने की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि मुझे कुछ पता ही नहीं था ब्लागिंग के बारे में. ज्ञान भइया को तब तक कुछ-कुछ पता हो गया था. उन्हें लगा कि वे भी साथ रहेंगे तो टेक्निकल बातें बता सकेंगे. फोटो लगाना, पोस्ट सजाना वगैरह मैं नहीं कर पाटा था.
वैसे एक और बात है. हमदोनों हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास में अमर होना चाहते थे. हमें इस बात की ललक थी कि हमारा ब्लाग इतिहास में हिन्दी के प्रथम साझा (मतलब दो लोगों का) ब्लॉग के रूप में दर्ज हो.

कुश : अगर आपको एक और जोड़ी ब्लॉग बनाने का मौका मिले तो किसके साथ बनाएँगे?
शिव जी : नीरज भइया (नीरज गोस्वामी जी) के साथ.

कुश : बचपन के बारे में तो हमने सबसे सवाल किए है.. ये बताइए आपका बचपन कायस गुज़रा?
शिव जी : गुजरा कहाँ? वो तो हमने गुजार लिया. गुल्ली-डंडा, हॉकी और क्रिकेट वगैरह खेलकर और थोड़ी पढाई करके. हमें बचपन गुजारने का बड़ा शौक था. जब छोटे थे तो हमेशा यही सोचते कि कब बड़े होंगे? उस समय इस बात का रोना है. अब इस बात का रोना है कि कभी छोटे नहीं हो सकेंगे. इंसान का जीवन रोने के लिए ही बना है.

कुश : आप सारी शराराते अपनी ब्लॉग पर ही करते है या बचपन में भी करते थे?
शिव जी : लोगों ने हमें शरारती नहीं समझा कभी.. हमारे ऊपर अच्छे बच्चे होने की तोहमत लगा दी. वैसे शरारतों के नाम पर हम लोगों के बगीचे से आम तोड़ लेते थे.. कभी-कभी किसी के घर पर चढ़ी हुई ककड़ी की बेल पर बैठी ककड़ी तोड़ लाते थे.. गाँव में रहने वाला बच्चा शरारतों के मामले में बड़ा गरीब होता है. हाँ, कभी-कभी किसी से मार-पीट कर लेते थे..
क्रिकेट भी खेलते थे तो गाँव के मैदान में. मैदान में इतनी जगह कि गेंद भी खुश रहती थी. बड़ा पछतावा होता है कि बचपन में क्रिकेट खेलकर किसी के घर की खिड़की का शीशा नहीं तोड़ सके..

कुश : बचपन में किस बात से डर लगता था?
शिव जी : अंधेरे से.. गाँव का मकान ऐसा था कि द्वार और घर के आँगन के बीच एक बड़ा सा हाल था. शाम होने के बाद जब भी उससे गुजरते थे तो डर लगता था.

कुश : आपके छोटे भाई साहब ने स्वेटर के बारे में प्रश्न पूछने को कहा है? ज़रा बताइए उस बारे में..
शिव जी : मेरा छोटा भाई दार्जिलिंग गया था. वहां से मेरे लिए एक स्वेटर ले आया था. मुझे देते हुए बोला; "किसी ख़ास दिन पहनना इसे." स्वेटर बहुत पसंद था मुझे. जिस दिन मैं अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने घर से सुबह-सुबह निकला, उसदिन मैंने वो स्वेटर पहन लिया.
जब मैं अपनी शादी के बारे में उसे बता रहा था तो मुझे लग रहा था कि शादी के बात सुनकर वो भौचक्का रह जायेगा. लेकिन मेरी बात सुनकर हंसने लगा और बोला; "मुझे मालूम है. तुमने मेरा दिया हुआ स्वेटर पहना उसी दिन मुझे पता चल गया था." उसकी ये बात मैं कभी नहीं भूलता..

कुश : दोस्तो की नज़र में शिव कुमार मिश्रा कैसे है?
शिव जी: मैं दोस्तों से पूछने का रिस्क नहीं उठाता. कभी नहीं पूछता कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि सबकुछ ढंका-तुपा रहता है. गलतफहमी दोनों की नहीं टूटती. न दोस्तों की और न मेरी.

कुश : दुर्योधन की डायरी के बारे में बताइए?
शिव जी : एक दिन आफिस में बैठे हमलोग एक रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करने के बारे में सोच रहे थे. जिस तरह से रीयल इस्टेट के दाम बढे हैं, उसके बारे में चर्चा करते हुए मैंने कहा; "दुर्योधन ने पांडवों के पाँच गाँव देने की मांग शायद इसलिए ठुकरा दी थी कि इन पाँच गावों में एक गुडगाँव भी था." मेरी इस बात विक्रम और सुदर्शन खूब हँसे. ये कोई चार बजे की बात होगी. और मैंने उसी दिन करीब एक घंटे बाद पहली बार दुर्योधन की डायरी - पेज ३३५० लिखा. उसके बाद लिखते गए.

कुश : दुर्योधन के अलावा और भी किसी की डायरी है आपके पास?
शिव जी : नहीं, डायरी तो नहीं है. हाँ एक दिन मैंने ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की डायरी के कुछ पेज जरूर पढ़ लिए थे. उसमें जो कुछ पढने को मिला था उसे मैंने अपनी एक पोस्ट में छापा था.

कुश : हाल ही में आपको मिली जेंटल मैन की उपाधि के बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : क्या कहें, कुश? मानव शरीर धारण किया है तो उपाधियों से बच पाना मुश्किल काम है. वैसे भी मेरा जेंटलमैनत्व को प्राप्त होना अनूप भइया को नहीं सोहाया और उन्होंने अपनी कानपुरी व्याख्या से साबित कर दिया कि जेंटलमैनी एक छलावा है. नतीजा ये हुआ कि जेंटलमैनी एक दिन में ही टें बोल गयी.

कुश : आपकी पोस्ट का एक किरदार 'सुदामा' बहुत लोक प्रिय हुआ.. उसके बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : बड़े बेचारे किस्म के इंसान थे सुदामा जी. लेकिन जब से उन्होंने गुरुदेव का सिलिंडर ब्लैक किया है, वे मानवीय समर्थता की अद्भुत ऊंचाई पर पहुँच गए हैं. अब तो क्लर्क से लेकर पत्रकार और पीएच डी के स्टुडेंट तक बन जाते हैं. ठीक उसी सहजता से जैसे हिन्दी फिल्मों का हीरो कुछ भी बन सकता है. सुदामा अब बहुत आगे निकल चुके हैं. फरीदाबाद तक.

कुश : राजेश रोशन जी के ब्लॉग पर एक जुमला लिखा था.. उस पर आपने एक पोस्ट भी लिखी, उस बारे में बताइए?
शिव जी : अब पोस्ट लिख ही दी तो और क्या नया बताऊँ, कुश? वैसे मेरा मानना है कि किसी को छोटा कह देना उचित नहीं है. और अगर आप उस उस इंसान के बारे में केवल उसके लेखन से जानते हैं तो कोई भी जजमेंट पास करना अच्छी बात नहीं. खैर, मुझे अब राजेश रोशन जी से शिकायत नहीं है. उनका सेंस ऑफ़ जजमेंट शायद उन्हें यही करने को कहता है.

कुश : क्या ये सच है की बाल किशन जी जब भी आपके पास आते है.. आपको कोई नया टॉपिक मिल जाता है?
शिव जी : नहीं ये सच नहीं है. सच तो ये है कि जब भी मेरे पास कोई टॉपिक नहीं होता तो मैं उन्हें अपने ऑफिस बुला लेता हूँ.

कुश : आपने एक पोस्ट लिखी थी की कुछ ब्लॉगरो ने अपनी प्रोफाइल में दर्शन शास्त्र का प्रयोग किया है.. क्या आप इसे ग़लत समझते है?
शिव जी : मैंने ग़लत नहीं समझा. वो तो लालमुकुंद जी ने ग़लत समझा था. मैंने तो केवल उनकी आपत्ति पर पोस्ट लिखी थी.

कुश : अब तक आप कितने ब्लॉगर्स से व्यक्तिगत रूप से मिल चुके है? क्या खास लगा आपको उनमे?
शिव जी : अभी तक मैं प्रत्यक्षा जी से, प्रियंकर भइया से, बालकिशन से, ज्ञान भइया से और मीत साहब से मिला हूँ. सभी 'जेंटलमैन' हैं. इनलोगों में सबकुछ ख़ास ही है. अगर ख़ास नहीं होता तो ये लोग ब्लॉगर कैसे बनते?

कुश : क्या आपको लगता है की ब्लॉगर्स को इस तरह से मिलते रहना चाहिए?
शिव जी : हाँ.

कुश : आप अधिकतर व्यंग्य ही लिखते है, कितना मुश्किल होता है व्यंग्य लिखना?
शिव जी : जरा भी मुश्किल नहीं है. व्यंग तो बहुत सस्ते में मिल जाता है. वैसे, इसका मतलब ये मत समझना कि मैं किसी को कम पैसे देकर व्यंग लिखवा लेता हूँ. इसका केवल इतना मतलब है कि व्यंग बिखरा पड़ा है. जहाँ देखो, व्यंग ही व्यंग है.

कुश : ब्लॉगर्स में किसके व्यंग्य आप ज़्यादा पढ़ते है?
शिव जी : अनूप शुक्ल जी, आलोक पुराणिक जी, पल्लवी जी और नीरज बधवार के. मुझे एक बात अच्छी नहीं लगती कि काकेश जी आजकल नहीं लिखते.

कुश : अधिकांश ब्लॉगरो को आपसे टिप्पणी ना मिलने की शिकायत रहती है?
शिव जी : नहीं. किसी ने मुझसे शिकायत नहीं की. एक दिन एक ब्लॉगर बता रहे थे कि अच्छा है जो आप मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करते. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि एक पोस्ट पर आपने सबसे पहली टिप्पणी की थी. नतीजा ये हुआ कि उसपर और कोई टिप्पणी नहीं आई.

कुश : ब्लॉगिंग में आपके लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है?
शिव जी : ब्लागिंग के टेक्निकल आस्पेक्ट की जानकारी. करीब एक साल तीन महीने बाद पिछले महीने ही मैंने लिंक लगाना सीखा.

कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत की क्या खास बात लगी आपको?
शिव जी : यही कि इस जगत में सब हिन्दी में लिखते हैं और हिन्दी में पढ़ते हैं.

कुश : ब्लॉग पर कुछ लिखते समय आप क्या ध्यान में रखते है?
शिव जी: टिप्पणियां. पिछली पोस्ट में जितनी मिली थीं, उतनी मिलेंगी तो? हे भगवान एक ज्यादा दिला देना.

कुश : किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करना कितना ज़रूरी है?
शिव जी : हम अभी पाठक ढूंढ रहे हैं. दूसरी बात ये कि अभी शुरुआती दौर में है हिन्दी ब्लागिंग. बहुत सारे लोगों को इसके टेक्निकल आस्पेक्ट्स नहीं मालूम हैं. ज्यादातर लोगों के पास जानकारी नहीं रहती कि उनके ब्लॉग पर कौन लोग आए. ऐसे में अगर टिप्पणियां मिल जाएँ तो लिखने वाले को थोड़ी राहत मिलती है कि लोग उसका लिखा हुआ पढ़ रहे हैं.
नए आए लोगों का हौसला बढ़ाना बहुत ज़रूरी है. और कुछ पढने के बाद अगर अच्छा लगा तो क्या अच्छा लगा, ये बता देना एक अच्छा काम है.

कुश : आजकल आपके नाम पर बहुत चिट्ठिया भी आ रही है?
शिव जी : लोग चिट्ठी लिखना भूल गए थे. मुझे चिट्ठी लिखकर लोग चिट्ठी लिखने की नेट प्रैक्टिस कर रहे हैं. वैसे, मैंने अगर जवाब देने का मन बना लिया तो थोड़ी प्रैक्टिस मेरी भी हो जायेगी.

कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा देखते है आप?
शिव जी : भविष्य तो उज्जवल ही दिखाई देता है. हमें अपनी भाषा में कुछ कहने का मौका मिल रहा है. हम कोशिश करके अच्छा लिखें तो मामला आगे बढेगा. हाँ, ये बात ज़रूर है कि लिखनेवाले और पढने वाले, दोनों मेच्योर्ड हो जाएँ तो बहस वगैरह चलाने का औचित्य रहेगा. अगर तीन-चार लोग जो एक-दूसरे को जानते हैं, बहस चलायें तो ऐसी बहस का कोई ख़ास मतलब नहीं है. हाँ, अगर पाठकों की संख्या बढ़े. बहस में भाग लेने वालों की मेच्योरिटी बढ़े तो बहस चलने का मतलब बनेगा.

चलिए अब चलते है हमारे अगले राउंड की तरफ और देखते है की पाठको ने आपसे क्या सवाल किए है..

कुश : ब्‍लॉगजगत में इन दिनों उनकी सज्‍जनता की चर्चा खूब है। वे खुद से भी अधिक सज्‍जन किन्‍हीं को मानते हैं क्‍या, यदि हां तो किन्‍हें - अशोक पाण्डेय जी
शिव जी : अशोक पाण्डेय जी को. जिस देश में कई देश होने के दावे किए जा रहे हैं, और ये बताया जा रहा है कि इंडिया अलग है और भारत अलग. साथ में ये भी बताया जा रहा है कि इन्टरनेट जैसे हथियार इंडिया के हाथ में हैं. अब अगर अशोक जी ऐसे हथियार का इस्तेमाल करके 'भारत' की समस्याओं को उठा रहे हैं तो उनसे बड़ा सज्जन और कौन हो सकता है?

कुश : सिर्फ ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में ही लिखना क्यों पसंद करते हैं। क्यों सिर्फ कुछ ही ब्लॉगर्स के बारे में लिखते हैं। कुछ अलग क्यों नहीं और अकेले अकेले क्यों मीट ऑर्गनाइज करते हैं? - नीतीश राज जी
शिव जी : नहीं-नहीं नीतीश जी, ऐसी बात नहीं है. मैं ब्लागर्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखता. मैं ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में भी लिखना पसंद नहीं करता. जहाँ तक कुछ अलग लिखने की बात है तो मैं आजतक यही समझता था कि मैंने बहुत सारे विषयों पर लिखा है. खासकर हर समसामयिक मुद्दे पर. लेकिन मेरी इस गलतफहमी को नीतीश भाई ने तोड़ दिया. ग़लतफहमी टूटनी ही चाहिए. एक बार फिर से सोचने की जरूरत है.

कुश : शिव भाई, आपके शहर कलकता की सबसे प्रिय बात क्या लगती है आपको ? - लावण्या जी
शिव जी : बहुत कठिन सवाल है लावण्या जी. मुझे पूरा शहर अच्छा लगता है. सबसे प्रिय एक बात जो है वो है यहाँ के लोगों का संस्कृति के प्रति प्यार.

कुश : शिव बाबू यह बतायें कि ब्लॉगर्स के संबंध में ऐसा कौन सा प्रश्न उनसे पूछा जा सकता है जिसका जबाब देने में उनके पसीने छूट जायेंगे और उसका जबाब वो क्या देंगे? - समीर लाल जी
शिव जी : सवाल है, "ये बेनामी टिप्पणी तो तुम्हारे आई पी एड्रेस से मिली है. तुम अब भी कहोगे कि तुम बेनामी कमेन्ट नहीं करते?" जवाब होगा; "क्या समीर भाई? मैं आपकी कितनी इज्ज़त करता हूँ. मैं ऐसा लिख सकता हूँ भला? किसी ने मेरा आई पी एड्रेस चोरी कर लिया होगा."

कुश : भद्रपुरुष ने अपनी याददाश्त में पिछली अभद्रता किससे, कब और क्यों की थी"? - बस्तर
शिव जी : ये सवाल तो किसी भद्रपुरुष से है. शायद अगले एपिसोड के किसी ब्लॉगर से. वैसे कौन आ रहा है अगले एपिसोड में, कुश?

कुश : आख़िर ऎसा कौन सा यक्षप्रश्न है.. जो केवल आप पर ही लागू हो रहा है, और तुर्रा यह कि.. पूछा भी न जाये, बिन पूछे रहा भी न जाये - डा. अमर कुमार जी
शिव जी : क्या कह रहे हैं? यक्ष अभी तक है इस भूमंडल पर!

कुश : शिव के साथ व्यंगकार का टैग चिपक लिया है। वह दूर हो सकता है क्या? - ज्ञानदत्त जी
शिव जी : जी भैया, मैं प्रयासरत हू..

कुश : शिवजी, नये ब्लॉगरों को हिट पोस्टें देने के लिए क्या गुरुमंत्र देंगे? उत्तर में गीता का उपदेश नहीं चलेगा। - सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी
शिव जी : हिट पोस्ट से क्या मतलब है सिद्धार्थ जी का? हिट का मतलब ये तो नहीं कि आपने लिखा और लोग आकर उसे अपनी टिप्पणियों से हिट कर गए? टिप्पणियों की हिट से पोस्ट और ब्लॉगर दोनों धरासायी.
वैसे हिट का मतलब अगर सुपरहिट, मेगाहिट है, जैसे फिल्में होती हैं तो मैं यही सोचता हूँ कि कोई गुरुमंत्र नहीं है. कौन से पोस्ट 'हिट' जाए और कौन सी सुपरहिट, कोई नहीं जानता.

चलिए पाठको के सवाल तो बड़े दिलचस्प रहे.. अब चलते है हमारे वन लाइनर राउंड की तरफ.. और इस बार एक वन लाइनर राउंड में आपको एक लाइन में बताना है हमारे ब्लॉगर मित्रो के बारे में..


कुश : समीर जी -
शिव जी : टिप्पणी सम्राट


कुश : पांडे जी -
शिव जी : भइया.


कुश : पंगेबाज -
शिव जी : एक बेहतरीन इंसान.


कुश : बॉल किशन जी-
शिव जी : डिप्टी टिप्पणी सम्राट

कुश : पल्लवी जी
शिव जी : संवेदनशील 'हुकुम'


कुश : अनूप जी :
शिव जी : मौज सम्राट


कुश : और हम, अजी हमारे बारे में भी तो बताइए..
शिव जी : आईडिया सम्राट


अब चलते है हमारे अगले राउंड खुराफाती सवालो की तरफ..

कुश : पुलिस का फ़ोन नंबर 100 क्यो होता है?
शिव जी : इशारा है. मतलब सौ से नीचे? कभी नहीं.


कुश : खिस्यानी बिल्ली खंबा ही क्यो नोचती है?
शिव जी : बिल्ली को हर उस चीज से प्यार नहीं होता जिस चीज से कुत्ते को प्यार होता है. दुश्मनी पुरानी है.


कुश : यदि किसी दिन अंतरिक्ष से एक ऊडन तश्तरी आपके घर पर उतरे तो?
शिव जी : समीर भाई के स्वागत में पलकें बिछा देंगे. साथ में नारा....धन्यभाग हमारे जो समीर भाई पधारे.


कुश : गंजे के सर पर बाल क्यो नही होते?
शिव जी : फिसल कर गिर पड़ते हैं.


कुश : यदि आपको एक ब्लॉग को डिलीट करने का मौका मिले तो किसका ब्लॉग डिलीट करेंगे? और क्यो?
शिव जी : ऐसा सवाल मत करो. मैं एक ब्लॉग का नाम लूँगा तो बाकी के नाराज़ हो जायेंगे कि उनके ब्लॉग का नाम क्यों नहीं लिया? मैं किसी को नाराज़ नहीं करना चाहता.


चलते चलते एक और प्रश्न..
कुश : हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहना चाहेंगे आप?
शिव जी : कुश की काफ़ी पीने आईये. काफ़ी तो अच्छी है ही, कुश की 'मेहमानियत' भी अद्भुत है.


कुश : शुक्रिया शिव जी आपने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया और कॉफी पीने आए.. ये लीजिए हामरी तरफ से एक गिफ्ट हेम्पर.. घर जाकर खोलिएगा.. और अपनी अगली पोस्ट में बताएगा की क्या मिला आपको?
शिव जी : यहीं खोलने दो न यार. क्या कहा? यहाँ नहीं! अच्छा ठीक है. घर ले जाकर खोलूँगा और उसपर एक पोस्ट भी लिखूंगा.

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का एक और एपिसोड एक बेजोड़ प्रतिभा के धनी शिव कुमार मिश्रा जी के साथ.. उमीद है आपको पसंद आया होगा.. अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे.. हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए... 'कीप ब्लॉगिंग'...

जानिए कौन है कॉफी विद कुश के अगले मेहमान

नमस्कार दोस्तो..
इस बार कॉफी विद कुश में हम लेकर आने वाले है एक ऐसा ब्लॉगर जिनसे पूरा ब्लॉग जगत परेशान है.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू.. समीर जी के शब्दो में 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार' कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा की..

तो तैयार रहिए पिछले पंद्रह दिनो के प्रयास से चले आ रहे इस इंटरव्यू के लिए.. सोमवार दिनांक 25 अगस्त को आपके अपने ब्लॉग कॉफी विद कुश पर..

और हाँ देर मत करिए जल्द से जल्द लिख भेजिए आपके सवाल जो आप पूछना चाहते है शिव कुमार मिश्रा जी से..

तब तक के लिए आप आनंद लीजिए एक नये कम्यूनिटी ब्लॉग नेस्बी का..

एक मुलाकात अनोनामस से.. (कॉफी विद कुश)

नमस्कार दोस्तो,
स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के नौवें एपिसोड में.. आज हम आपको मिलवाने वाले है एक ऐसी सख्शियत से जिनसे परिचित तो सब है मगर नाम कोई नही जानता.. ब्लॉगर्स की डिमांड पर हम लेके आए है हम सबके प्यारे "अनोनामस जी" को ..जो यहा वहा कही पर भी टिप्पणी देने पहुँच जाते है.. टिप्पणियो में तो कई बार आपकी इनसे मुलाकात हुई होगी.. पर आज पहली बार कॉफी विद कुश के मंच पर हम आपको मिलवाते है खुद अनोनामस जी से..

कुश : नमस्कार अनोनामस जी.. स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में..
अनोनामस जी : शुक्रिया कुश, बहुत अच्छा लगा की हमे भी कोई कॉफी पिलाने वाला है.. हमे तो लगा की आप सिर्फ़ नामदार ब्लॉगरो को ही कॉफी पिलाते है

कुश : नही नही ऐसी बात नही हमारी कॉफी तो सबके लिए है.. बस जो पहले मिल जाए उसी को पकड़ लेते है..
अनोनामस जी : फिर भी आप एक अच्छा कार्य कर रहे है, मुझे खुशी हुई इस तरह का अनूठा प्रयोग देखकर.. मगर आप कुछ ब्लॉगर्स को मत बुलाइएगा वो यहा आने के लायक नही है

कुश : अच्छा? और वे ब्लॉगर कौन है?
अनोनामस जी : इतनी जल्दी सब कुछ बोल दु, बिना कॉफी पिलाए भगाना चाहते है क्या?

कुश : अरे नही नही, आप तो हमारे मेहमान है.. ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
अनोनामस जी : शुक्रिया, वाह बड़ी शानदार कॉफी है ये तो..

कुश : वैसे तो मैं सबसे यही सवाल करता हू की उन्हे कौनसे ब्लॉग पसंद है.. पर मुझे लगता है आपको कोई ब्लॉग पसंद नही तो आप अपनी नापसन्द वाले ब्लॉग बता दीजिए
अनोनामस जी : नही जी, ऐसी बात नही है की मुझे कोई ब्लॉग पसंद नही.. मैं अशोक पांडे जी का कबाड़खाना पढ़ता हू, राजेंद्र त्यागी जी का ओशो चिन्‍तन मुझे पसंद है.. आलोक पुराणिक जी की अगड़म बगड़म मुझे पसंद है.. राज भाटिया जी का शिकायत वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अमर कुमार जी का बच्चो वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अजीत जी का शब्दो का सफ़र..

कुश : अरे वाह काफ़ी लंबी पसंद है आपकी.. और कौन से ब्लॉग नही पसंद है आपको?
अनोनामस जी : हा हा हा इतनी आसानी से पकड़ में नही आने वाले हम.. हा मगर हमको मैडम जी का ब्लॉग पसंद नही है.. फालतू की बात करती है..

कुश : ये मैडम जी कौन है?
अनोनामस जी : अजी इस अनाम से नाम पूछना चाह रहे है..

कुश : पर आपका कोई नाम तो रखा होगा आपके माँ बाप ने
अनोनामस जी : जी हा रखा तो था पर वो हमने डूबा दिया.. इधर उधर घटिया से घटिया शब्दो में टीपिया टीपिया के.. सो अब लेना उचित नही लगता.. अब तो जब भी अपना नाम लेता हू तो लगता है गाली है..

कुश : ये तो बड़ी विकट समस्या है.. खैर आपके बचपन के बारे में बताइए?
अनोनामस जी : बचपन सारा अनामी में बिता.. अंधेरे में जामुन तोड़ के खाना, चंदा नही देने वाले के घर के दरवाजे पे गालिया लिखना.. लड़कियो के घरो में ब्लॅंक कॉल करना.. यू कह लीजिए अब तक जीवन हमने गुमनामी में ही बिताया है.. और यही आशा करते है की बाकी का भी यू ही बीते..

कुश : ज़रूर हम आशा करते है आपकी गुमनामी यूही बरकरार रहे.. अच्छा एक बात बताइए समीर जी को आपने क्यो कमेंट किया था वो तो सबके चहेते है..
अनोनामस जी : यही तो बात है की वो सबके चहेते है और हमे कोई पूछता ही नही.. बस खुन्नस के मारे कमेंट दे डाला.. पर वो भी बड़े चालक है उन्होने ब्लॉग पर टिप्पणी सक्षम लगा रखा है.. पर उन्होने जब दूसरे दिन हश हश नागराज वाली पोस्ट लिख डाली तो हम शर्म से डूब कर पानी पानी हो गये.. हमे लगा ग़लत आदमी से पंगा ले लिया है..

कुश : तो इसका मतलब आपको टिप्पणी देने के बाद पछतावा भी होता है?
अनोनामस जी : जी हा कभी कभी होता भी है पर क्या करू आदत से लाचार जो हू.. दिल है की मानता ही नही..

कुश : आपने मेरी एक दूसरे ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट पर भी टिपण्णी दी थी?
अनोनामस जी : अजी साहब क्यो शर्मिंदा कर रहे है.. सौ जूते मार लीजिए सर पर, मगर उन बातो को याद मत कीजिए.. जीवन की सबसे बड़ी भूल थी वो, दरअसल कुछ ग़लतफहमी हो गयी थी.. मुझे लगा वो ब्लॉग आपने शुरू किया है..

कुश : अगर मैं शुरू करता भी तो क्या बुरा था इसमे?
अनोनामस जी : अजी क्यो बुरा नही था. वहा पर नारी मुक्ति जैसे विषयो पर बात होनी थी.. इन विषयो पर पहले ही इतने ब्लॉग बने जा चुके है.. मुझे बुरा तब लगता है जब देखता हू की हमारी बहने ही आपस में एक नही है.. दो अलग अलग ब्लॉग बना रखे है.. इधर वाले उधर नही जाते उधर वाले इधर नही आते.. आपस में ही एकता नही है तो फिर क्या कहना..

कुश : अरे मगर ब्लॉग तो स्वतंत्र माध्यम है.. कोई भी जितने चाहे उतने बना सकता है.. आप चाहो तो आप भी बना लो..
अनोनामस जी : हा मगर जब एक जैसे ही विषय हो और एक जैसी ही चर्चा तो दो अलग ब्लॉग क्यो?

कुश : खैर इन सब बातो का फ़ैसला उन्हे ही लेने दीजिए जिनके वो ब्लॉग है.. आप तो ये बताइए की प्रशांत के ब्लॉग में क्या कमी थी जो आप वहा भी टिप्पणी छोड़ आए?
अनोनामस जी : अजी आप कहा कहा से पुरानी पोस्ट उखाड़ उखाड़ के ला रहे है.. वो तो उस दिन यूही लिख दिया था.. मूड ठीक नही था.. बाद में अफ़सोस भी हुआ की क्या पूरे ब्लॉग जगत को सुधारने का ठेका मैने ले रखा है? मगर क्या करू जैसा मैने कहा आदत से लाचार हू..

कुश : आप तो सुनील डोगरा 'जालिम' की ब्लॉग पर भी हंगामा कर आए थे..
अनोनामस जी : अजी उसकी तो बात ही ऐसी थी.. कितना घटिया शीर्षक था उसका..

कुश : मगर ये फ़ैसला करने वाले आप कौन है की शीर्षक कितना घटिया है और अच्छा?
अनोनामस जी : कैसी बाते कर रहे है कुश भाई, उसने वहा क्या लिखा था आपको मालूम है? ये सब पाठक बटोरने वाले काम है सस्ती पब्लिसिटी के सिवा कुछ नही..

कुश : ठीक बात है मगर देखिए उसने ये साबित कर दिया की लोग क्या पढ़ना चाहते है, उसने घटिया शीर्षक लिखा और आप वहा पहुँच गये.. क्यो आपने उसे इग्नोर नही किया.. कीचड़ में पत्थर उछाला जाता है क्या?
अनोनामस जी : अरे लेकिन मुझसे रहा नही गया, शीर्षक ही ऐसा था

कुश : देखा आप लोग ही तो बढ़ावा देते हो पढ़कर पढ़कर.. उस दिन ब्लॉगवानी में वो सबसे ज़्यादा बार पढ़ा गया चिट्ठा था..
अनोनामस जी : लेकिन आपको कैसे पता इसका मतलब आप भी गये थे वहा

कुश : हा बिल्कुल, मैं गया था मगर दूसरे दिन वो भी इतनी टिप्पणिया देखकर और सच मानिए जितनी जल्दी गया था उतनी जल्दी लौट आया..
अनोनामस जी : हा मगर मैं आपकी तरह नही हू.. मैं तो सबकी ********** (कॉफी विद कुश में तरह के शब्दो पर रोक है, इसलिए आपको स्टार नज़र आ रहे है)

कुश : मगर ये सब करने से आपको का लाभ होता है?
अनोनामस जी : आत्म संतुष्टि मिलती है और क्या?

कुश : सिर्फ़ यही कारण तो नही होगा इतना सबकुछ करने का?
अनोनामस जी : ठीक कहा आपने.. दरअसल मैं ये दिखाना चाहता हू की यहा पर कोई भी शरीफ नही है.. दिखने मैं चाहे कैसे भी हो पर हर एक के अंदर एक अनोनामस है यहा पर..

कुश : मैं समझा नही आपकी बात?
अनोनामस जी : देखिए ब्लॉगर बढ़िया रहता है जब तक की उसकी ब्लॉग पर अच्छी टिप्पणिया आती रहे.. मगर जैसे ही किसी ने अनोनामसली उसे कुछ कहा वो भी अशिष्ठता की हदे पर कर देता है.. और खुद भी अपशब्दो पर आ जाता है.. फिर मुझमे और उसमे कोई फ़र्क़ नही रहता.. मैं बस दुनिया को यही दिखाना चाहता हू की अंदर से हर ब्लॉगर अनोनामस है


कुश : तो इसका मतलब की आप कुछ भी लिख दे और सामने वाला जवाब भी ना दे?
अनोनामस जी : अजी ऐसा हमने कब कहा, दे मगर अच्छे शब्दो में.. जैसे आपने दिया था. अजी मुझे तो काटो तो खून नही था.. मैने तो सोचा की आप भी मुझे गालिया दोगे और मैं ये साबित कर दूँगा की आप भी अंदर से वैसे ही हो .. पर आपने मुझे ग़लत साबित कर दिया.. इसीलिए आज यहा आपसे बात कर रहा हू..

कुश : मेरी बात छोड़िए आप उनकी बात करिए जिन्हे आपने बहुत ग़लत कमेंट दिए.. कुछ टिप्पणिया तो बहुत ही व्यक्तिगत थी?
अनोनामस जी : मैं समझ रहा हू आपका इशारा किस तरफ है.. मगर एक बात बताइए वो तो जाकर टिप्पणियो में उल्टा सीधा लिख आते है.. मगर मैं लिखू तो बेईमानी.. ये कैसा इंसाफ़?

कुश : क्या आपको कभी दुख नही होता?
अनोनामस जी : अजी दुख तो तब होता है जब ये मुझसे मेरी पहचान भी छीन लेते है.. और खुद अनोनामसली मुझसे भी ज़्यादा गंदी भाषा में लोगो के यहाँ जाकर टीपिया आते है..

कुश : लेकिन हम कैसे मान ले की ये वही ब्लॉगर है?
अनोनामस जी : अजी भूल गये आई पी एड्रेस से जैसे आपने हमको पकड़ा था.. वो दिल्ली वाले ब्लॉगर जी जो अनोनामसली सबको टीपियाते है सोचते है पकड़े नही जाएँगे.. पर चोर कभी बचा है क्या.. और फिर आप तो खुद वेबसाइट बनाने वाली कंपनी में हो.. आप से यहा कौन छुपा है.. आप तो दो मिनिट में पता लगते हो..जैसे हमे पता लगाया था

कुश : मगर इन सब बातो से आप कहना क्या चाहते है?
अनोनामस जी : अजी मैं कौन होता हू साबित करने वाला.. यहा तो लोग ही एक दूसरे को साबित करने में लगे रहते है.. आपको क्या लगता है मैं अकेला ही अनोनामस हू.. गौर से देखिए कितने ही अनोनामस मिल जाएँगे आपको..

कुश : लेकिन क्यो? ये सब क्यो? कोई शांति से ब्लॉगिंग कर रहा है तो फिर आप उसे क्यो परेशान करते है?
अनोनामस जी : अरे तो शांति से करे अशांति फैलने की क्या ज़रूरत है? कभी कोई दूसरी सीटे से कॉपी करके डाल देता है, कभी कोई मर्दो को गलिया देता है तो कोई औरतो को गलिया देते हुए पोस्ट लिख देता है.. सस्ते प्रचार के लिए लोग उल्टा सीधा करते रहे और मैं कुछ भी ना करू.. इस से तो मैं अपने ज़िम्मेदार ब्लॉगर कर्तव्य से विमुख हो रहा हू..

कुश : लेकिन आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है कोई कुछ भी लिखे, अगर आपको लगता है की उनका लिखा बकवास है तो ना जाए पर अपशब्दो का प्रयोग क्यो? बाकी लोग तो नही जाते
अनोनामस जी : बाकी लोग ना जाए तो ना जाए पर मैं इसे अपना फ़र्ज़ समझता हू..

कुश : लेकिन इसे कौन निर्धारित करेगा की ब्लॉग पर क्या लिखा जाए और क्या नही?
अनोनामस जी : ये मैं कैसे बताऊ? मुझे तो ये पता है की ग़लत लिखोगे तो मैं आ रहा हू..

कुश : आपके आने की ज़रूरत नही.. मेरी राय में पाठक खुद निर्धारित करते है की उन्हे क्या पढ़ना है और क्या नही.. सड़क पर खड़ा होकर कोई गाली बोले तो क्या उत्तर में आप भी उसे गाली बोलते है?
अनोनामस जी : नही

कुश : तो फिर जब यहा कोई कुछ ग़लत लिखे तो आप क्यो बोलते है, पाठक उसे अपने आप बर्खास्त कर देंगे.. जैसा की वो करते आए है..
अनोनामस जी : क्या ऐसा संभव है?

कुश : क्यो नही? क्या आपने हमारे पाठको को इतना बेवकूफ़ समझा है की वो उलझलूल लिखने वालो की ब्लॉग पर कमेंट करते भी होंगे.. और यदि करते भी हो तो वो उनकी पसंद है.. जिसे जो पसंद हो वो वही करे.. हम ब्लॉगर है खुदा नही जो दूसरो की किस्मत बदले.
अनोनामस जी : मगर.......

कुश : मगर क्या?
अनोनामस जी : मगर...., रहने दीजिए कुश भाई मैं अभी कुछ कहने की स्थिति में नही हू, पता नही अचानक मुझे क्या हो गया है.. क्या वाकई मैं ग़लत हू?

कुश : आप ग़लत नही है अनोनामस जी, आपने जो किया वो ब्लॉग जगत की भलाई के लिए किया.. कही कही पर खुन्नस भी थी परंतु वो मनुष्य का स्वाभाव है धीरे धीरे बदलता है.. आपने जो किया वो ग़लत नही किया पर ग़लत तरीके से किया.. सारे विवाद बातचीत से ही हल होते है..
अनोनामस जी : आपने ठीक कहा कुश जी मैं यूही बेवजह लोगो को उल्टे सीधे कमेंट देता था.. और यकीन मानिए मुझे रात को नींद भी नही आती थी.. पता नही मैं क्या से क्या हो गया..

कुश : आप अगर मेरी सलाह माने तो एक बात कहु?
अनोनामस जी : हा कहिए कुश भाई

कुश : आप आज इस मंच पर यहा सभी से माफी माँगे और अपनी ग़लती का प्रायश्चित करे.. मैं जानता हू की हमारा ब्लॉग जगत का परिवार आपको माफ़ करेगा..
अनोनामस जी : मैं आप सभी महानुभावो से अपने किए हुए सभी अभद्र टिप्पणियो के लिए क्षमा चाहता हू.. भूलवश यदि मैने आपको दुख पहुँचाया हो या आपको ठेस पहुँची हो तो मुझे नासमझ मान कर क्षमा करे.. भविष्य में आपको इस प्रकार का कोई अवसर नही दूँगा

कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी, ये मेरे लिए हर्ष की बात है की आज अपने कॉफी विद कुश के मंच पर ब्लॉग जगत के कल्याण के लिए सभी से माफी माँगी.. इसके लिए मैं खड़े होकर आपका अभिवादन करता हू..
अनोनामस जी : कुश भाई इतना प्यार अगर मुझे पहले ही मिल जाता तो शायद मैं कभी अनोनामस बनता ही नही.. आज तो आपने मेरी आँखो में आँसू ला दिए..

कुश : मुझे उमीद है आपके इस निर्णय में ब्लॉगर परिवार के सभी सदस्य साथ होंगे.. मैं सभी से प्रार्थना करता हू की अनोनामस जी की भूल को माफ़ करके हिन्दी ब्लॉग्गिंग को नया आयाम प्रदान करे..

कुश : तो फिर अब चले वन लाइनर राउंड की तरफ?
अनोनामस जी : कुश भाई ये राउंड किसी और दिन कर ले? अभी तो दिल घबरा रहा है की सब लोग मुझे माफ़ करेंगे या नही..

कुश : कोई बात नही अनोनामस जी, ये हम किसी और दिन कर लेंगे.. जाते जाते आप हमारे ब्लॉगर मित्रो से कुछ कहना चाहेंगे?
अनोनामस जी : मैं अपने मित्रो को बस यही कहूँगा की जो भूल मैने की है वो आप कभी मत करे, बहुत आसान है किसी को बुरा बोलना.. मगर मुश्किल है किसी के बारे में दो शब्द प्यार के बोलना.. प्यार से सबके साथ मिलकर रहे बस मेरी यही कामना है..

कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी आप यहा आए और इतनी बढ़िया बातचीत की.. ये हमारी तरफ से आपको एक गिफ्ट हेम्पर..
अनोनामस जी : बहुत बहुत शुक्रिया कुश जी, इतना प्यार और सम्मान देने के लिए शुक्रिया ये इंटरव्यू जीवन भर मेरी यादो से जुड़ा रहेगा..

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का नौवाँ एपिसोड अनोनामस जी के साथ.. कैसा लगा आपको ज़रूर बताईएएगा.. और ये भी बताईएगा की आपने उन्हे माफ़ किया या नही.. अगले सोमवार हम फिर मिलेंगे हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर से.. तब तक के लिए शुभम!

ब्लॉग जगत में पहली बार आ रहे है अनोनामस जी


नमस्कार मित्रो,

कॉफी विद कुश में अब तक आप मिल चुके है ब्लॉग जगत के कई ऐसे जाने माने ब्लॉगरो से जिनके नाम से सभी परिचित है.. मगर ये हमारा सौभाग्य है की पहली बार आ रहे है 'कॉफी विद कुश' के इतिहास में एक ऐसे ब्लॉगर जिनसे परिचित तो सब है मगर नाम कोई नही जानता .. जी हाँ दोस्तो इस सोमवार हम मिलवाने वाले है आपको "यत्र तत्र सर्वत्र" पाए जाने वाले ब्लॉगर "अनोनामस जी" से ..

और हा एक और बात ये अनोनामस जी ब्लॉग जगत के कई राज़ भी खोलने वाले है.. तो बस दिल थाम के बैठ जाइए..

नोट : आप भी पूछ सकते है अनोनामस जी से सवाल..

कॉफी विद कुश.. (आठवाँ एपिसोड) एक नये रूप में..

नमस्कार दोस्तो,

आप सबके स्नेह और आशीर्वाद से एक बार फिर हाज़िर है 'कॉफी विद कुश' एक नयी साज़ सज्जा और नये रूप में..

एक बात की खुशी मुझे और है की इस नये रूप में हमारे मेहमान है अपनी नवीनताओ से परिपूर्ण ग़ज़लो और आलेखो के स्वामी नीरज जी से.. ये कॉफी विद कुश का सौभाग्य है की नीरज जी हमारे साथ आए और कुछ देर रुबरु बैठे.. आप सबका अधिक समय ना लेते हुए.. मैं आमंत्रित करता हू एक कमाल के व्यक्तित्व् के धनी नीरज जी को..


कुश: आइए नीरज जी स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' में
नीरज जी : शुक्रिया कुश, बहुत खुशी हुई यहाँ आकर आख़िर मेरा नंबर भी लग ही गया

कुश: सबसे पहले तो ये बताइए कैसा लगा आपको यहा आकर?
नीरज जी : वैसा ही जैसे शाहरुख़ खान को करण जोहर के सेट पर आ कर लगा था.

कुश: हा हा शुक्रिया, ये बताइए ब्लोगिंग में कैसे आना हुआ आपका?
नीरज जी : शिव कुमार मिश्रा की कृपा से...जब उन्होंने मुझे ब्लॉग्गिंग में घसीटा कोई दस महीने पहले तब तक ब्लॉग किस चिडिया का नाम है पता ही नहीं था.उन्होंने ख़ुद ही ब्लॉग खोल के दिया और फरमान जारी कर दिया की भईया लिखो...हम उस बैल की तरह जिसे कोल्हू में जोत देते हैं चलने लगे....शिव रुकने ही नहीं देते चलाये रखते हैं...अब इस कोल्हू से तेल निकल रहा है या खल ये तो आप भली भांति जानते होंगे...


कुश: हम तो तेल ही कहेंगे, ब्लॉगर्स में किसे पढ़ना पसंद करते है ?
नीरज जी : उन्हें जो मुझे पढ़ना पसंद करते हैं....याने जिनसे अपनी पसंद मिलती है...अब नाम ना पूछना भाई, बहुत सारे हैं..और जिनको मैं पढता हूँ वो बखूबी मुझे जानते हैं..


कुश : प्राण साहब के बारे में क्या कहेंगे
नीरज जी : प्राण साहेब मेरे गुरु हैं...शायरी के पुराने उस्ताद हैं और बहुत बड़े मददगार हैं...मेरी बेवकूफी से भरी बातों पर भी गुस्सा नहीं करते...मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है.

कुश : बढ़िया! लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
नीरज जी : चीनी कुछ कम है, क्या है की हम खड़े चम्मच की काफी पीते हैं...चमचे मैं देख रहा हूँ आप रखते ही नहीं अपने पास.

कुश: हा हा आप बड़े शरारती है, अब ज़्यादा है या बचपन में भी थे ?
नीरज जी : अब की और बचपन की शरारत में कोई फर्क नहीं आया है...पत्नी(अरुणा)कहती है क्या तुम मिष्टी जैसी शरारतें करते हो...स्कूल टाइम से ही अध्यापकों की हुबहू नक़ल उतर कर सबको हँसाना परम धर्म हुआ करता था...कालेज में भी इसी क्रिया के चलते बहुत वाहवाही मिली....प्रिंसिपल की नक़ल उतारी अस्सेम्बली में और तीन दिन क्लास के बाहर खड़े रहना पढ़ा...शरारतों का सारा कोटा कालेज में पूरा किया बाद में जो बच गया उसे विरासत के तौर पर अपने दोनों बेटों में बाँट दिया.

कुश: कैसे स्टूडेंट थे आप ?
नीरज जी : मध्यम मार्गी...न कभी माउन्ट एवरेस्ट चढा और ना पाताल की गहराई नापी...बस सतह पर ही रहा...समझे ना आप???

कुश: स्कूल में शरारत नही कर पाते थे आप?
नीरज जी : नहीं...मौका नहीं मिला क्यूँ की पापा उसी स्कूल में प्राध्यापक थे...उनके साथ ही साईकिल पर पीछे बैठ कर स्कूल जाता था...एक बार उनकी क्लास में बैठ कर इंद्रजाल कामिक्स पढ़ रहा था उन्होंने देख लिया और सारे क्लास के सामने चपत जड़ दी...जो शायद उनकी पहली और आखरी चपत थी क्यूँ की उसके बाद मैंने ऐसा मौका ही नहीं दिया उनको.

कुश: फिर तो आप समीर जी की तरह क्लास बंक करने से भी वंचित रहे होंगे?
नीरज जी : जी नही क्लास बंक करने के सारे सपने कालेज में पूरे किए. मालवीय कालेज से साईकिल पर बैठ कर पोलोविक्ट्री सिनेमा तक जो करीब आठ की.मी, था,सिनेमा देखने जाते और वापस लौट आते. सिनेमा नहीं तो कालेज के पीछे की पहाडी पर घूमना बहुत पसंद था. ये समझिये की क्लास बंक ज्यादा की और अटेंड कम की.

कुश: सिनेमा देखना बहुत पसंद था आपको ?
नीरज जी : जी हा बहुत ... सिनेमा देखना बचपन से ही बहुत पसंद था और अभी भी है...मौका मिलते ही नयी फ़िल्म देखना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ. घर पर फिल्मों की भरी पूरी लाइब्रेरी है...
कोई आठ साल का रहा होऊंगा जब एक दिन मम्मी और मेरी बुआ करवा चौथ के दिन दोपहर का शो देखने रिक्शा पर सिनेमा घर गयीं और मैं छुप छुप के उनका पीछा करता पहुँच गया...मुझे देख कर वो हैरान हो गयीं...झक मार कर मुझे भी फ़िल्म दिखाई...फ़िल्म थी. "दिया और तूफ़ान"


कुश : हा हा हा !! सुना है एक ही दिन में दो दो फिल्म देखने का भी रिकॉर्ड बनाया है आपने?
नीरज जी : जी हाँ कालेज से भाग कर शायद "राम और श्याम" और "फ़र्ज़" दोनों एक ही दिन एक के बाद एक शो में देखीं.फिल्मों का भारी शौक हुआ करता था ,शौक तो अभी भी है लेकिन कालेज से भाग कर फ़िल्म देखने में जो आनंद आया करता था वो अब नहीं आता.


कुश : ब्लॉग जगत के राम और श्याम किसे कहेंगे आप?
नीरज जी :ज्ञान भईया और शिव कुमार मिश्रा को...जहाँ ज्ञान भईया धीर गंभीर हैं वहीँ शिव मनमौजी हैं..


कुश: बचपन में किसी बात से डरते भी थे आप ?
नीरज जी : गणित के होम वर्क से....राक्षस से भिड़ना मंजूर था लेकिन गणित के सवाल से सिट्टी पिट्टी गम हो जाती थी...बाद में गणित के करण ही इंजीनियरिंग में प्रवेश मिला...प्रभु की लीला अपरम्पार है...जिससे डरो वो ही पार लगाती है.

कुश: कहते है गुलाबी नगरी वाले बड़े दिलवाले होते है आपका दिल पहली बार किस पर आया था ?
नीरज जी : पहली और आखरी बार जिस पर दिल आया वो "अरुणा", अब मेरी पत्नी है, दूर दृष्टि कमजोर होने के करण पड़ोस की लड़की पर दिल आया....दोनों घरों के बीच सिर्फ़ चार फुट ऊंची दीवार ही है....हम दोनों जब कक्षा सात में थे तब से एक दूसरे के पड़ोस में रहने आए...एक साथ खेले, बड़े हुए, पढ़े और अब जीवन साथी हैं...

कुश : वाह कितनी प्यारी बात है, ये बताइए आपके पुराने शहर और हमारे वर्तमान शहर 'जयपुर' के बारे में क्या कहेंगे आप?
नीरज जी : पुराना शहर जैसे "मधुबाला" और नया जैसे "ऐश्वर्या..."


कुश: बहुत खूब! ये बताइए लिखने का शौक कब से हुआ?
नीरज जी : पिछले दो साल से...इससे पहले कालेज में छोटे मोटे हास्य नाटक लिखे, मंचित किए, खूब चर्चित हुए...एक आध तुकबन्दियाँ भी की...लेकिन..लिखना अभी शुरू किया.


कुश: आप जिस पोस्ट पर हैं उस में इन सब कामों के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं? नीरज जी : जहाँ चाह वहां राह...अपनी रुचियों को कभी मरने नहीं देना चाहिए....रही बात समय की तो अगर आप के पास अपनी एक टीम है जिसे आप ने काम करने की पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी है, तो फ़िर आप के पास करने को कुछ नहीं रह जाता सिवाय ब्लॉग्गिंग करने के.


कुश: तो ब्लॉग्गिंग से आप को क्या लाभ हुआ?
नीरज जी : पूछिए मत...सबसे बड़ा लाभ तो ये की एक गुमनाम व्यक्ति को इस लायक बनाया की उसका इंटरव्यू आप द्वारा लिया जाए.....ब्लॉग्गिंग से मुझे बहुत ही विलक्षण लोगों के संपर्क में आने और उन्हें पढने का मौका मिला...मुझे लगता है की अगर मैं उनके संपर्क में ना आता तो शायद जीवन में बहुत कमी रह जाती. अनजान व्यक्तियों ने ना मुझे अपनाया बल्कि इतना प्यार दिया की उस से हमेशा अभिभूत रहता हूँ.


कुश : आपके ब्लॉग की सबसे पॉपुलर पोस्ट 'खोपोली' के बारे में बताइए?
नीरज जी : नौकरी के सिलसिले में पाँच साल पहले यहाँ आया. खोपोली एक छोटी सी खूबसूरत जगह है जिसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है...मुझे लगा की प्रसिद्द जगहों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन एक अनजान जगह जो इतनी खूबसूरत है लोगों की नज़रों से बची हुई है... इसीलिए ये श्रृंखला शुरू की थी...सबने रूचि तो दिखाई लेकिन आया कोई नहीं...मुझे इस बात का दुःख है.


कुश : रेल गाड़ी से भी ख़ासा लगाव है आपका ?
नीरज जी : जी हाँ मेरे नाना रेलवे के इंजिनियर और दादा गार्ड थे...बचपन से ही रेल ने सम्मोहित किया मुझे..उसकी चलने से होने वाली संगीत की ध्वनि मुझे अभी भी अपनी और खींचती है.


कुश : आपको गाने का शौक भी है!
नीरज जी : बहुत...लेकिन बाथरूम में...संगीत से मेरा लगाव पागलपन की हद तक है...विशेष रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत.. मेरी माँ और मौसी बहुत अच्छा गाती हैं..अभी भी उनसे आप फिल्मी या गैर फिल्मी गीत सुन सकते हैं...मम्मी जो अब करीब अस्सी वर्ष की हैं,तो आपको एक दम ताजा फिल्मी गीत सुना कर चकित कर सकती हैं. पापा को सितार बजाने का शौक था...घर में उनके समय बहुत से साज़ रखे रहते थे.


कुश : आपने विश्व में इतनी जगह पर भ्रमण किया है सबसे बढ़िया अनुभव कब रहा?
नीरज जी: एक बात मैंने अनुभव की, जो बहुत बढ़िया लगी.....दुनिया के सारे इंसान एक जैसे हैं.....मैं जहाँ कहीं गया...लोग मुझको देख कर हँसे.


कुश : हा हा हा..
नीरज जी : देखिए आप भी हँसने लगे


कुश: सुना है विदेशी पुलिस ने पकड़ भी लिया था आपको ?
नीरज जी : अरे मत पूछिए, हुआ यूँ की जकार्ता की एक भीड़ भाड़ वाली मुख्य सड़क है...जालान सुधीर मान...छे लेन वाली सड़क है...उसके एक तरफ़ हम खड़े थे और हमें दूसरी दिशा में जाना था...ओवर ब्रिज कोई आधा की.मी. दूर था..सोचा चलो दौड़ के पार करते हैं...आधा रास्ता पार किया और बीच में बने डिवाईडर पर खड़े थे की पुलिस आगयी...और हमें गाड़ी में बिठा कर थाने ले गयी...क्यूँ की हम वहां विदेशी थे सो सीधे इंचार्ज ने बुलाया और कहा की अगर आप सड़क दुर्घटना में मर जाते तो? मैंने निडर हो कर कहा की "सर हमारे देश में सड़क ऐसे ही पार करनी सिखाई जाती है."..वो बोला क्यूँ? तो मैंने कहा "क्यूँ की हमारे देश की जनसँख्या बहुत जयादा है..."मेरे जवाब को सुन कर वो बहुत देर तक हँसता रहा और बाद में हमें छोड़ दिया. लेकिन एक बार तो विदेशी धरती पर पुलिस के हाथ पकड़े जाने पर हमारी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी...


कुश: हा हा! सुना है आप बहुत खुल कर हँसते हैं.
नीरज जी : हा हा हा ...जो व्यक्ति खुल के हंस नहीं सकता वो खुल कर रो भी नहीं सकता...जीवन जीने का नाम है...हंसने के लिए किसी चुटकले या घटना की जरुरत नहीं पढ़ती...रोज की छोटी छोटी घटनाओं में हास्य भरा रहता है...आप अपने देखने, आंकने का नजरिया बदलिए देखिये फ़िर कैसे हास्य आप के चारों और बिखरता है.


कुश: खाने में क्या पसंद नही आपको ?
नीरज जी : बैंगन... बाकि सबकुछ खा लेता हूँ...कब बुला रहे हैं आप? लेकिन शाकाहारी भोजन होना चाहिए..


कुश : कॉलेज की मेगज़ीन में आपकी फोटो भी छपी थी?
नीरज जी : तीन साल तक लगातार हमारी फोटो "प्राइड ऑफ़ आवर कालेज" शीर्षक के साथ कालेज मैगजीन में छपती रही थी. उनदिनों कालेज का कोई फंक्सन हमारी टांग अढ़ाये बिना सफल नहीं होता था. कालेज छोड़ने के दस साल बाद तक के छात्र हमारे नाम से वाकिफ थे.


कुश : मशहूर अभिनेता उत्पल दत्त जी से मुलाकात के बारे में बताइए?
नीरज जी : इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष के दौरान सन 1972 जयपुर में "पृथ्वीराज मेमोरियल प्ले कम्पीटीशन "मनाया गया था, जिसमें उत्पल दत्त, मनमोहन, ऐ.के.हंगल, कादर खान, शबाना आजमी, कीमती आनंद, बादल सरकार, विजय तेंदुलकर और शशि कपूर जैसी हस्तियां आयीं. उस वक्त हम जयपुर थिएटर में बहुत सक्रिय थे. उत्पल दत्त जी से मुलाकात हुई और उनसे बहुत कुछ सीखा. इतने प्यार से मिले जैसे बरसों की पहचान हो. मैं उनकी सादगी और थिएटर के ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ.


कुश : साइकल का बड़ा योगदान रहा आपकी ज़िंदगी में?
नीरज जी : सही कहा. साईकिल ना होती तो पता नहीं क्या होता...कालेज के अन्तिम
वर्ष की बात है अपनी पडोसन (अरुणा...अब तो आप पहचान ही गए होंगे) से उसकी नई की नई साईकिल मांग कर कालेज फ़िल्म देखने गया वहां नई साईकिल कोई चुरा ले गया...वापस मुहं लटका के घर आया तो पडोसन ने कहा कोई बात नहीं...मैंने कहा मैं इसकी भरपायी कैसे कर पाउँगा...??? उसने कुछ कहा नहीं....लेकिन बाद में मेरी पत्नी बन के घर आगयी...साइकिल की भरपायी करने जो अभी तक नहीं हो पायी है. हा हा हा...



हा हा हा! बहुत बढ़िया रही साइकल दास्तान, अब वक़्त आ गया है हमारे प्यारे प्यारे पाठको के न्यारे न्यारे सवालो का

कुश : आपकी सदाबहार मुस्कुराहट का राज़ क्या है? - पारूल जी
नीरज जी :" कल किसने देखा है...आए या ना आए" गीत हमेशा याद रखना.

कुश : नीरज जी , आप अपने को क्या कहेंगे रूमानी या रूहानी? - अभिजीत जी
नीरज जी :ना रूमानी ना रूहानी काम अपुन का बस शैतानी....अभी जी रूह के बिना रूमानी आप हो नहीं सकते.

कुश : खोपोली दिखलाय के लीयो है मनवा जीत
जो पहुच गये हम सारे तो कहा जाओगे मीत ? -"अरुण जी
नीरज जी : आप के हियाँ....और कहाँ?
मजाक की बात अलग है अरुण जी, आप सब आयें कम से कम मेरा एक सपना तो सच हो.

वाह जी बढ़िया जवाब रहे आपके अब चलते है रॅपिड फायर राउंड की तरफ
कुश : लेडीज़ साइकल - जेंट्‍स साइकल
नीरज जी : जेंट्स साइकल. लेडीज साईकल चलाकर बहुत भारी कीमत अदा करनी पढ़ी थी बंधू.

कुश : जयपुर - मुंबई
नीरज जी : जयपुर...आज भी है और कल भी रहेगा.(अपुन की चोइस)

कुश : स्कूल लाइफ - कॉलेज लाइफ
नीरज जी : कॉलेज लाइफ

कुश : शाहिद करीना - सैफ करीना
नीरज जी : सिर्फ़ करीना

कुश : गुलज़ार जगजीत सिंह - गुलज़ार पंचम
नीरज जी :गुलज़ार गुलज़ार गुलज़ार...किसी के साथ भी.

अब बारी है हमारे वन लाइनर राउंड की

कुश : शिव कुमार मिश्रा
नीरज जी : उस्तादों के उस्ताद

कुश : अरुणा जी
नीरज जी : अंधे की लाठी

कुश : मिष्टी
नीरज जी : इश्वर का रूप

कुश : खोपोली
नीरज जी : जहाँ कोई नहीं आता

कुश : कुश की कॉफी
नीरज जी : सबसे स्वाद


अब वक़्त है हमारी खुराफाती कॉफी का जिसे पीकर आपको देने होंगे कुछ खुराफाती सवालो के जवाब

कुश : यदि आप पी एम होते तो सरकार गिरने से कैसे बचाते?
नीरज जी : बोलता जिसने सरकार के लिए वोट नहीं दिया उसे मेरी ग़ज़लें पढ़नी पड़ेंगी. मायावती जी सबसे पहले सरकार के समर्थन में आ जातीं .


कुश :
अगर आपको किसी ब्रांड का एड करना हो तो किसका करेंगे?
नीरज जी : काफी का जो आप पिला रहे हैं

कुश : पहाड़ खोदने पर चूहा ही कयो निकलता है?
नीरज जी : क्यूँ की हाथी को बिल खोदना नहीं आता .

कुश : यदि आपके भी रावण की तरह दस सर होते तो?
नीरज जी : आप की परेशानी बढ़ जाती...सवाल कौनसे सर से पूछते?

कुश : गुलाब जामुन का नाम 'गुलाब जामुन' क्यो पड़ा?
नीरज जी : क्यूँ की हलवाई "गुलाब चंद" ने जामुन खाते हुए उसका अविष्कार किया था. सन्दर्भ: पुस्तक"भारतीय मिठाई का इतिहास" पृष्ठ ३९

कुश : चलते चलते ये बताइए हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा देखते है आप?
नीरज जी: आप जैसे युवाओं के ब्लॉग्गिंग करने से भविष्य उज्जवल है.

कुश : अरे आपने ये तो बताया नही की कॉफी विद कुश का नया रूप कैसा लगा आपको?
नीरज जी: बहुत ही बढ़िया.. जैसे ब्राइडल मेकअप के बाद दुल्हन

कुश : और अंत में हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहेंगे आप?
नीरज जी : कमेन्ट करने जैसा पावन कार्य हमेशा संपन्न किया करें..

कुश : जाने से पहले आप हमारे गेस्ट बुक में अपने ऑटो ग्राफ देते जाइए
नीरज जी : क्यो नही.. मुझे खुशी होगी.. ये लीजिए



कुश : बहुत बहुत धन्यवाद आपका, वाकई आज आपसे बात करके हमे बहुत अच्छा लगा नीरज जी ये रहा आपका गिफ्ट हेम्पर और साथ में एक बेक्ड समोसा..
नीरज जी : मेरा भी सौभाग्य रहा की आप के साथ मुझे भी अपने अतीत में झाँकने का सुनहरी अवसर मिला...पुरानी दिलचस्प यादों को दुहराना हमेशा अच्छा लगता है. बेक्ड समोसा तो ग़ज़ब का बनाया है आपने लेकिन रूबी को धन्यवाद दिया की नहीं जिसने बनाना सिखाया है ???

जी ज़रूर, एक बार फिर आपका बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी, यहा आने के लिए और हमारे एपिसोड में चार चाँद लगाने के लिए..

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का आठवाँ एपिसोड एक नये रंग रूप में ब्लॉग जगत की एक जानी मानी हस्ती नीरज गोस्वामी जी के साथ, ज़रूर बताएगा कैसा लगा आपको.. अगले सोमवार को हम फिर मिलेंगे हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ तब तक के लिए शुभम!

कॉफी विद कुश.. (सातवाँ एपिसोड)

नमस्कार दोस्तो,

स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के सातवें एपिसोड में.. आज हम आपको जिनसे मिलवाने जा रहे है.. वो ब्लॉग जगत की एक जानी मानी शख्सियत है.. जिनके ब्लॉग पर हर नयी पोस्ट का पाठको को बेसब्री से इंतेज़ार रहता है.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू अमेरिका में रहते हुए भी भारत के दिल में रची बसी श्रीमती लावन्या शाह जी की ..

कुश : नमस्ते लावन्या जी कैसी है आप?
लावण्या जी: मैं अच्छी हू कुश, शुक्रिया

कुश : कैसा लग रहा है आपको यहा आकर ?
लावण्या जी: जयपुर के गुलाबी शहर मेँ , हम ,कुश जी के सँग, कोफी पी रहे हैँ ..तो " सेलेब्रिटी ' जैसा ही लग रहा है जी ! आपसे रुबरु होने का मौका मिला है ~ शुक्रिया !


कुश : सबसे पहले तो ये बताइए ब्लॉग्गिंग में कैसे आना हुआ आपका ?
लावण्या जी: " Blogging " is like "sitting in the " Piolet's Seat ..& flying the plain solo ..मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ - एक दिन रात का भोजन, निपटा के, मैँ ,कम्प्युटर पे बैठी थी और गुगल पे ब्लोग बनाने की सूचनाएँ पढते हुए मैँने मेरा प्रथम ब्लोग " अन्तर्मन " बना दिया जो अँग्रेज़ी मेँ था और तभी से ," सोलो प्लेन" समझिये," इन ट्रेँनीँग" - सीखते हुए, चला रहे हैँ :-)


कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत में किसे पढ़ना पसंद करती है आप ?
लावण्या जी: मैँने प्रयास किया था इस पोस्ट मेँ कि जितने भी जाल घरोँ का नाम एकत्रित करके यहाँ दे सकूँ - वो करूँ अब कोई नाम अगर रह गया हो तो क्षमा करियेगा पर मुझे सभी का लिखा पसँद है सिवा उसके जो पढनेवाले का दिल दुखा जाये बाकि कई नये ब्लोग पर रोचक और ज्ञानवर्धक सामग्री भी मिल ही जातीँ हैँ,सभी को मेरी सच्चे ह्र्दय से , शुभ कामनाएँ दे रही हूँ - स्वीकारियेगा !

कृपया, यहा क्लिक करे
http://www.lavanyashah.com/2008/06/blog-post.html


कुश : क्या आप किसी कम्यूनिटी ब्लॉग पे भी लिखती है?
लावण्या जी: नहीँ तो ...ये अफवाह किसने उडायी ? :)

कुश : बाकी सवालो का सिलसिला आगे बढ़ते हुए पीते है गरमा गरम कॉफी ये लीजिए
लावण्या जी:वाह मैं तो इसी के इंतेज़ार में थी.. बढ़िया कॉफी है


कुश : ब्लॉगिंग के लिए इतना वक्त कैसे निकाल पाती है आप?
लावण्या जी: घर के काम शीघ्रता से करने की आदत हो गई है अब और काफी समय , जितना वक्त है उसे , सही तरीके से
उपयोग मेँ लाने की कोशिश करती हूँ और हाँ, यहाँ (अमेरिका मेँ) बिजली कम ही जाती है :-)..घर मेँ , आधुनिक उपकरण ही ज्यादातर काम पूरा करते हैँ ..पर, खाना,अब भी , मैँ ही बानाती हूँ ! क्यूँके ,अभी ऐसा कोई "रोबोट= यँत्र मानव " मिला ही नहीँ !! :-))


कुश : शुरुआत में ब्लॉगिंग के वक़्त कुछ तकनीकी समस्याए भी आई होंगी उन्हे कैसे दूर किया करती थी आप?
लावण्या जी : तकनीकी मामलोँ मेँ अभी सीख रही हूँ ...नहीँ तो एक बार समीर भाई से नारद, चिठ्ठा जगत और ब्लोगवाणी मेँ रजिस्टर करवाया था - भला हो उनका ..ये अह्सान कभी नहीँ भूलूँगी ..और दिनेश भाई जी ने रवि रतलामी जी से फोन्ट भिजवाये थे ..सब की मेहरबानी है ..आपने " कोफी वीथ कुश " पे बुलाया,, तरुण भाई ने " आमने -सामने " मेँ और अजित भाई ने " बकलमखुद " मेँ और सभी का शुक्रिया !


कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत की क्या खास बात लगी आपको ?
लावण्या जी: हिन्दी ब्लोग जगत मेरे भारत की माटी से जुडा हुआ है- कयी सतहोँ पर जहाँ आपको मनोरँजन भी मिलेगा, ज्ञानपूर्ण बातेँ भी, राजनीति से लेकर,शब्दोँ की व्युत्त्पति या खगोल शास्त्र, पर्यटन, सदाबहार नगमे, या नये गीत,एक से एक बढकर गज़ल, शायरी, गीत और नज़्म्, व्यँग्य,विचारोत्तेजक लेख,एक छोटे से कस्बे मेँ जीता भारत या विदेश का कोई कोना, यादेँ, सँस्मरण सभी कुछ पढने को मिअ जाता है जो नावीन्य से भरपूर होता है, जिसका मूल कारण है व्यक्तित्व की स्वतँत्रता और अनुभवोँ को दर्शाने की आज़ादी ( Freedom of expression ) जो एक लोकताँत्रिक विधा है - यही ब्लोगिंग की प्राण शक्ति और उसमेँ समायी उर्जा है..


कुश : एक बार आप पार्क में खो भी गयी थी ?
लावण्या जी: ३ साल की एक नन्ही लडकी , शिवाजी पार्क की भीडभाड मेँ , शाम के धुँधलके मेँ , अब लोग घर वापस जाने के लिये,पार्क के दरवाजोँ से बाहर यातायात के व्यस्त वाहनोँ के बीच से रास्ता ढूँढते निकल लिये हैँ और ये लडकी , अपने आपको अकेला,असहाय पाती है ..घर का नौकर शम्भु, बाई बहनोँ को लेकर,कहीँ भीड मेँ ओझल हो गया है और अपने को अकेला पाकर,जीवन मेँ पहली बार डर का अहसास हुआ है .. उसे देख २ नवयुवक रुक जाते हैँ और पूछते है, " बेबी, क्या तुम घूम गई हो ? अकेली क्यूँ हो ? " थरथराते स्वर मेँ अपनी ढोडी उपर किये स्वाभिमान से उत्तर देती हुई वो कहती है," मैँ नहीँ हमारा शम्भु भाई घूम गया है ! और वो ३ बरस की नन्ही कन्या, मैँ ही थी :-)ईश्वर कृपा से वे दोनोँ युवक, मेरे रास्ता बताने से ,मुझे घर तक छोड गये और दरवाजा खुलते ही," अम्मा .." की पुकार करते ही अममा की गोद मेँ मैँ फिर सुरक्षित थी और उन दोनोँ युवको ने अम्म को खूब डाँटा था और अम्मा ने उनसे माफी माँगते खूब अहसान जताया था, आज सोचती हूँ अगर मैँ घर ना पहुँची होती तो ?!


कुश :
कॉलेज की कोई बात जो अब तक याद हो?
लावण्या जी: अगर बचपन के दिन सुबह हैँ तो कोलिज के दिन मध्याह्न हैँ -एक दिन कोलिज मेँ अफघानिस्तान से आये एक नूर महम्मद ने,मेरे सहेली रुपा के लिये, दूसरे लडके को कोलेज के बाहर सडक पर, चाकू से घायल कर लहू लुहान कर दिया था - हम लडकियाम सहम गईँ थीँ - घर गये तब १०१ * ताप ने आ घेरा !दूसरे दिन एक मित्र जिसका नाम अनिल था और वो सबसे सुँदर था उसका दोस्त आया और बतलाया कि अनिल ने खुदकुशी कर ली ! शायद उसके पर्चे ठीक नहीँ गये थे और फेल होने की आशँका से उसने ऐसा कदम उठाया था, ये दोनोँ किस्से मुझे आज तक भूलाये नहीँ भूलते -

Do see this link below ~
http://www.lavanyashah.com/2007/04/blog-post.html


कुश : अपने परिवार के बारे में बताइए ?
लावण्या जी: मेरे परिवार मेँ हैँ - मेरी बिटिया सिँदुर, दामाद ब्रायन, नाती नोआ और बेटा सोपान और बहु मोनिका देव मेरे पति दीपक और मैँ !


कुश : जीवन की कोई अविस्मरणिय घटना ?
लावण्या जी: मेरी पहली सँतान बिटिया सिँदुर का ९ वाँ महीना चल रहा था उसे शाम के खाने पे बुलाया तो वो सेल फोन से नर्स को पूछ रही थी " क्या मैँ मेरा फेवरीट शो देखने के बाद वहाँ आ सकती हूँ ? " नर्स ने कहा नहीँ जी फौरन आओ और दूसरे दिन हम भी वहाँ गये ..उसका लेबर पेन चल रहा था और मैँ प्रभु नाम स्मरण करते जाप कर रही थी, मन मेँ एक डर था कि अभी नर्स , डाक्टर आकर कहेँगेँ कि हम इसे ओपरेशन के लिये ले जा रहे हैँ परँतु,हेड नर्स ने हमेँ कहा, " आप लोग बाहर प्रतीक्षा कीजिये..अब समय हो रहा है " हम बाहर गये और मानोँ कुछ पल मेँ , मुस्कुराती हुई वो लौट आई और कहा, " अब आप लोग आ सकते हैँ " भीतर सिँदुर थी और मेरा नाती " नोआ" Noah था उस सध्यस्नात, नवजात शिशुको हाथोँ मेँ उठाया तो वह पल मुझे मेरे जीवन का सबसे अविस्मरीणीय पल लगा..



कुश : सुना है आपकी ब्लॉग पर कुछ लोगो के बारे में लिखे जाने पर उनके रिश्तेदारो ने आपसे संपर्क किया था?
लावण्या जी: हम जब ब्लोगिँग करते हैँ तब निताँत एकाँत मेँ, अपने विचारोँ को की बोर्ड के जरिये , खाली पन्ने पे उजागर करते हैँ, उसके बाद आपका लिखा कौन , कहाँ पढता है इस पे आपका कोई अधिकार नहीँ - इस नजर से ये सर्व जन हिताय हो गया एक पोस्ट श्रध्धेय अमृतलाल नागर जी ( मशहूर कथाकार हैँ ) उन के पापाजी पे लिखे सँस्मरण को पोस्ट करने से पहले,उनपे नेट पर सामग्री ढूँडते , रीचा नागर के बारे मेँ पता चला और सँपर्क हुआ जिसकी खुशी है -


और कवि प्रदीपजी वाली पोस्ट को उनकी बिटिया ने पढकर मुझे ई मेल भेजा उसकी भी खुशी है



कुश : आप अब तक कई बड़े बड़े लोगो से मिल चुकी है, किसका आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पढ़ा?
लावण्या जी : पापा जी के गुरु थे ~ महर्षि धुरँधर विनोद जी ! " " धवलगिरि " पुस्तक के लेखक ~ प्रकाँड पँडित,पहुँचे हुए महायोगी, पुणे निवासी, सँस्कृत के मर्मज्ञ,त्रिकालदर्शी कवीँद्र रविन्द्रनाथ की हुबहु शक्लवाले, धवल दाढी, गोरे,रहस्यमय, विलक्षणात्मा थे वे..मुझे उनके दर्शन हुए तब मैँ, १८ साल की रही होउँगी ..उन्होँने मुझे देखते ही कहा, " ये मानसिक रुपसे २८ वर्ष की है ! " माने उम्र से १० साल ज्यादा ..राज कपूर जी की बडी बिटिया ऋतु भी साथ थी उसे बतलाया, " हम लोग पहले वियेना ( युरोपे का एक शहर ) मेँ मिले थे ! " वो घबरा के बोली, " मैँ तो वहाँ गई ही नहीँ ! " तो वे सिर्फ मुस्कुरा दिये ..कैयोँ के असाध्य रोगोँ को उन्होँने ठीक किया था ..उनहेँ कभी भूल न पाऊँगी ..


कुश : आप ही की लिखी हुई आपकी कोई पसंदीदा रचना ?
लावण्या जी: रात कहती बात प्रियतम,
तुम भी हमारी बात सुन लो,
थक गये हो, जानती हूँ,
प्रेम के अधिकार गुन लो !
है रात की बेला सुहानी,
इस धरा पर हमारी,
नीँद से बोझिल हैँ नैना,
नमन मैँ प्रभु मनुज के!
रात कहती है कहानी,
थीस्वर्ग की शीतल कली,
छोड जिसको आ गये थे-
उस पुरानी - सखी की !
रात कहती बात प्रियतम !
तुम भी सुनो, मैँ भी सुनुँ !
हाथ का तकिया लगाये,
पास मैँ लेटी रहूँ !


कुश : कोई ऐसी फिल्म है जो बहुत पसंद हो आपको ?
लावण्या जी: " मुगल - ए - आज़म " मेरी पसँदीदा फिल्म है मधुबाला दिलीप कुमार, पृथ्वीराज कपूर दुर्गा खोटे और अन्य सभी सह कलाकारोँ का उत्कृष्ट अभिनय, नौशाद साहब का सुमधुर , लाजवाब सँगीत और एक से बढकर एक सारे गाने, वैभवशाली चित्राँकन, कथा की नायिका की मासूमियत और खूबसुरती जो उसके जीवन का अभिशाप बन गई और अनारकली का त्याग ..प्रेम के लिये आत्म समर्पण , बहुत सशक्त भावोँ को जगाते हैँ बस्स वही सब पसँद है ~~


कुश : यदि आपको आपकी पसंदीदा फिल्म मुग़ले आज़म बनाने का मौका मिले तो आप ब्लॉग जगत में से किसे मुख्या किरदार देगी?
लावण्या जी : आपको ही दूँगीँ ..अनारकली / माने मधुबाला आप चुन लीजियेगा :-)


कुश : क्या पढ़ना पसंद करती है आप ?
लावण्या जी: वैसे तो लम्बी लिस्ट है ..पर सच मेँ " सुँदर काँड " मेँ चमत्कारी शक्ति है ! हनुमान जी का सीता मैया को रावण की अशोक वाटीका मेँ खोजना और पाप का नाश और सत्य पर विजय हमेशा नई आशा का सँचार करता है ~और एक पुस्तक है " शेष - अशेष "मेरे पापाजी पर बहुत सारे सँस्मरणात्मक लेखवाली ..उसे पढते समय , अक्सर, छोड देती हूँ क्यूँकि ..आँसू आ ही जाते हैँ उनकी और अम्मा की यादेँ तीव्र हो उठतीँ हैँ


कुश : ठमको आँटी के बारे में बताइए ?
लावण्या जी: हमारे सामने एक आँटीजी आगरा से रहने बम्बई आयीँ थीँ ..रोज ही सिनेमा देखने चल देतीँ थीँ हम लोग उन्हेँ "ठमको आँटी " प्राइवेट मेँ बुलाते थे ..ना जाने एक दिन क्या सूझी कि उनके घर कुँकु से लिपटा नारीयल, फूल और डाकू भैँरोँ सिँह के नामवाली चिठ्ठी छोड आये ...खत का मजमूँ था .... "घर मेँ रहा करो नहीँ तो तुम्हारे जान की खैर नहीँ ! " आँटीजी ने पुलिस बुलवाने का उपक्रम किया तब जाकर अम्मा के सामने डाकूओँ ने आत्म समर्पण कर दिया था !!


कुश : क्या अमेरिका में आपको भारतीय माहौल की याद नही आती?
लावण्या जी : याद तो बहुत आती है..कैसे ना आये ?भारत मेरी आत्मा से जुडा हुआ जो है !


कुश : अमेरिका में आप भारत की कौनसी चीज़ सबसे ज़्यादा मिस करती है?
लावण्या जी : बेतकल्लुफ होकर जीना..किसी के घर पर फोन किये बिना जा धमकना..गर्मियोँ मेँ आम ..शाम को ताज़ा मोगरे के गजरे..और मघई पान का जोडा
आहा ....sigh...sigh......कितनी चीजेँ गिनाऊँ कुश भाई ?



कुश : आप को किस विषय पर लिखना सबसे अधिक प्रिय है?
लावण्या जी : भ्रमण, व्यक्ति विशेष, धर्म, समाज ..ये ज्यादा हैँ मेरे जाल घर पे , so i guess they are a recurring theme & part of the patten.


कुश : ये बताइए कोई नयी पोस्ट डालते वक़्त आप किन बतो का ध्यान रखती है?
लावण्या जी : मुझे सुँदर, अलग जरा हटके दीखेँ वैसे चित्र मेरी पोस्ट के साथ लगाना अच्छा लगता है..एकाध दफे चित्र को देखकर भी लेखन सूझा था जैसे " हम पँछी एक डाल के "वाली पोस्ट या अमरीका के शहरोँ मेँ घुमते हुए जो देखती हूँ वैसे चित्र ! और फिर लिखती हूँ , हमेशा ये सोच कर कि पढनेवालोँ को कुछ नया लगे और अच्छा भी लगे ..


कुश : क्या कोई ऐसी जगह है जो आपको दिली सुकून देती हो?
लावण्या जी : इत्ते बरस हो गये ..वो जगह मेरी अम्मा की गोद ही थी जिस पे सर रखते ही, दुनिया भर के गम हवा हो जाते थे ! आज, मेरे बच्चोँ को वही देने का प्रयास करती हूँ घर पर इसी तरह का सुकुन बकरार रहे उसी के लिये, मेरा समस्त जीवन अर्पित है --


कुश : किस तरह का संगीत सुनती है आप?
लावण्या जी : ज्यादातर, हिन्दुस्तानी सँगीत ही सुनती हूँ ...ब्लोग जगत के शायद सभी गीतोँ के लिन्क और युट्युब पर भी , बहुत से गीत खोजने पे मिल जाते हैँ और एक मित्र हैँ वे बहुत उम्दा गीतोँ को चुनकर सी.डी. बनाकर भेजते हैँ ..सुबह पँडित जसराज जी ,पँडित भीमसेन जोशी जी जैसे शास्त्रीय गीत ~ और मेरी लतादीदी की बहुत बडी फेन हूँ उनको भी सुनती हूँ !


कुश : ब्लॉग पर होने वाली बहस को आप कितना उचित मनती है?
लावण्या जी : कभी बहस से, जानकारियाँ मिलतीँ हैँ तो कभी बहस से किसी के दिल को जबर्दस्त ठेस भी पहुँचती है...हरेक को आज़ादी है ना, जो चाहे लिखे अपने ब्लोग के सभी "मालिक " हैँ !



कुश : बहुत बढ़िया जवाब रहे आपके.. चलिए अब बारी है हमारे पाठको के सवालो की आइए देखे हमारे पाठको ने आपके लए क्या सवाल भेजे है..

कुश : आप इतने लंबे समय से ब्लॉग पर सक्रिय है ,नए ब्लोगर्स के बारे में आपका क्या कहना है ?
आपकी सोच में कौन सा ऐसा प्रयास नये पुराने ब्लोगर्स को जोड़ सकता है ? - अनुराग जी
लावण्या जी : अनुराग भाई, आप पुराने ब्लोगरोँ से किस प्रकार का सहयोग चाहते हैँ ? इसके लिये तो दोनोँ को एक एक कदम आगे बढना होगा और दोस्ती का हाथ बढाना होगा तभी तो ये सँभव होगा --


कुश : अपनी दिनचर्या के बारे में कुछ बताइए - मीनाक्षी जी
लावण्या जी : सुबह, सैर, फिर चाय,नाश्ता, दिनके लँच के लिये प्रबँध, फिर न्युज , फिर थोडा टीवी , फिर नेट पे , दुपहर तक ईश्वर पूजा फिर पेट पूजा, आराम और फिर शाम की तैयारी , टहलना और न्युज देख के भोजन, कीचन समेटना, फिर सुस्ताना ..ये तो घर पर रहूँ तब, जब बाहर काम से जाते हैँ तब यात्रा और बाहर ही खा लेते हैँ ..


कुश : क्या आप फिर से भारत आकर बसना चाहेंगी या आभासी सम्पर्कों के जरियेही भारत को महसूस
करके संतुष्ट हैं - अजीत जी
लावण्या जी : अजित भाई, १९७४, ७५, ७६ हम युवावस्था मेँ लोस एन्जिलिस रहे और फिर परिवार के बडोँ के आग्रह से भारत लौट आये ..१४ वर्ष बीते और अचानक सँजोग ही ऐसे बने कि दुबारा अमरीका आकर बसे ..मेरा मन तो आज भी भारत मेँ है परँतु ऐसा लगता है कि नसीब मेँ जहाँ रहना लिखा है वही होके रह्ता है - पूरे परिवार का निर्णय रहेगा ये तो - आगे की क्या खबर क्या हो !


कुश : यदि आपके 'वो' नाराज़ हो जाए तो आप उन्हे मनाने के लिए कौनसा गाना गाएँगी? - अभिजीत जी
लावण्या जी : !" हमेँ तुमसे प्यार कितना ये हम नहीँ जानते ..मगर जी नहीँ सकते, तुम्हारे बिना " फिल्म : कुदरत का गीत कैसा रहेगा अभिजीत भाई चलेगा ना ? ;-)



चलिए अब चलते है रॅपिड फायर राउंड की ओर

कुश :अमेरिका - भारत
लावण्या जी : मेरा भारत


कुश :अमिताभ बच्चन - अभिषेक बच्चन
लावण्या जी : अमित भैया


कुश :सोच में बदलाव - बदली हुई सोच
लावण्या जी : सोच के बतलायेँगे :)



कुश : मिठाई - नमकीन
लावण्या जी : नमकीन



कुश : पुरानी फ़िल्मे - नयी फ़िल्मे
लावण्या जी : Both / दोनोँ



चलिए अब चलते है हमारे वन लाइनर राउंड की तरफ

कुश :हिन्दी ब्लॉग जगत -
लावण्या जी : ज़िँदाबाद ...ज़िँदाबाद


कुश : मीनाक्षी जी -
लावण्या जी : सेहरा मेँ गँगा की धारा

कुश :भारत -
लावण्या जी : नित प्रियम भारत भारतम

कुश :नोआ-
लावण्या जी : My सोनु, मोनु / Sonu Monu :)


कुश :कुश की कॉफी -
लावण्या जी : बस पीते ही रहो ऐसी दिलकश और लज़ीज !



अब बारी है हमारी खुराफाती कॉफी की.. तो हम पूछेंगे आपसे कुछ खुराफाती सवाल जिनके खुराफाती जवाब आपको देने होंगे..

कुश :यदि एक दिन के लिए सभी ब्लॉग्स की कमांड आपके हाथ में आ जाए तो?
लावण्या जी : कमाँडो बन जायेँ सभी


कुश :चंदा को मामा क्यो कहते है?
लावण्या जी : माँ के जैसा शीतल , चमकीला और प्यारा है ना चँदा मामा इसलिये


कुश :सियार रात में रोते क्यो है?
लावण्या जी : सारे नेता ऊँघते हैँ तो वे अपने भाइ लोगोँ को "मीस" जो करते हैँ


कुश :पानी हमेशा गीला क्यो होता है?
लावण्या जी : सूखे दिलोँ को भिगाने की कोशिश करता है



कुश : यदि रेल गाड़ी में से आख़िरी डिब्बा हटा दिया जाए तो?
लावण्या जी : तो बेचारे यात्री ईँजनवाले हिस्से मेँ , सबसे आगे बैठ जायेँगेँ !गड्डी छोट्टी हो जाईगी पुत्तर ! LOL


कुश : बहुत अच्छे जवाब रहे है आपके लावण्या जी, मुझे बहुत अच्छा लगा आज आपसे बात करके.. ये लीजिए हमारी तरफ से एक गिफ्ट हेम्पर..
लावण्या जी : Wow ! Let me open it ...अरे वाह ! इतनी बेशकिमती Gifts आपने रखीँ हैँ कुश जी की ...I'm speechless !! Thank you sooo very much ,appreciate your kindness Sir !


लावण्या जी :
चलते चलते ..एक प्रशन मेरा भी : "कुश जी " आपको भी ये खेल खेलना होगा -
बतायेँ , "कोफी वीथ कुश " मेँ आप को कोफी कौन पीलाये ? हम सभी मिलकर या आप चुनेगेँ ? We all want "Kush ji " to play this game too very soon ~~



कुश : हा हा मुझे बहुत खुशी होगी.. खैर अंत में हमारे ब्लॉगर मित्रो को क्या कहना चाहेंगी आप?
लावण्या जी : " बने चाहे दुशमन जमाना हमारा ..सलामत रहे...दोस्ताना हमारा " ..खुश रहो, मौज मनाओ, अपने भीतर के शिशु को हमेशा हँसता रखो thanx for your patience . God Bless you all.

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का एक ओर एपिसोड .. ज़रूर बताएगा कैसा लगा आपको.. फिर मिलेंगे इस ब्लॉग पर अगले सोमवार हमारे ही बीच के एक ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए शुभम

कॉफी विद कुश.. (छेंटा एपिसोड)

नमस्कार दोस्तो,
स्वागत है आपका कॉफी विद कुश के छठे एपिसोड में.. आज के जो हमारे मेहमान है.. उनके बारे में कहा जाता है की उन्हे पंगे लेने का बड़ा शौक है.. अजीत जी के ब्लॉग शब्दो का सफ़र में तो आप इनके बारे में बहुत कुछ जान ही चुके है... बचा खुचा हम यहा पूरा किए देते है.. तो दोस्तो दिल खोलकर स्वागत कीजिए ब्लॉग पंगेबाज वाले अरुण पंगेबाज जी का...
स्वागत है आपका अरुण जी कॉफी विद कुश में

कुश : सबसे पहले तो ये बताइए कैसा लगा आपको यहा आकर?
अरुण जी :इस पर तो जाने के बाद ध्यान दिया जायेगा, तभी बताया जा सकता है

कुश : चलिए हम इंतेज़ार करेंगे, ये बताइए क्या वजह रही ब्लॉग का नाम पंगेबाज रखने की ?
अरुण जी :अरे भाई ये मत पूछिये ये बडी दुख भरी कहानी है, सुन कर आपकी भी कपकपी लग जायेगी, मेरे ब्लोग को नारद जी ने नारद मे शामिल करने से मना कर दिया था. लिहाजा हमने भी उसे डीलीट मार दिया. एक दिन दो पैग लगाने के बाद याद आई की एक नारद महोदय है, उन्होने हमसे पंगा लिया है,उनसे हमे पंगा बराबर करना है . लिहाजा हमने पंगेबाज नाम से दुबारा ब्लोग बना डाला . फ़िर से भेजा और नारद जी भी घबरा गये और बिना किसी पंगे के नारद पर दिखा दिया गया . रवी रतलामी जी ने स्वागत टिप्पणी दी, बस वो दिन है आज का दिन है. हम यहा जमे है और पंगे पे पंगा लिये जा रहे है :)

कुश : ब्लॉगर्स में किसे पढ़ना पसंद करते है ?
अरुण जी :ऐसे पंगे वाले सवाल के बारे मे आपने सोच कैसे लिया की हम फ़स जायेगे जी और खुद के लिये पंगा खडा करलेगे . एक दम गलत सवाल,


कुश : ओहो! आप तो बड़े पंगे वाले मूड में लग रहे है.. ये लीजिए आपकी कॉफी हो सकता है आपका मूड थोड़ा शांत हो जाए..
अरुण जी : ये कॉफी तो चकाचक है जी..जाते समय रास्ते के लिये थरमस मे डाल दीजीयेगा.


कुश : आप तो स्वयं पंगेबाज है, ये बताइए पंगे की परिभाषा क्या है?
अरुण जी : पंगा,यानी "बेमतलब दूसरे के उंगली करना " सच मे तो यही है पंगे की परिभाषा
पर हमारे हिसाब से जो आपके सुई चुभाने की सोच भी रहा हो उसके कम से कम भैस वाला इंजेकशन लगाना , ताकी अगला दुबारा हम से पंगा लेने का ख्याल करने से पहले भी १०० बार सोचे :) इसी लिये तो हम ब्लोगजगत के सबसे बडे और महान पंगेबाज कहलाते है


कुश : तो ब्लॉगिंग में पहली बार किस से पंगा लिया था?
अरुण जी :श्रीश जी से , आखिर इस ब्लोग दुनिया मे हमे धकेला उन्होने ही था

कुश : आप खाली ब्लॉग्स पर ही पंगे लेते है या निजी जीवन में भी पंगेबाज़ है आप?
अरुण जी : दोस्त ये जीवन ही पंगो से भरा है आप नही लोगे तो दूसरे आपसे लेंगे इसलिये अच्छा यही है "जो मारे सो मीर" यानी पहले आप ही ले डालो

कुश : कोई सबसे बड़ा पंगा
अरुण जी :हम छोटे मोटे पंगे लेते ही कब है जी सारे सरासर बडे ही होते है

कुश : अपने परिवार के बारे में बताइए ?
अरुण जी :एक बीबी दो बच्चे बस छोटा सा परिवार ही है हमारा


कुश : एक दफ़ा स्कूल से भाग कर पिक्चर भी देखी थी आपने ?
अरुण जी : स्कूल से भाग कर देखी गई इकलौती पिकचर " मुकद्दर का सिकंदर " मे हम भी मुकद्दर के सिंकदर निकले , हमे हमारे बापू हमसे अगली सीट पर अपने दोस्तो के साथ बैठे दिखाई दे गये थे, और हम तडी हो लिये जी :)


कुश : तो मतलब आप अपने पिताजी से बहुत डरते थे?
अरुण जी :जी बहुत !, वो इस कमरे मे तो हम उस कमरे मे , एक बार तो उन्होने हमे जब पढाई के लिये गाजियाबाद रवाना किया तो उन्होने पूछा कितने पैसे मे काम चल जायेगा . मेरे कुछ ना बोलने पर उन्होने फ़िर पूछा पचास रुपये मे काम चल जायेगा. पूरा महीना काटना और कमरे का किराया और खाना भी . लेकिन मैने जवाब दिया जी चल जायेगा. मन ही मन बुडबुडाता रहा. याखीन करो जब ट्रेन चलदी. तब उन्होने पैसे दिये वरना मै पचास रुपये लेकर नई जगह नये शहर के लिये रवाना हो चुका था .:) े


कुश : साइकल बहुत चलाई है आपने?
अरुण जी : बहुत चलाते थे जी ३०/३५ किलोमीटर रोज.. पढने इसी से जाते थे ना.. पक्की याद भी छोड गई थी साईकल .अगले तीन दात चिमटा अचानक टुटने से बाहर निकल आये थे , लेकिन डाकटरो ने वापस लगा दिये थे जी ,अभी भी फ़ुल स्विंग मे काम करते है :) आप चाहे तो काट कर दिखा सकता हू

कुश : ना ना, अच्छा ये बताइए पहली बार किस पर दिल आया था ?
अरुण जी :हेमा मालिनी पर लेकिन उसने धर्मेंद्र से शादी करली , फ़िर स्मिता पाटिल पर ,पर उसने भी राजबब्बर को चुन लिया तब हमने भी बिना दिल लगाये शादी करली जी , आजकल दिल अपने बच्चो की अम्मा कॊ ही दिया हुआ है . ना हमारे पास होगा ना हम किसी को देगे


कुश : लिखने का शौक कब से हुआ?
अरुण जी :किसको कौन लिखता है जी आपको गलत बताया किसी ने . हम तो बस पंगा लेते है खामखा हमारी रेपुटेशन खराब ना करे


कुश : कभी ना भुलाया जा सकने वाला पल ?
अरुण जी : जब आखिरी बार पिताजी को हस्पताल लेकर गया था , आज भी कई बार लगता है कि वो कार मे मेरी सीट के ठीक पीछे उसी दिन की तरह बैठे है और मुझे दिलासा दे रहे है कि मै ठीक हू


कुश : कुछ ऐसा भी है खाने में जो आपको पसंद नही ?
अरुण जी : तेज मसाले घी तैरता हुआ


कुश : इतनी व्यस्त दिनचर्या में ब्लॉगिंग के लिए वक़्त कैसे निकल पते है?
अरुण जी : वही तरीका जो समीर भाइ अपनाते है उनकी ब्लोगिंग बत्ती ट्रेन मे बैठते ही जलती है . हमारी सुबह सुबह एफ़ टीवी देखकर या फ़िर आफ़िस आते हुये रास्ते मे देख कर , अब ये मत पूछ बैठना क्या देखकर . वो नही बतायेगे


कुश : खाली समय में आप क्या करते है ?
अरुण जी : जी ब्लोगिंग


कुश : जीवन की कोई ऐसी घटना जिससे मन विचलित हुआ हो?
अरुण जी : ामपुर का दिसंबर १९८८ के अंतिम दिन का वाकया है , हम कुछ दोस्तो ने एक दोस्त खुराना के घर नये साल के जश्न मनाने का प्रोग्राम बनाया था. लेकिन उसके संबंधियो के आ जाने से कैंसिल हो गया. हम सभी अपने अपने घर चले गये . थोडी देर बाद खुराना जी सम्बंधियो को गोली देकर दोस्तो के साथ मेरे पास फ़िर नमूदार हो गये बोले चलो सिविललाईन चलते है , रामसिंह के ढाबे पर बैठेगे, लिहाजा हम भी चल दिये ,अब हम एक और दोस्त भूटानी के यहा पहुचे और उन्हे आवाज लगाई . लेकिन बाहर आये उनके मकान मालिक एडवोकेट गुप्ता जी .कहा जा रही है टीम ? कोई नये साल का प्रोग्राम शोग्राम है क्या ? यार कभी हमे भी बुला लिया करो . लिहाजा उन्हे भी आंमत्रित कर लिया गया .वैसे मै खाना खा चुका हू लेकिन तुम लोग इतना ज्यादा प्रेस कर रहे हो तो मै चलता हू . अभी आया जरा पार्टी के लायक कपडे पहन आऊ. जब तक भूटानी जी आते वकील साहेब नया सूट टाई शाई पहन कर साथ हो लिये . सबसे ज्याद वही चमक रहे थे , खूब जमी वो पार्टी शाम आठ लेकर रात १२ बजे तक . सबसे ज्यादा चहकने वाले थे वकील साहब , और सच मे उस दिन उस पार्टी की रौनक भी वही थे . हर थोडी देर बाद रामसिंह को गले लगाते और अपने घर आने की दावत देते. रामसिंह भी उस दिन अपना गल्ला छॊड हमारे साथ ही जम गया था. रात अपने शबाब पर थी , घडी ने नये साल के आने की सूचना दी सभी लोगो ने एक दूसरे को जम कर गले लग लगा कर नये साल की शुभ कामनाये दी और सबसे ज्यादा वकील साहेब ने अगले पाच मिनिट मे हरएक के साथ डांस भी कर डाला .इसी के साथ खुराना और संजीव ने रामसिंह को बिल चुकाया और पार्टी स्माप्ती की घोषणा भी करदी . हम सभी लोग निकल कर बाहर आये कुछ अपने स्कूटर स्टार्ट कर रहे थे कुछ पीछे बैठने लगे थे . वकील साहब ने संजीव से सिगरेट ली बडी शान के साथ धुआ छॊडा और सडक पार चल दिये , कि मै अभी आया . सडक पार कर उन्होने रेलेवे स्टेशन के साथ बनी हुई दीवाल पर लघुशंका की , आने के लिये वापिस मुडे ... . और और बस हमने एक धडाम की आवाज सुनी एक ट्रक को हवा की स्पीड से जाते महसूस किया . जब तक समझ मे आया पता चला कि वकील साहब अपना आखिरी जश्न मना चुके थे . दोस्त फ़िर कौन सा नया साल किसका नया साल , वो रात शायद आज तक गुजरी तमाम रातो मे सबसे भारी रात थी. नये साल के पहले दिन का हर गुजरता पल हथोडे की चोट दे रहा था , वकील साहब दो बेटियो ७ साल ,५ साल को बेसहारा छॊड कर जा चुके थे , साल का पहला ही दिन था जब हम, वकील साहब को नये सूट के बजाय सफ़ेद कफ़न पहना उन्हे अंतिम विदाई दे रहे थे ,वो दिन है और आज का दिन हममे से कोई नये साल की पार्टी मे नही जाता


कुश : समीर जी ने अपने पिछले इंटरव्यू में कहा था की यदि ब्लॉग जगत में से करदरो लेकर यदि शोले बनानी होती, तो वो आपको 'सूरमा भोपाली' का रोल दिया था.. आपका क्या कहना है उस बारे में?
अरुण जी : बिलकुल तैयार जी लेकिन साईनिंग एमाऊंट तो दिलवाईये, उसके बिना तो अपन बिलकुल काम नही करेगे जी अगर फ़्री मे काम करना होता तो मै रामू की सरकार अमिताभ के लिये क्यू छोडता क्यो छॊडता ?


कुश : यदि आप स्वयं अपने लिए फिल्म शोले का कोई किरदार चुनना चाहे तो क्या चुनेंगे?
अरुण जी : सांभा का आराम से उपर बैठकर खैनी खाऊंगा, और बाकियो से पंगे लूंगा .



कुश : बहुत अच्छे जवाब रहे आपके.. चलिए अब शुरू करते है हमारा रॅपिड फायर राउंड

कुश : कॉफी - चाय
अरुण जी :चाय पर काफ़ी के रंग की ( ब्लैक टी)

कुश : बसंती - धन्नो
अरुण जी :धन्नो पर नाम बसंती रखेगे.

कुश : काली आँखे - काली जुल्फे
अरुण जी :काली आंखे पर काली जुल्फ़ो से झाकती हुई

कुश : अख़बार - न्यूज़ चैनल
अरुण जी :न्यूज चैनल पर अखबारो की खबरे


एक लाइन में जवाब देना है

कुश : राज ठाकरे -
अरुण जी :लडाकू मुर्गा


कुश : नारद-
अरुण जी :कौन सा ?


कुश : द ग्रेट खली-
अरुण जी :आदिमानव


कुश : संजय बेंगाणी -
अरुण जी :एक प्यारा सा दुलारा सा गुज्जू भाई


कुश : कुश की कॉफी -
अरुण जी :एक कप और


कुश : आपकी कोई विश -
अरुण जी :हा मेरे खुदा मुझे तुरंत एक ऐसी लडकी बनादे जिस पर राहुल लट्टू हो. मै भी भारत का भाग्य विधाता बनना चाहता हू..

कुश : चलिए अब वक़्त है हमारे यहा की स्पेशल 'खुराफाती कॉफी' का जिसे पीकर आपको देने होंगे खुराफाती सवालो के खुराफाती जवाब

कुश : अगर घी सीधी उंगली से भी ना निकले तो?
अरुण जी : गलतफ़हमी है जी आपको घी आज तक सीधी उंगली से नही निकला.


कुश : पोस्ट बॉक्स का रंग लाल ही क्यो होता है?
अरुण जी : ताकी आप को याद रहे कि चिट्ठी डालनी है इस डिब्बे मे , जेब मे नही.



कुश :
यदि राखी सावंत से पंगा हो जाए तो ?
अरुण जी : खामखा क्यो हमे लाईम लाईट मे लाना चाहते हो.जो इतनी गंभीर स्थिती पैदा होने के बारे मे सोच रहे हो ? बाढ का मौसम है हम किसी भी तरह कही भी आने वाली बाढ के लिये जिम्मेदार नही दिखना चाहते


कुश : अगर काली बिल्ली आपका रता काट ले तो ?
अरुण जी : तो इसके लिये वो खुद ही जिम्मेदार होगी हम नही..


कुश : अगर आपको कोई चिराग का जिन्न मिले और तीन काम करने को तैयार हो जाए तो वो तीन काम कौन से होंगे?
अरुण जी : ये हम आपको काहे बताये जी , सिक्रेट भी कोई शब्द होता है ना ?

कुश : चलते चलते एक प्रश्‍न और, हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य कैसा देखते है आप?
अरुण जी : चकाचक जी,

कुश : बहुत बढ़िया जवाब रहे आपके अरुण जी.. आशा है आपको भी आनंद आया होगा कॉफी विद कुश में आकर.. इस बातचीत को यही विराम देंगे हम.. लेकिन जाने से पहले ये एक गिफ्ट हैम्पर हमारी तरफ से..

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का छटा एपिसोड जिसमे मिलवाया हमने आपको छठे हुए पंगेबाज अरुण जी से.. आशा है आपको ये एपिसोड पसंद आया होगा.. लिख भेजिया कैसा लगा आपको इस बार का एपिसोड.. अगले साप्ताह इसी दिन इसी ब्लॉग पर फिर मिलेंगे हम हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए.. शुभम

कॉफी विद कुश.. (पाँचवा एपिसोड)

नमस्कार दोस्तो,
कॉफी विद कुश के पाँचवे एपिसोड में आप सभी का स्वागत है.. आज हम आपको मिलवाने वाले है एक ऐसी ब्लॉगर से जो एक नही, दो नही पूरी पंद्रह ब्लॉग्स पर लिखने वाली लेखिका से.. इनका अमृता जी, मीना कुमारी जी और गुलज़ार प्रेम तो हम इनकी ब्लॉग्स पर देख ही चुके है.. आइए जानते है कुछ और खास बाते इनके बारे में.. तो दोस्तो स्वागत कीजिए कॉफी विद कुश के आज के एपिसोड में ब्लॉग 'कुछ मेरी क़लम से' की लेखिका रंजना जी (रंजू) से..

कुश : स्वागत है रंजू जी आपका कॉफी विद कुश में... कैसा लग रहा है आपको यहा आकर ?
रंजना जी : अच्छा!! माहोल अच्छा है यहाँ का..काफी पीते हुए कुछ लिखा जा सकता है :)


कुश : सबसे पहले तो ये बताइए ब्लॉग्गिंग में कैसे आना हुआ आपका ?
रंजना जी : अपनी छोटी बेटी की वजह से ..उसके ब्लॉग को देख कर अपना ब्लॉग बनाया


कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत में किसे पढ़ना पसंद करती है आप ?
रंजना जी : बहुत हैं सब के नाम लेने यहाँ बहुत मुश्किल होंगे ..सब अपने तरीके से अच्छा लिखते हैं .समीर जी का ब्लॉग और उनकी लिखी पुरानी कई पोस्ट मैं अक्सर पढ़ती रहती हूँ खासकर जब मूड बहुत ऑफ़ होता है .कुश जी .अनुराग जी ,ममता जी हिंद युग्म लावण्या जी सागर नाहर जी ,बालकिशन जी ,संजीत ,मोहिंदर ,दिव्याभ [यह अब आज कल नही लिख रहे हैं ] अभिषेक ओझा अल्पना अनीता रचना शोभा .महक .बहुत हैं किसका नही पढ़ती मैं :) सभी पसंद है सिर्फ़ बहस वाले कुछ ब्लॉग छोड़ कर :)


कुश : काफ़ी सारे नाम लिए आपने.. इसी बात पर ये लीजिए हमारी स्पेशल कॉफी आपके लिए..
रंजना जी : वाह!बहुत ही बेहतरीन और मजेदार कॉफी..



कुश : अच्छा ये बताइए हिन्दी ब्लॉग जगत की क्या खास बात लगी आपको ?
रंजना जी : यहाँ अपने दिल की बात अपनी भाषा में बहुत ही सहज रूप से कही जा जा सकती है और बहुत से विषय हैं यहाँ पढ़ने को जो मुझे बेहद पसंद हैं ..



कुश : सुना है आपकी लंबाई की वजह से आप कॉलेज में चर्चित थी ?
रंजना जी : जम्मू का वूमेन कालेज था मेरा कद बहुत लंबा है पेपर चल रहे थे .और मैं आराम से अपना पेपर कर रही थी तभी एक्जामिनर सामने से जोर से बोला "हे यू लास्ट बेंच गर्ल बैठ जाओ क्यूँ खड़ी हो ? " मैंने कहा "सर मैं तो बैठी हूँ" उसने विश्वास नही किया और वहां आ कर देखा और मुस्करा के कहा ठीक है .असल में उस से पहले में सर झुका कर शराफत से अपना पेपर कर रही थी पीठ सीधी की तो उसको लगा कि मैं खड़ी हो कर नक़ल करने की कोशिश कर रही हूँ


कुश : आपके बचपन की कोई बात जो अभी तक याद हो ?
रंजना जी : बहुत हैं और याद भी सभी है ..पर सबसे ज्यादा याद आता गर्मी कि छुट्टियां होते ही नानी और दादी के घर जाना .और नानी जो कि अपने पानी के घडे को किसी को हाथ नही लगाने देती थी .जान बूझ कर उन्ही के घडे से ठंडा पानी पीना हालाँकि वहां जाते ही वह हम सब बच्चो को अलग अलग सुराही दे देती थी पर जो मजा उनके अपने रखे घडे से पानी पीने में था वो और कहाँ :)और दादा जी के साथ गांव में बाग़ की सैर को जाना और खूब सारे फालसे तोड़ कर लाना .सच में आज भी बहुत याद आता है


कुश : कैसी स्टूडेंट थी आप ?
रंजना जी : एक गणित को छोड़ कर बाकी सब में अच्छी थी ..दसवीं तक था यह कमबख्त मेरे साथ ..और सिर्फ़ इसकी वजह से पापा से पढ़ाई में मैंने मार खायी


कुश : जीवन की कोई अविस्मरणिय घटना ?
रंजना जी : जीवन का हर पल याद रखने लायक है और सुख दुःख का नाम ही जिंदगी है वैसे तो पर माँ का बहुत छोटी उम्र १० साल में साथ छोड़ जाना बहुत दुःख देता है आज भी ..और बहुत छोटी उम्र १९ साल में शादी हो जाना हंसा देता है आज भी :)


कुश : अपने परिवार के बारे में बताइए ?
रंजना जी : परिवार में दो प्यारी सी बेटियाँ है पति है ससुर हैं
बेटियाँ दोनों नौकरी करती है बड़ी बेटी एच आर इन पटनी कम्प्यूटर्स में है दूसरी इकोनोमिक्स टाईम्स में जर्नलिस्ट है


कुश : सुना है ब्लॉगिंग की वजह से लोगो ने आपका ऑटओग्रॅफ भी लिया था ?
रंजना जी : जब हिंद युग्म का बुक फेयर में स्टाल लगा था और इस बात का प्रचार हम सबने अपने अपने ब्लॉग पर किया, उसको पढ़ कर जब कुछ पाठक जो मेरा लिखा निरन्तर पढ़ते हैं मेरा आटोग्राफ लेने उस स्टाल पर आए थे .तब लगा लिखना सार्थक हो गया और मेरी अब अपनी एक पहचान है :)


कुश : आप ही की लिखी हुई आपकी कोई पसंदीदा रचना ?
रंजना जी : सभी बहुत पसंद है ..पर याद है अपनी पहली कविता जिस पर शायरी नेट का पहला इनाम मिला था वोह थी "'कल रात की खामोशी'' और अपनी लिखी कविता तोहफा बहुत पसंद है


कुश : कोई फिल्म जो आपको बेहद पसंद हो?
रंजना जी : यह तो बहुत मुश्किल सवाल है जी ..पिक्चर बहुत कम देखती हूँ पर जो देखी हैं वह पसंद की ही देखी है :) एक बतानी है तो इजाजत पिक्चर अपनी कहानी और सबके किए गए उस फ़िल्म में सहज अभिनय के कारण पसंद है


कुश : बचपन में आप बहुत जासूसी करती थी?
रंजना जी : हा हा हा! करती नही थी जी एक बार की थी, तब मैं कोई १४ साल कि हूंगी तब दीवाना और लोट पोट चंदामामा बच्चो की किताबे आती थी उस में कहीं जासूसी कहानी पढ़ कर छोटी बहनों को डराने की सूझी और पापा का ओवर कोट ,हेट और उनके गम शूज पहन कर दरवाज़े के पीछे छाता तान कर खड़ी हो गई और जैसे ही वह दोनों अन्दर आई छाता उनकी तरफ कर दिया और जब वह दोनी चीखी तो उनकी चीखे सुन कर मैं ख़ुद डर गई और जो हम तीनों चीखे तो सारा मोहल्ला वहां पर जमा हो गया और पापा ने जो शामत बनाई मेरी की आजतक जासूस बनने की सोचना तो दूर कोई किताब नही पढ़ती इस विषय पर


कुश : क्या कोई ऐसी आदत है आपमे जो आप बदलना चाहेंगी ?
रंजना जी : नही मैं बहुत अच्छी बच्ची हूँ :) एक आदत मुझे लगता है कि शायद मुझे बदल देनी चाहिए मैं विश्वास करती हूँ डू आर डाई मतलब करो या मरो शायद आर्मी माहोल में रहने के कारण यह आदत मुझ में आज भी मौजूद है पर घर में सबको लगता है कि यह आदत मुझे बहुत जल्दबाजी की ओर ले जाती है ..और इस से परेशानी हो जाती है


कुश : किताबो से काफ़ी प्यार लगता है आपको?
रंजना जी : किताबे तो मेरी लाइफ लाइन हैं :) अमृता प्रीतम की सभी किताबे कई बार पढ़ चुकी हूँ सबसे ज्यादा पसंद है उनकी नागमणि [३६ चक ] और रसीदी टिकट पसंद इसलिए है उनका लेखन क्यूंकि वह दिल सेलिखा हुआ हैऔर सच के बहुत करीब है


कुश : सुना है आपकी लिखी एक पुस्तक भी आ रही है?
रंजना जी : 'साया' मेरी वह ड्रीम बुक है जिसको मैंने अपनी कविता लेखन के साथ साथ बड़ा होते देखा है और फ़िर यही सपना मेरी छोटी बेटी की आँखों में भी पलने लगा और आज उसकी वजह से मेरा यह सपना जल्द ही पूरा होने वाला है मेरा प्रथम काव्य संग्रह साया जल्दी ही आने वाली है ..उस के बाद बच्चो को एक किताब पर काम कर रही हूँ जिस में उनकी बाल कविताएं और रोचक जानकरी सरल लफ्जों में लिखने की कोशिश है ताकि आने वाली पीढी सहजता से अपनी भाषा से जुड़ सके और किताबो को पढने की रूचि बनी रहे .. किसी अच्छे पब्लिशर से मिलते ही यह सपना भी जल्द पूरा हो जायेगा


कुश : आप नारी विमर्श जैसी कई ब्लॉग्स पे भी लिखती है, क्या वजह रही उससे जुड़ने की?
रंजना जी : नारी से जुड़ना अकस्मात ही हुआ ..लगा कि कुछ बातें जो अब तक सिर्फ़ सोचती हूँ नारी को लेकर उनको अब लफ्ज़ देने चाहिए
पर यहाँ कोई आन्दोलन नही है सिर्फ़ अपनी बात है हर नारी के दिल की जो दिल में सब वही लिखते हैं


कुश : क्या आप मानती है की नारी को आज भी मुक्त होने की ज़रूरत है?
रंजना जी : नारी को नही उसके विचारों को सम्मान देने की ज़रूरत अभी भी है.. नारी कोई बँधी हुई नही हुई अब


कुश : कहा जाता है की नारी विमर्श जैसी कई ब्लॉग्स पर एक ही तरह की बात होती है, लोग अब उससे उबने लगे है ?
रंजना जी : उब तब होती है ..जब लगता है की कुछ कहने की जो कोशिश हो रही है वो कामयाब है...पर जिस रोज़ किसी स्त्री की कामयाबी देखते हैं.. ठीक उसी दिन कोई नया रेप या पढ़ी लिखी नारी को पीटती हुए देख लेते हैं तब लगता है की कहना बहुत हद तक सफल नही हो रहा है


कुश : लेकिन इसे यू भी तो देख सकते है की किसी दिन रॅप या किसी नारी को पीटने की खबर मिले.. उसी दिन उसकी कामयाबी भी पढ़ने को मिले तो लग सकता है की अब सब बदल रहा है?
रंजना जी : हाँ यूँ भी सोचा जा स्कता है ..पर शायद अभी समाज को पोज़ेटिव कम और नेगेटिव देखने की ज़्यादा आदत है, और उसी समाज में हम भी है..



कुश : तो इसका मतलब नारी ब्लॉग में नेगेटिव नज़रिए से लिखा जाता है?
रंजना जी : मैं नेगेटिव नही लिखती.. बाकी जो लिखते हैं लिखे


कुश : जब एक कम्यूनिटी ब्लॉग में लिखा जाता है तो वहा व्यक्तिगत सोच क्या मायने रखती है? क्या आपके विचार वहा के बाकी लोगो से अलग है ?
रंजना जी : हाँ विचार सबके व्यक्तिगत हो सकते हैं ..वैसे मेरे अपने ख्याल पोज़ेटिव सोच से ज़्यादा मिलते हैं.. मुझे कामयाबी पर लिखना जयदा पसंद है जिससे औरो को सीख मिल सके..


कुश : क्या वजह है की नारी मुक्ति या स्त्री विमर्श की बात करने वाले ब्लॉग पर अक्सर कमेंट नही देखे जाते जबकि उसी ब्लॉग के लेखको की व्यक्तिगत ब्लॉग पर कमेंट होते है?
रंजना जी : आपको समीर जी की हिन्दी चिट्ठाकारी पोस्ट याद है :) बस वही हाल है जब कई एक साथ मिल कर लिखते हैं तो शायद सामने वाले को पिटने का डर ज्यादा होता है :) मजाक कर रही हूँ ...मेरे ख्याल से सबके अपने व्यक्तिगत विचार है इस बारे में ,,जब जब नारी विमर्श की बात होती है तो अक्सर न ख़तम होने वाली बहस शुरू हो जाती है और हल तो सबने अपनी समस्या का ख़ुद ही तलाश करना है जबकि व्यक्तिगत ब्लॉग में शायद बात दिल तक जाती है और विषय में अलग होते हैं ..तो पढने वाले पाठक भी अधिक मिल जाते हैं ..


कुश : तो क्या इसका मतलब नारी विमर्श वाले सभी ब्लॉग्स सिर्फ़ बहस करने के लिए है?
रंजना जी : नही यह वह मंच है जहाँ समस्याओं का हल आपसी बातचीत से निकाला जा स्कता है
एक संदेश तो उन नारियों तक देने की कोशिश होती है जो इस वक़्त किसी दुविधा से गुजर रही हैं

कुश : यह तो बड़ी अच्छी बात है, अब तक कितनी समस्याओ का हाल निकाला जा चुका है?
रंजना जी : हल कितना निकला पता नही पर नारी ब्लॉग में निरन्तर सदस्यों की बढ़ती संख्या बताती है की वह यहाँ सार्थक बातचीत कर सकती है

कुश : तो आपके अनुसार किसी ब्लॉग की सफलता का मापदंड उसके सदस्यो की संख्या है?
रंजना जी : कुश तुम तो मुझे पिटवाओगे, बहुत शरारती सवाल पूछ रहे हो..


कुश : कुश : हा हा हा! तो अब समझ में आया आपके.. खैर हमारे पाठको ने आपसे इतने अच्छे अच्छे सवाल पूछे है तो आप भी अच्छे से उनका जवाब दीजिएगा.. आइए चलते है हमारे पाठको के सवाल की ऑर
कुश : आपके जीवन का कोई ऐसा वाक़या जिसे याद करके किसी की गमी में बैठे बैठे भी हसी आ जाए? - पल्लवी जी
रंजना जी : जम्मू में हमारे मकान मालिक जिन्हें उनके बच्चे बाबू जी और हम लोग डब्बू जी कहते थे उनकी एक आदत बहुत अजीब थी वह तेज बारिश आने पर छाता ले कर अपने घर के आँगन में लगे निम्बू ,अमरुद और बाकी पौधो को पानी देते थे ..और मैं यदि घर में हूँ तो अपने निम्बू के पेड़ पर लगे निम्बू गिनना नही भूलते थे जिन्हें में उनकी नजर बचा कर चुरा लिया करती थी ..


कुश : आपको लिखने की इतनी ऊर्जा कौन प्रदान करता है? नीरज जी
रंजना जी : मेरे लिखे को पढने वाले पाठक .जब उनकी ढेरों मेल मेरे पास आती है ..:) जनून भी है कुछ न कुछ हर वक्त पढने लिखने का ....अच्छा है न ...कहते हैं कि खुराफाती दिमाग को खाली नही रहना चाहिए :)


कुश : कोई ऎसा वाक़या, जो आप भूलना चाहती हों ? डॉ अमर कुमार
रंजना जी : हाँ एक वाकया जब मेरी बड़ी बेटी जब ४ साल की थी तो दूसरी मंजिल से गिर गई थी और उसके बाद के ७२ घंटे मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गए थे ..ईश्वर की असीम कृपा रही कि वही ७२ घंटे हम पर भारी पड़े उसके बाद वह ठीक हो गई ..जाको राखे साईँ मार सके न कोय ...:)उस हादसे को मैं जिंदगी में कभी याद नही करना चाहती ..


कुश :आपको किन किन लेखक या फिर किन किन किताबों ने बिगाड़ा? - सुशील जी
रंजना जी : हा हा सही है यह भी .बहुत से लेखको का लिखा पढ़ा है धर्मवीर भारती ,इस्मत चुगताई ,आबिद सुरती पर .मुझे सबसे ज्यादा बिगाडा अमृता जी ने फ़िर शिवानी , .गुलजार और मीना जी की लिखी नज़मो ने मेरे सपनो को वो आसमान दे दिया जहाँ आज भी मेरा खुराफाती दिमाग अपनी उड़ान भरता रहता है :)


कुश : अगर अमृता जिंदगी में ना आयी होती तो क्या तब भी आप ऐसी ही होती ? - अनुराग जी
रंजना जी : ऐसी होती से क्या मतलब है आपका :) अच्छी या बुरी ? मतलब कैसी हूँ मैं?
हा .हा अनुराग जी पहले आप जवाब दे
फ़िर मैं बताती हूँ कि मैं क्या हूँ और क्या हो सकती हूँ :) ...

कुश : मुझे किसी ने बताया था कि एक अच्छा रिपोर्टर अच्छा लेखक नहीं हो सकता है। कविता तो उसके बस की ही नहीं है, क्या यह सही है? -मन्विन्दर जी
रंजना जी : जिसने भी कहा वह उसका अपना ख्याल होगा :) ऐसा कोई जरुरी नही है, कविता दिल की हालात की भावना से जन्म लेती है और वह जब दिल में उमड़ती है तो यह नही देखती की उसको लिखने वाला रिपोटर है या कवि लेखक
जिस भाषा में हम बात करते हैं ,उसी भाषा में साहित्य सृजन करना कहाँ तक तर्क-संगत है ....

यह तो बड़े बड़े लेखक गण ही बता सकते हैं .:) मैं अदना सी कुछ भी लिखने वाली क्या कह सकती हूँ इस विषय में .....मुझे तो अपनी उसी भाषा में लिखना अच्छा लगता है जो आम बोल चाल की है क्यूंकि मुझे लगता है वही सहज है लिखने में अपनी लगती है और दिल की बात दिल तक पहुँच जाती है ...


कविता और गजल में कोई एक चुनना हो, तो कविता लिखना पसंद करेंगी अथवा गजल?

अशोक जी मैं कविता लिखनी पसंद करुँगी ..गजल लिखने में अभी बहुत छोटी कक्षा की विद्यार्थी हूँ ..सीख रही हूँ अभी लिखना इसको ..:)


१.अगर आपको अपने से कोई एक सवाल पूछना हो तो क्या पूछेंगी?anup ji
२.उस सवाल का संभावित जबाब क्या है?

:) मैं तो रोज़ ख़ुद से कई सवाल करती हूँ ..शायद आपने पढ़ा नही मेरे ब्लॉग के परिचय में ख़ुद से बात करने की बुरी आदत है मुझे :) चलिए आपको भी बता देते हैं की रंजू ख़ुद से क्या सवाल पूछती है :) कि क्या आज रंजू ने कोई एक ऐसा काम किया जिस से किसी को खुशी मिली ..या कोई ऐसा काम जिस से किसी को दुःख पहुँचा हो ? यदि खुशी दी है तो जिंदगी का एक दिन जो आज है वह सफल हो गया और नही तो जिंदगी का एक दिन जो बीत गया वह बेकार हो गया :)


ब्लाग जगत को महिलाएं क्या दे रही हैं और महिलाओं को ब्लाग जगत से क्या मिल रहा है। abraar ahamd
मैं आपका प्रश्न शायद सही से समझ नही पा रही हूँ ..यदि आप एक ब्लागर की हेसियत से पूछ रहे हैं तो जो एक पुरूष ब्लाग जगत से हासिल कर रहा है वही महिला भी कर रही है ..क्यूंकि ब्लॉग स्त्रीलिंग या पुलिंग लेखन में अलग अलग नही बँटा है ...पर यदि आप आज की महिला के बारे में पूछ रहे हैं तो यह तो सब जानते हैं कि कंप्यूटर की दुनिया ने सब तरफ क्रान्ति ला दी है ..एक महिला जो अभी तक सिर्फ़ घर में गृहणी थी वह घर में ही रह कर घर की चार दिवारी से निकल कर तकनीकी जानकारी से परिचित हो रही है दुनिया को जान रही है अपनी नजर से पढ़ कर लिख कर ... .और इस से उसको भी आत्मसंतुष्टि मिल रही है जो एक पुरूष ब्लागर को :)


कौन कौन से ब्लॉग पढ़ना नहीं पसंद, जरा दो तीन नाम तो बताईये?? और क्यूँ?SAMEER JI

समीर जी आप को तो मैं ब्लाग जगत का हनुमान समझती हूँ ..जो पलक झपकते ही संकट मोचन बन कर सबका संकट हर लेते हैं ..पर लगता है आपकी ड्यूटी बदल गई है यह प्रश्न लिखते वक्त ..नारद मुनि लग रहे हैं इस वक्त आप मुझे :) नारायण नारायण !!
तो सुनो प्रभु जी मुझे राजनीति बिल्कुल पसंद नही है ,इस लिए उस से सबंधित ब्लाग भी नही पढ़ती हूँ ..और यह क्या अनर्थ कर रहे हैं प्रभु ..नाम में क्या रखा है :)



मुझे किसी ने बताया था कि एक अच्छा रिपोर्टर अच्छा लेखक नहीं हो सकता है। कविता तो उसके बस की ही नहीं है, क्या यह सही है?

जिसने भी कहा वह उसका अपना ख्याल होगा :) ऐसा कोई जरुरी नही है ..कविता दिल की हालात की भावना से जन्म लेती है और वह जब दिल में उमड़ती है तो यह नही देखती की उसको लिखने वाला रिपोटर है या कवि ..लेखक
मेरा दूसरा सवाल,
क्या यह सच है कि दर्द से गुजर कर ही लेखनी में निखार आता है? दर्द की स्याही से ही गजल लिखी जाती है?

किसी ने कहा है ..
खाली जगहें भरते रहना अच्छा है
कागज काले करते रहना अच्छा है !:)

दर्द और खुशी तो साथ साथ चलते हैं जिंदगी के ...कौन किस हालत में क्या लिख कर कमाल कर जाए कौन जाने :) पर मेरा अपना ख्याल है की दर्द में लिखा दिल के हर ज़ख्म को भर देता है ...मेरी ही लिखी कुछ पंक्तियाँ है ..जिनको मैं हजल कहती हूँ :)

दर्द के प्याले में डूबा हर लफ्ज़ अच्छा लगा
यही है ढंग जीने का तो सनम ,अच्छा लगा

इक कोहरा सा बिछा है हर रिश्ते के दरमियाँ
इनको उम्मीद के उजाले में देखना अच्छा लगा

हर तरफ़ यहाँ कहने को इंसान ही है सारे
इस बस्ती में सबको आइना दिखाना अच्छा लगा

बाकी फ़िर कभी :)




कुश : बढ़िया जवाब रहे आपके.. अब वक़्त है रॅपिड फायर राउंड का. शुरू करते है हमारा रॅपिड फायर राउंड

कुश : रंजना - रंजू
रंजना जी : रंजू


कुश : एकता कपूर - करीना कपूर
रंजना जी : दोनों बर्दाशत नही


कुश :
ज़्यादा पैसा - थोड़ा प्यार
रंजना जी : थोड़ा प्यार ...थोड़े से पैसे के साथ ..महंगाई बहुत है भाई :)


कुश : घर की दाल - बाहर की मुर्गी
रंजना जी : घर की दाल .शुद्ध शाकाहारी हूँ :)


कुश : चलिए अब बारी है हमारे वन लाइनर राउंड की

कुश :अमृता प्रीतम
रंजना जी : बिंदास मोहब्बत का एक नाम


कुश :अनुराग आर्य
रंजना जी : एक बेहतरीन संवेदन शील इंसान जिस से हर कोई दोस्ती करना चाहता है


कुश : ब्लॉगिंग
रंजना जी : दिल की बात दूसरों तक पहुंचाने का बेहतरीन जरिया ..


कुश : कुश की कॉफी
रंजना जी : बहुत अच्छी संतुलित मिठास लिए जो आपनी बातो के झाग से होंठो पर मुस्कान चिपका देती है :)


कुश : काफ़ी बढ़िया राउंड रहा. अब बारी है हमारी खुराफाती कॉफी की जिसे पीकर आपको देने होंगे खुराफाती सवालो के खुराफाती जवाब

कुश : अगर आप पुरुष होती तो?
रंजना जी :तो मैं इमरोज़ की तरह किसी अमृता से मोहब्बत करती ..हा हा :)



कुश : नाच नही जानने पर आँगन टेढ़ा ही क्यो होता है?
रंजना जी : रंजू कैन डांस :) जिन्हें नही आता उनसे पूछो


कुश जी: अगर आप 1 करोड़ रुपया जीत जाए तो सबसे पहला काम क्या करेंगी?
रंजना जी :वाह कुश जी लिफ्ट होने के सपने दिखा रहे हैं :):) थोडी सी तो लिफ्ट ...तो आधा मैं जो बच्चे देख नही सकते [मैं एक अंध महाविद्यालय में समय मिलने पर जाती हूँ ] उन बच्चो के इलाज मैं लगा देती ताकि वह यह खुबसूरत दुनिया देख सके और आधा घूमने और किताबे खरीदने पर लगा देती


कुश : बिना दूध, पत्ती और शक्कर की चाय कैसे बनाएँगे?
रंजना जी : कुश आप काफ़ी बनाते पिलाते चाय बनाना भूल गए हैं शायद :)तो कहवा या टी बेग्स उबले पानी में डाल कर बना लो लगता है आपने कभी फौजी चाय नही पी :)


कुश :अगर पार्ट्नर फिल्म आपको लेकर बनाई जाए तो आप ब्लॉग जगत में से किसे अपना पार्ट्नर चुनेंगी?
रंजना जी :अगर यह सवाल स्त्रीलिंग या पुल्लिंग के बीच का चुनाव होता तो खुराफाती होता ..:) मैं घाघुती जो को अपना पार्टनर चुनती .उनके साथ बीते पल मैं भूल नही पाती :)

कुश : चलते चलते कुछ ऑर सवाल, हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य कैसा देखती है आप?
रंजना जी : बहुत उज्जवल ..आने वाला वक्त अच्छा होगा हर लिहाज से हिन्दी ब्लागिंग में .साहित्य .कविता और अन्य विषय पर अच्छी जानकारी मिलेगी .


कुश : हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहना चाहेंगी आप?
रंजना जी : बस यही की हिन्दी भाषा को बढावा दे सार्थक लिखे ...बेकार की बहस में न पड़े ..वैसे यह एक परिवार है और सबके विचार मिले यह जरुरी नही पर उसको सभी सभ्य भाषा से सुलझाए और नए हिन्दी ब्लागेर्स का उत्साह बढाए वैसे यहाँ सब बहुत ही समझदार इंसान है पर अध्यपिका होने की आदत से एक छोटा सा लेक्चर मौका मिलते ही मैंने दे दिया इसको अन्यथा न ले :)

कुश : बहुत अच्छे जवाब रहे आपके रंजना जी.. मान तो नही है लेकिन इस इंटरव्यू को अब यही विराम देना पड़ेगा.. हमे बहुत अच्छा लगा आप यहा आई और आपने अपने जीवन की कई अच्छी बुरी बाते हमारे साथ शेयर की. .बहुत बहुत धन्यवाद आपका..
रंजना जी : मुझे भी बहुत अच्छा लगा.. यहा की कॉफी वाकई में बहुत बढ़िया है..


कुश : शुक्रिया रंजू जी. तो ये लीजिए ये है आपका गिफ्ट हैम्पर..
रंजना जी : शुक्रिया कुश! बहुत बहुत शुक्रिया


तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का पाँचवा एपिसोड.. रंजना जी के साथ, आशा है आपको पसंद आया होगा.. अपने विचार लिख भेजिएगा हमे.. अगली मुलाकात में हम फिर हाज़िर होंगे अपने ही बीच के एक ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए नमस्कार