नमस्कार दोस्तो,
आप सबके स्नेह और आशीर्वाद से एक बार फिर हाज़िर है 'कॉफी विद कुश' एक नयी साज़ सज्जा और नये रूप में..
एक बात की खुशी मुझे और है की इस नये रूप में हमारे मेहमान है अपनी नवीनताओ से परिपूर्ण ग़ज़लो और आलेखो के स्वामी नीरज जी से.. ये कॉफी विद कुश का सौभाग्य है की नीरज जी हमारे साथ आए और कुछ देर रुबरु बैठे.. आप सबका अधिक समय ना लेते हुए.. मैं आमंत्रित करता हू एक कमाल के व्यक्तित्व् के धनी नीरज जी को..
कुश: आइए नीरज जी स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' में
नीरज जी : शुक्रिया कुश, बहुत खुशी हुई यहाँ आकर आख़िर मेरा नंबर भी लग ही गया
कुश: सबसे पहले तो ये बताइए कैसा लगा आपको यहा आकर?
नीरज जी : वैसा ही जैसे शाहरुख़ खान को करण जोहर के सेट पर आ कर लगा था.
कुश: हा हा शुक्रिया, ये बताइए ब्लोगिंग में कैसे आना हुआ आपका?
नीरज जी : शिव कुमार मिश्रा की कृपा से...जब उन्होंने मुझे ब्लॉग्गिंग में घसीटा कोई दस महीने पहले तब तक ब्लॉग किस चिडिया का नाम है पता ही नहीं था.उन्होंने ख़ुद ही ब्लॉग खोल के दिया और फरमान जारी कर दिया की भईया लिखो...हम उस बैल की तरह जिसे कोल्हू में जोत देते हैं चलने लगे....शिव रुकने ही नहीं देते चलाये रखते हैं...अब इस कोल्हू से तेल निकल रहा है या खल ये तो आप भली भांति जानते होंगे...
कुश: हम तो तेल ही कहेंगे, ब्लॉगर्स में किसे पढ़ना पसंद करते है ?
नीरज जी : उन्हें जो मुझे पढ़ना पसंद करते हैं....याने जिनसे अपनी पसंद मिलती है...अब नाम ना पूछना भाई, बहुत सारे हैं..और जिनको मैं पढता हूँ वो बखूबी मुझे जानते हैं..
कुश : प्राण साहब के बारे में क्या कहेंगे
नीरज जी : प्राण साहेब मेरे गुरु हैं...शायरी के पुराने उस्ताद हैं और बहुत बड़े मददगार हैं...मेरी बेवकूफी से भरी बातों पर भी गुस्सा नहीं करते...मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है.
कुश : बढ़िया! लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
नीरज जी : चीनी कुछ कम है, क्या है की हम खड़े चम्मच की काफी पीते हैं...चमचे मैं देख रहा हूँ आप रखते ही नहीं अपने पास.
कुश: हा हा आप बड़े शरारती है, अब ज़्यादा है या बचपन में भी थे ?
नीरज जी : अब की और बचपन की शरारत में कोई फर्क नहीं आया है...पत्नी(अरुणा)कहती है क्या तुम मिष्टी जैसी शरारतें करते हो...स्कूल टाइम से ही अध्यापकों की हुबहू नक़ल उतर कर सबको हँसाना परम धर्म हुआ करता था...कालेज में भी इसी क्रिया के चलते बहुत वाहवाही मिली....प्रिंसिपल की नक़ल उतारी अस्सेम्बली में और तीन दिन क्लास के बाहर खड़े रहना पढ़ा...शरारतों का सारा कोटा कालेज में पूरा किया बाद में जो बच गया उसे विरासत के तौर पर अपने दोनों बेटों में बाँट दिया.
कुश: कैसे स्टूडेंट थे आप ?
नीरज जी : मध्यम मार्गी...न कभी माउन्ट एवरेस्ट चढा और ना पाताल की गहराई नापी...बस सतह पर ही रहा...समझे ना आप???
कुश: स्कूल में शरारत नही कर पाते थे आप?
नीरज जी : नहीं...मौका नहीं मिला क्यूँ की पापा उसी स्कूल में प्राध्यापक थे...उनके साथ ही साईकिल पर पीछे बैठ कर स्कूल जाता था...एक बार उनकी क्लास में बैठ कर इंद्रजाल कामिक्स पढ़ रहा था उन्होंने देख लिया और सारे क्लास के सामने चपत जड़ दी...जो शायद उनकी पहली और आखरी चपत थी क्यूँ की उसके बाद मैंने ऐसा मौका ही नहीं दिया उनको.
कुश: फिर तो आप समीर जी की तरह क्लास बंक करने से भी वंचित रहे होंगे?
नीरज जी : जी नही क्लास बंक करने के सारे सपने कालेज में पूरे किए. मालवीय कालेज से साईकिल पर बैठ कर पोलोविक्ट्री सिनेमा तक जो करीब आठ की.मी, था,सिनेमा देखने जाते और वापस लौट आते. सिनेमा नहीं तो कालेज के पीछे की पहाडी पर घूमना बहुत पसंद था. ये समझिये की क्लास बंक ज्यादा की और अटेंड कम की.
कुश: सिनेमा देखना बहुत पसंद था आपको ?
नीरज जी : जी हा बहुत ... सिनेमा देखना बचपन से ही बहुत पसंद था और अभी भी है...मौका मिलते ही नयी फ़िल्म देखना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ. घर पर फिल्मों की भरी पूरी लाइब्रेरी है...
कोई आठ साल का रहा होऊंगा जब एक दिन मम्मी और मेरी बुआ करवा चौथ के दिन दोपहर का शो देखने रिक्शा पर सिनेमा घर गयीं और मैं छुप छुप के उनका पीछा करता पहुँच गया...मुझे देख कर वो हैरान हो गयीं...झक मार कर मुझे भी फ़िल्म दिखाई...फ़िल्म थी. "दिया और तूफ़ान"
कुश : हा हा हा !! सुना है एक ही दिन में दो दो फिल्म देखने का भी रिकॉर्ड बनाया है आपने?
नीरज जी : जी हाँ कालेज से भाग कर शायद "राम और श्याम" और "फ़र्ज़" दोनों एक ही दिन एक के बाद एक शो में देखीं.फिल्मों का भारी शौक हुआ करता था ,शौक तो अभी भी है लेकिन कालेज से भाग कर फ़िल्म देखने में जो आनंद आया करता था वो अब नहीं आता.
कुश : ब्लॉग जगत के राम और श्याम किसे कहेंगे आप?
नीरज जी :ज्ञान भईया और शिव कुमार मिश्रा को...जहाँ ज्ञान भईया धीर गंभीर हैं वहीँ शिव मनमौजी हैं..
कुश: बचपन में किसी बात से डरते भी थे आप ?
नीरज जी : गणित के होम वर्क से....राक्षस से भिड़ना मंजूर था लेकिन गणित के सवाल से सिट्टी पिट्टी गम हो जाती थी...बाद में गणित के करण ही इंजीनियरिंग में प्रवेश मिला...प्रभु की लीला अपरम्पार है...जिससे डरो वो ही पार लगाती है.
कुश: कहते है गुलाबी नगरी वाले बड़े दिलवाले होते है आपका दिल पहली बार किस पर आया था ?
नीरज जी : पहली और आखरी बार जिस पर दिल आया वो "अरुणा", अब मेरी पत्नी है, दूर दृष्टि कमजोर होने के करण पड़ोस की लड़की पर दिल आया....दोनों घरों के बीच सिर्फ़ चार फुट ऊंची दीवार ही है....हम दोनों जब कक्षा सात में थे तब से एक दूसरे के पड़ोस में रहने आए...एक साथ खेले, बड़े हुए, पढ़े और अब जीवन साथी हैं...
कुश : वाह कितनी प्यारी बात है, ये बताइए आपके पुराने शहर और हमारे वर्तमान शहर 'जयपुर' के बारे में क्या कहेंगे आप?
नीरज जी : पुराना शहर जैसे "मधुबाला" और नया जैसे "ऐश्वर्या..."
कुश: बहुत खूब! ये बताइए लिखने का शौक कब से हुआ?
नीरज जी : पिछले दो साल से...इससे पहले कालेज में छोटे मोटे हास्य नाटक लिखे, मंचित किए, खूब चर्चित हुए...एक आध तुकबन्दियाँ भी की...लेकिन..लिखना अभी शुरू किया.
कुश: आप जिस पोस्ट पर हैं उस में इन सब कामों के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं? नीरज जी : जहाँ चाह वहां राह...अपनी रुचियों को कभी मरने नहीं देना चाहिए....रही बात समय की तो अगर आप के पास अपनी एक टीम है जिसे आप ने काम करने की पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी है, तो फ़िर आप के पास करने को कुछ नहीं रह जाता सिवाय ब्लॉग्गिंग करने के.
कुश: तो ब्लॉग्गिंग से आप को क्या लाभ हुआ?
नीरज जी : पूछिए मत...सबसे बड़ा लाभ तो ये की एक गुमनाम व्यक्ति को इस लायक बनाया की उसका इंटरव्यू आप द्वारा लिया जाए.....ब्लॉग्गिंग से मुझे बहुत ही विलक्षण लोगों के संपर्क में आने और उन्हें पढने का मौका मिला...मुझे लगता है की अगर मैं उनके संपर्क में ना आता तो शायद जीवन में बहुत कमी रह जाती. अनजान व्यक्तियों ने ना मुझे अपनाया बल्कि इतना प्यार दिया की उस से हमेशा अभिभूत रहता हूँ.
कुश : आपके ब्लॉग की सबसे पॉपुलर पोस्ट 'खोपोली' के बारे में बताइए?
नीरज जी : नौकरी के सिलसिले में पाँच साल पहले यहाँ आया. खोपोली एक छोटी सी खूबसूरत जगह है जिसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है...मुझे लगा की प्रसिद्द जगहों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन एक अनजान जगह जो इतनी खूबसूरत है लोगों की नज़रों से बची हुई है... इसीलिए ये श्रृंखला शुरू की थी...सबने रूचि तो दिखाई लेकिन आया कोई नहीं...मुझे इस बात का दुःख है.
कुश : रेल गाड़ी से भी ख़ासा लगाव है आपका ?
नीरज जी : जी हाँ मेरे नाना रेलवे के इंजिनियर और दादा गार्ड थे...बचपन से ही रेल ने सम्मोहित किया मुझे..उसकी चलने से होने वाली संगीत की ध्वनि मुझे अभी भी अपनी और खींचती है.
कुश : आपको गाने का शौक भी है!
नीरज जी : बहुत...लेकिन बाथरूम में...संगीत से मेरा लगाव पागलपन की हद तक है...विशेष रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत.. मेरी माँ और मौसी बहुत अच्छा गाती हैं..अभी भी उनसे आप फिल्मी या गैर फिल्मी गीत सुन सकते हैं...मम्मी जो अब करीब अस्सी वर्ष की हैं,तो आपको एक दम ताजा फिल्मी गीत सुना कर चकित कर सकती हैं. पापा को सितार बजाने का शौक था...घर में उनके समय बहुत से साज़ रखे रहते थे.
कुश : आपने विश्व में इतनी जगह पर भ्रमण किया है सबसे बढ़िया अनुभव कब रहा?
नीरज जी: एक बात मैंने अनुभव की, जो बहुत बढ़िया लगी.....दुनिया के सारे इंसान एक जैसे हैं.....मैं जहाँ कहीं गया...लोग मुझको देख कर हँसे.
कुश : हा हा हा..
नीरज जी : देखिए आप भी हँसने लगे
कुश: सुना है विदेशी पुलिस ने पकड़ भी लिया था आपको ?
नीरज जी : अरे मत पूछिए, हुआ यूँ की जकार्ता की एक भीड़ भाड़ वाली मुख्य सड़क है...जालान सुधीर मान...छे लेन वाली सड़क है...उसके एक तरफ़ हम खड़े थे और हमें दूसरी दिशा में जाना था...ओवर ब्रिज कोई आधा की.मी. दूर था..सोचा चलो दौड़ के पार करते हैं...आधा रास्ता पार किया और बीच में बने डिवाईडर पर खड़े थे की पुलिस आगयी...और हमें गाड़ी में बिठा कर थाने ले गयी...क्यूँ की हम वहां विदेशी थे सो सीधे इंचार्ज ने बुलाया और कहा की अगर आप सड़क दुर्घटना में मर जाते तो? मैंने निडर हो कर कहा की "सर हमारे देश में सड़क ऐसे ही पार करनी सिखाई जाती है."..वो बोला क्यूँ? तो मैंने कहा "क्यूँ की हमारे देश की जनसँख्या बहुत जयादा है..."मेरे जवाब को सुन कर वो बहुत देर तक हँसता रहा और बाद में हमें छोड़ दिया. लेकिन एक बार तो विदेशी धरती पर पुलिस के हाथ पकड़े जाने पर हमारी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी...
कुश: हा हा! सुना है आप बहुत खुल कर हँसते हैं.
नीरज जी : हा हा हा ...जो व्यक्ति खुल के हंस नहीं सकता वो खुल कर रो भी नहीं सकता...जीवन जीने का नाम है...हंसने के लिए किसी चुटकले या घटना की जरुरत नहीं पढ़ती...रोज की छोटी छोटी घटनाओं में हास्य भरा रहता है...आप अपने देखने, आंकने का नजरिया बदलिए देखिये फ़िर कैसे हास्य आप के चारों और बिखरता है.
कुश: खाने में क्या पसंद नही आपको ?
नीरज जी : बैंगन... बाकि सबकुछ खा लेता हूँ...कब बुला रहे हैं आप? लेकिन शाकाहारी भोजन होना चाहिए..
कुश : कॉलेज की मेगज़ीन में आपकी फोटो भी छपी थी?
नीरज जी : तीन साल तक लगातार हमारी फोटो "प्राइड ऑफ़ आवर कालेज" शीर्षक के साथ कालेज मैगजीन में छपती रही थी. उनदिनों कालेज का कोई फंक्सन हमारी टांग अढ़ाये बिना सफल नहीं होता था. कालेज छोड़ने के दस साल बाद तक के छात्र हमारे नाम से वाकिफ थे.
कुश : मशहूर अभिनेता उत्पल दत्त जी से मुलाकात के बारे में बताइए?
नीरज जी : इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष के दौरान सन 1972 जयपुर में "पृथ्वीराज मेमोरियल प्ले कम्पीटीशन "मनाया गया था, जिसमें उत्पल दत्त, मनमोहन, ऐ.के.हंगल, कादर खान, शबाना आजमी, कीमती आनंद, बादल सरकार, विजय तेंदुलकर और शशि कपूर जैसी हस्तियां आयीं. उस वक्त हम जयपुर थिएटर में बहुत सक्रिय थे. उत्पल दत्त जी से मुलाकात हुई और उनसे बहुत कुछ सीखा. इतने प्यार से मिले जैसे बरसों की पहचान हो. मैं उनकी सादगी और थिएटर के ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ.
कुश : साइकल का बड़ा योगदान रहा आपकी ज़िंदगी में?
नीरज जी : सही कहा. साईकिल ना होती तो पता नहीं क्या होता...कालेज के अन्तिम
वर्ष की बात है अपनी पडोसन (अरुणा...अब तो आप पहचान ही गए होंगे) से उसकी नई की नई साईकिल मांग कर कालेज फ़िल्म देखने गया वहां नई साईकिल कोई चुरा ले गया...वापस मुहं लटका के घर आया तो पडोसन ने कहा कोई बात नहीं...मैंने कहा मैं इसकी भरपायी कैसे कर पाउँगा...??? उसने कुछ कहा नहीं....लेकिन बाद में मेरी पत्नी बन के घर आगयी...साइकिल की भरपायी करने जो अभी तक नहीं हो पायी है. हा हा हा...
हा हा हा! बहुत बढ़िया रही साइकल दास्तान, अब वक़्त आ गया है हमारे प्यारे प्यारे पाठको के न्यारे न्यारे सवालो का
कुश : आपकी सदाबहार मुस्कुराहट का राज़ क्या है? - पारूल जी
नीरज जी :" कल किसने देखा है...आए या ना आए" गीत हमेशा याद रखना.
कुश : नीरज जी , आप अपने को क्या कहेंगे रूमानी या रूहानी? - अभिजीत जी
नीरज जी :ना रूमानी ना रूहानी काम अपुन का बस शैतानी....अभी जी रूह के बिना रूमानी आप हो नहीं सकते.
कुश : खोपोली दिखलाय के लीयो है मनवा जीत
जो पहुच गये हम सारे तो कहा जाओगे मीत ? -"अरुण जी
नीरज जी : आप के हियाँ....और कहाँ?
मजाक की बात अलग है अरुण जी, आप सब आयें कम से कम मेरा एक सपना तो सच हो.
वाह जी बढ़िया जवाब रहे आपके अब चलते है रॅपिड फायर राउंड की तरफ
कुश : लेडीज़ साइकल - जेंट्स साइकल
नीरज जी : जेंट्स साइकल. लेडीज साईकल चलाकर बहुत भारी कीमत अदा करनी पढ़ी थी बंधू.
कुश : जयपुर - मुंबई
नीरज जी : जयपुर...आज भी है और कल भी रहेगा.(अपुन की चोइस)
कुश : स्कूल लाइफ - कॉलेज लाइफ
नीरज जी : कॉलेज लाइफ
कुश : शाहिद करीना - सैफ करीना
नीरज जी : सिर्फ़ करीना
कुश : गुलज़ार जगजीत सिंह - गुलज़ार पंचम
नीरज जी :गुलज़ार गुलज़ार गुलज़ार...किसी के साथ भी.
अब बारी है हमारे वन लाइनर राउंड की
कुश : शिव कुमार मिश्रा
नीरज जी : उस्तादों के उस्ताद
कुश : अरुणा जी
नीरज जी : अंधे की लाठी
कुश : मिष्टी
नीरज जी : इश्वर का रूप
कुश : खोपोली
नीरज जी : जहाँ कोई नहीं आता
कुश : कुश की कॉफी
नीरज जी : सबसे स्वाद
अब वक़्त है हमारी खुराफाती कॉफी का जिसे पीकर आपको देने होंगे कुछ खुराफाती सवालो के जवाब
कुश : यदि आप पी एम होते तो सरकार गिरने से कैसे बचाते?
नीरज जी : बोलता जिसने सरकार के लिए वोट नहीं दिया उसे मेरी ग़ज़लें पढ़नी पड़ेंगी. मायावती जी सबसे पहले सरकार के समर्थन में आ जातीं .
कुश : अगर आपको किसी ब्रांड का एड करना हो तो किसका करेंगे?
नीरज जी : काफी का जो आप पिला रहे हैं
कुश : पहाड़ खोदने पर चूहा ही कयो निकलता है?
नीरज जी : क्यूँ की हाथी को बिल खोदना नहीं आता .
कुश : यदि आपके भी रावण की तरह दस सर होते तो?
नीरज जी : आप की परेशानी बढ़ जाती...सवाल कौनसे सर से पूछते?
कुश : गुलाब जामुन का नाम 'गुलाब जामुन' क्यो पड़ा?
नीरज जी : क्यूँ की हलवाई "गुलाब चंद" ने जामुन खाते हुए उसका अविष्कार किया था. सन्दर्भ: पुस्तक"भारतीय मिठाई का इतिहास" पृष्ठ ३९
कुश : चलते चलते ये बताइए हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा देखते है आप?
नीरज जी: आप जैसे युवाओं के ब्लॉग्गिंग करने से भविष्य उज्जवल है.
कुश : अरे आपने ये तो बताया नही की कॉफी विद कुश का नया रूप कैसा लगा आपको?
नीरज जी: बहुत ही बढ़िया.. जैसे ब्राइडल मेकअप के बाद दुल्हन
कुश : और अंत में हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहेंगे आप?
नीरज जी : कमेन्ट करने जैसा पावन कार्य हमेशा संपन्न किया करें..
कुश : जाने से पहले आप हमारे गेस्ट बुक में अपने ऑटो ग्राफ देते जाइए
नीरज जी : क्यो नही.. मुझे खुशी होगी.. ये लीजिए
कुश : बहुत बहुत धन्यवाद आपका, वाकई आज आपसे बात करके हमे बहुत अच्छा लगा नीरज जी ये रहा आपका गिफ्ट हेम्पर और साथ में एक बेक्ड समोसा..
नीरज जी : मेरा भी सौभाग्य रहा की आप के साथ मुझे भी अपने अतीत में झाँकने का सुनहरी अवसर मिला...पुरानी दिलचस्प यादों को दुहराना हमेशा अच्छा लगता है. बेक्ड समोसा तो ग़ज़ब का बनाया है आपने लेकिन रूबी को धन्यवाद दिया की नहीं जिसने बनाना सिखाया है ???
जी ज़रूर, एक बार फिर आपका बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी, यहा आने के लिए और हमारे एपिसोड में चार चाँद लगाने के लिए..
तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का आठवाँ एपिसोड एक नये रंग रूप में ब्लॉग जगत की एक जानी मानी हस्ती नीरज गोस्वामी जी के साथ, ज़रूर बताएगा कैसा लगा आपको.. अगले सोमवार को हम फिर मिलेंगे हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ तब तक के लिए शुभम!