टोस्ट विद टू होस्ट : एलो जी सनम हम आ गए..

नमस्कार दोस्तों.. एक लम्बे इन्तेज़ार के बाद हम फिर हाज़िर है.. कॉफी के अरोमा के साथ.. स्वागत है आपका कॉफी के सीजन टू 'टोस्ट विद टू होस्ट ' आज हमारे साथ जो मेहमान है उनका परिचय देने के लिए मैंगुजारिश करूँगा शिव कुमार मिश्रा जी कि वे आप सभी से हमारे आज के मेहमान का परिचय करवाए..

दोस्तों, इस बार टोस्ट विद टू होस्ट के मेहमान है डॉक्टर अमर कुमार जी... पूरे ब्लॉग-जगत में अपनी बेबाक राय के लिए लोकप्रिय डॉक्टर साहब तीन सक्रिय चिट्ठों के स्वामी हैं. ब्लॉग का नाम भले ही बिनावजह हो, लेकिन डॉक्टर साहब बिनावजह कुछ नहीं लिखते. चिट्ठाकारी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डॉक्टर साहब को तीन बजे सुबह भी लिखने में कोई गुरेज नहीं है.

अपने एक और चिट्ठे काकोरी के शहीद पर आप इतिहास से जुड़े उस महत्वपूर्ण घटना के बारे में लिखते हैं, जिसका देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान है. स्वभाव से संजीदा मगर बालपन वाली मस्ती के मालिक. उनका यह मालिकाना अंदाज़ उनके चिट्ठे अचपन पचपनबचपन पर बखूबी दीखता है.

हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ उर्दू पर भी सामान अधिकार रखनेवाले डॉक्टर साहब आज हमारे साथ हैं...


अनुराग : शुक्रिया मिश्रा जी.. बहुत बहुत शुक्रिया आपका..

कुश : स्वागत है आपका डा साहब टोस्ट विद टू होस्ट के पहले एपिसोड में.. ऐसा पहली बार हुआ कि हम दो मेजबान कॉफी हाथ में लिए बैठे है ऑर मेहमान ही गायब ?

डा अमर: इतना इंतेज़ार करवाने के लिये माफ़ी मागूँगा तो तुम कहोगे कोई बात नहीं.. सो इनको बरबाद न करते हुये माफ़ी नहीं माँगता !

क्या करता, अचानक अम्मा अस्वस्थ हो गयीं.. और तेरे शो की हिरोईन बन बैठीं... वह अब ठीक हैं.. सो हाज़िर हूँ !

कुश : सबसे पहले तो आप उस सवाल का जवाब दीजिए जिसने मुझे बहुत परेशान किया .. शायद और लोगो को भी किया हो.. आख़िर आपके कितने ब्लॉग है?

डा अमर : पहले तो आप मेरे सवाल का ज़वाब दीजिये कि मैं धमाकेदार कहां से दिख रहा हूं, ब्लाग जगत में एक से एक धमाके पहले से ही है और मेरी शख्सियत तो महज़ कुछेक टेराबाईट डाटा और सिगनल में ही अँट जाती है !

वैसे अपुन के नवाबी हरम में ५ ब्लागी फटीचर -बेगम होती थीं, पर अब तीन बच रही हैं, आजकल निठल्ले जी कुछ तो जी को बाहर से समर्थन दे रहे हैं । अपने शहीद को उपेक्षा के इन्क्यूबेटर से निकाल रहा हूँ.. तेरे को तकलीफ़ ? ऎई अनुराग, यूँ क्यों देखे जा रहा है ? मुझे सरम लगती है, तू भी जितनी चाहे बटोर ले न ? मोफ़त का माल है, इस हरम की बेगमें ।


कुश : अलग अलग ब्लॉग बनाने की कोई खास वजह ?
डा अमर : अभी बतलाया तो.. ब्लागर तो तीन स्टेप में ही निकाह कबूल लेता है, जितनी बन पड़े रखों । वैसे यह थीम ओरियेन्टेड दृष्टिकोण से बनाये गये हैं, अगर डा. अनुराग, ज्ञानोदय या कथादेश में सत्यकथायें देखना पसंद करेंगे, मैं भी सभी को एक मंच पर समेट लूँगा.. है, कि नहीं अनुराग ?

अरे मुस्कुरा क्यो रहे हो ?


कुश : शुरुआत बचपन से करते है.. किस तरह रहा बचपन ?
डा अमर: यूँ देखो तो कोई खास नहीं.. हर दिन एक खास तर्जुबे से ग़ुज़रता रहा.. सबका गुज़रता है.. हाँ, वाणीदोष या हकलापन के यंत्रणादायक अनुभव ने मुझे पुस्तकोन्मुख व अंर्तमुखी बना दिया था । इस अवगुण ने इतना कुछ दिया कि इससे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है !


कुश : तो.. किस विषय पर लिखना अधिक पसंद है आपको ?
डा अमर: सामयिक विसंगतियों एवं पाखंड को मैं अधिक देर झेल नहीं पाता, सो उसी पर कुछ लिख-ऊख लेता हूँ !


" अघोषित खेमे यहाँ भी है "

..सार्थक बहसों का अभाव भी ....बुद्दिजीवी इनसे कटते है ...ओर बाकी लोग अपने निजी सरोकार से ऊपर नही उठते क्या अभिव्यक्ति हो पा रही है ? आपको क्या लगता है कुछ जरूरी बहसे....कुछ विचार विमर्श क्या यहाँ देखने को मिले है ? या सिर्फ़ उनकी उम्र २४ घंटे ही है ?

कुश : ड़ा अमर कुमार, ब्लॉगर अमर कुमार और सिर्फ़ अमर कुमार में क्या फ़र्क देखते है आप ?
डा अमर: इनको मायावती, अडवानी और मनमोहन समझ लो ! सबको फ़ोड़ कर मेरी चौथे विकल्प की सरकार चल रही है.. पर, यह भी लिख दोगे क्या ?
लिखना मत.. एक्सक्लूसिवली तम्हारे पाठकों तुमको बताता हूँ, कि यदि अपने पति.. पिता.. मातहत.. लेखक.. बास.. एण्ड आफ़कोर्स ईगो वगैरह वगैरह को एक डिब्बे में घुसेड़ने का प्रयास करोगे तो बिलबिला कर सभी तुमसे भाग खड़े होंगे । सो किसी को एक दूसरे से मिलने ही न दो !



कुश : क्या हमेशा से आप डॉक्टर ही बनना चाहते थे ?
डा अमर: यदि कहूं हां, तो ? यह न होता तो हिन्दी अंग्रेजी साहित्य या फूलपत्ती का डाक्टर होता। पर यह हुआ नहीं, पहले झटके में ही मेडिकल कालेज ने खींच लिया और यह दिन देखने पड़े !


अनुराग : (आश्चर्य से..) हिन्दी अंग्रेज़ी का..?
डा अमर: हाँ, यार ! निराला के काव्य में ' छ ' का महत्व.. या केशर और इमली -एक तुलनात्मक अध्ययन की लस्सी फेंट लो.. एक डाक्टर तैयार ! कुश को हँसी बहुत आती है.. टेलिंग यू सीरियसली.. साहित्य वनस्पतिशास्त्र और मनोविज्ञान आज भी मेरे पसंदीदा विषय हैं !


कुश : क्या बात है..! अच्छा ये बताइए ब्लोगिंग में ऐसा कुछ हुआ आपके साथ जो हमेशा याद रहे?
डा अमर: ब्लोगिंग में अगस्त २००७ में आगमन हुआ था मेरा.. उसके बाद काफ़ी कुछ देखा है वैसे.. ब्लागिंग खुद ही मौज़ा ही मौज़ा है..
बोले तोऽऽऽ.. हैंक होने से मेरे बंद पड़े ब्लाग पर अब तक आती हुई टिप्पणियाँ
और बढ़ता हुआ पेज़रैंक और फ़ीड !! ज्ञान दद्दा इसे हल करिये !

श्रीमती लवली गोस्वामी जी की रख़्शंदा को लेकर पुत्रीवत गुहार, डा. कविता की सदाशयता और निजता को लेकर उसकी चीख-पुकार..

और.. तब, जबकि सच नाम से चल रहे ब्लाग का सच सामने लाया था !
बाद में मोहन वशिष्ठ ने इस नाम से एक ब्लाग बनाया है इन सबमें मज़ेदार तो कुछ भी नहीं है, बस याद रहेगा !

बकौल डा अमर कुमार : अपने को अभी तक डिस्कवर करने की मश्शकत में हूँ, बड़ा दुरूह है अभी कुछ बताना । एक छोटे उनींदे शहर के चिकित्सक को यहाँ से आकाश का जितना भी टुकड़ा दिख पाता है, उसी के कुछ रंग साझी करने की तलब यहाँ मेरे मौज़ूद होने का सबब है । साहित्य मेरा व्यसन है और संवेदनायें मेरी पूँजी ! कुल मिला कर एक बेचैन आत्मा... और कुछ ?


कुश : आपकी टिप्पणिया बहुत उत्साहवर्धक होती है.. टिप्पणी करते वक़्त आप किस बात का ध्यान रखते है
डा अमर: पोस्ट के चरित्र के अनुसार थोड़े व्यक्तिगत स्पर्श से यह टिप्पणियां स्वतः बन जाती है । टिप्पणी गढ़ता नहीं हूं, बशर्ते पोस्ट ही आपको टिप्पणी में चिढ़ाने को न कहती हो !

..
कुश : किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करना कितना मत्वपूर्ण मानते है आप ?
डा अमर: कुछ कह नहीं सकता ! यह वर्गीकरण के हिसाब से है.. दुआ सलाम वाली रस्मी टिप्पणियाँ ,पूर्वग्रसित मन की टिप्पणियाँ, चाटुकार टिप्पणियाँ, और विवेचनात्मक टिप्पणियाँ इत्यादि सबके अपने गुण-दोष हैं, पर विचारों को आगे बढ़ाने वाली टिप्पणियों का सर्वथा अभाव है, और मातृभाषा को आगे बढ़ाने की गरज़ से तो कोई टिप्पणी अब तक तो न देखी, हाँ, यदाकदा नारे अवश्य दिख जाते हैं.. .तिस पर भी, इस दौर में टिप्पणी का महत्व है…एडसेन्स की परसी हुई थाली छिन गई तो क्या हिन्दी ब्लागर टिप्पणी-कोला से भी गये ?


कुश : ब्लॉगर्स में आप किसे पढ़ना अधिक पसंद करते है ?
डा अमर: पा. ना. सुब्रहमणियम, रिज़वाना कश्यप और सुप्रतिम बनर्जी तो अभी याद आ रहे हैं, और भी कई हैं
हिन्दीभाषी क्षेत्र से यदि डा. अरविन्द, हिमाँशु अभिषेक और पल्लवी इत्यादि का नाम न लूँ, मन ऎसा भी नहीं चाहता,
पूजा मैडम तो ऎसे चौके छक्के लगा रहीं हैं, कि युनूस भाई शरमा कर लिहाज़ में पैवेलियन ही पहुँच गये ।
पर अपने पठन को पसंद तक सीमित कर लूं तो आते हुए लोगों को कौन पढ़ेगा ? पोस्ट की विषयवस्तु, भाषाशिल्प प्रमुख है, ब्लागर गौण।

अनुराग : और ख्यातिप्राप्त लेखको में मंटो से इतर आपके पसंदीदा लेखक ?
डा. अमर : इस्मत चुग़ताई.. ज़ीलानी बानो.. मंज़ूर एहतेशाम.. विमल मित्र, रेणु, भीष्म साहनी, समरेश बसु, सामरसेट माम. एमिले ब्राँटे.. अरे देखो मालगुडी डेज़ के लेखक का नाम ही नहीं याद आ रहा है .. हर लेखक अपने आपमें अच्छा है.. पढ़ने का धैर्य होना चाहिये !


कुश : आप अपनी हर पोस्ट में आपकी धर्मपत्नी 'पंडिताइन' का भी ज़िक्र करते है.. क्या वे भी आपका ब्लॉग पढ़ती है ?
डा अमर: हाँ, क्यों नहीं ? अपने पति की गतिविधियों की निगरानी करना हर पत्नी का अधिकार है, सो उनका पढ़ना लाज़िमी है । वह मेरी पहली आलोचक और प्रशंसक भी हैं.. एण्ड समटाइम्स सेंसर भी.. वैसे श्रीमान जी ! पंडित के घर पंडिताइन होती ही हैं.. पर कायस्थ के घर पंडिताइन होने पर इतनी उत्सुकता क्यों ?

डा. अमर : यह कुश फिर हँस रहा है.. ब्रदर हँसोगे तो तुम भी फँसोगे ! अनुराग और हम 'वीर ज़वानों' के ज़ोशीले गाने पर नाचेंगे.. फ़ुरसतिया सुकुल तालियाँ बजायेंगे समीर भाई कमर मटकाने की बुकिंग ले चुके हैं..पहले आओ तो पहाड़ के नीचे :)


कुश : हा हा चिंता मत करिए ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.. तो आपके बच्चे भी पढ़ते है आपका ब्लॉग?
डा अमर: बेटी यदा कदा ही पढ़ती है और बेटा चोरी छिपे पढ़ पाता है, क्योंकि चीन में ब्लागर नहीं खुलता या बैन है सो वह प्राक्सीसर्वर से जुगाड़ लगा कर पढ़ पाता है ।

कुश : अच्छा ये बताइए ज्ञान जी का नाम अक्सर आपकी पोस्ट में दिख जाता है.. क्या इसकी कोई खास वजह है ?
डा अमर: श्री गुरुचरण सरोज रज़ निज मन मुकुरु सुधारि.. पढ़ते हैं, फिर ?
उनके मानसिक हलचल ब्लाग के ट्रांसलिटरेशन टूल में सेंधमारी कर मैंनें कई पोस्ट लिखी है । उन्होंनें ही बरहा का लिंक दिया, बात दीगर है कि अपने मन का आईना ही न पोंछ सका तो, चरणों के रज में कमल की आभा कैसे दिखे ? पर, आपके व्हाट एन आइडिया मन में यह इनडीजीनियस प्रश्न उठा ही क्यों ?


कुश : अजी वो छोडिये.. ये बताइए ज्ञान जी का एक लेख था की कॉपी पेस्ट लेखन ज़्यादा नही चलता है.. क्या आप भी यही मानते है ?
डा अमर: इसको न मानने का कोई ज़ायज़ कारण भी नहीं है । मौलिक लेखन, यदि वह असाधारण न हो, तो अपनी पहचान बनाने में समय लेता है.. जबकि ऎसा जुगाड़ु लेखन तात्कालिक रूप से तो हिट हो ही जाता है .. आगे ? अल्लाह जाने क्या होगा आगे ..
संदर्भों एवं साक्ष्यों के तौर पर कट-पेस्टीय तकनीक आपकी सहायता तो कर सकती है, पर सोच की एक निश्चित दिशा नहीं दे सकती ।
पर, भाई मेरे .. मेरा भेजा फ़्राई करने के प्रयास में आपकी पाठक दीर्घा उखड़ जायेगी ?

उनको गुदगुदाने वाले सवाल दागिये.. पर दूसरी क़ाफ़ी भी मँगवाईये । मैं मीनाक्षी से तक़लीफ़ के लिये माफ़ी माँग लूँगा,
पर एक कप क़ाफ़ी वसूलने की भी कोई हद होती है, न कुश ? :)
बाई द वे, अब तक तो पहली भी नहीं आई है.. हा हा हा

अनुराग : जी वह क़ाफ़ी..
डा अमर: अरे, चिट्ठाचर्चाकार की तरह घिघिया क्यों रहा है, बोल दे ब्लैक क़ाफ़ी पीता हूँ, दूध चीनी नहीं..

कुश : जी.. ब्लैक कॉफी??
डा अमर: अरे ब्लैक का ज़लवा है.. ब्लैक इज़ अ हैपेनिंग थिंग.. ओबामा के आने से क्या चारचाँद लगे हैं, ब्लैक में.. कि पूछो ही मत ?


कुश : हाँ ये तो सही है.. वैसे आपने ब्लॉग घोस्ट बसटर के बारे में बहुत कुछ लिखा था.. क्या आप उन्हे जानते है ?
डा अमर: यार मानोगे नहीं तुम ? फिर मैं गरिष्ठ हो जाऊँगा.. यह सोच लो ! घोस्टबस्टर जी इतने हल्के नहीं हैं, इसका ज़वाब एक कप क़ाफ़ी पर नहीं.. बल्कि नेस्ले इंडिया के हज़ार - दो हज़ार शेयर हों, तभी कोई हिन्ट देने के विषय में सोचा भी जा सकता है ।


कुश : ये तो सोचना पड़ेगा.. खैर..! क्या आपको लगता है कि हिन्दी ब्लॉग जगत में गुट बने हुए है ?
डा अमर: पूछते क्यों हैं ? आप स्वयं ही ऎसा न मानने का कोई एक कारण बताइये !
मैं तो ज़वाब पेश करके संभावित पादुका-प्रहार से निवृत हो लूँगा, लेकिन आप लँगड़ाते हुये बारात लेकर जायें.. यह तो आपके दुश्मन भी न चाहते होंगे ।
हा हा हा, डा. अनुराग, जरा सोचो यार कि यह तुम्हारे कँधे के सहारे उचक उचक कर सात फ़ेरे ले लें, तो इनका हक़ कितने प्रतिशत का बनेगा..
यह तो समीर भाई और शिवकुमार जी भी नहीं हल कर पायेंगे ।

अनुराग : आपने समीरलाल के लिये भाई और शिवकुमार जी के लिये...
डा अमर: कोई संबोधन नहीं, यही न ? मैं जानता था कि पकड़ा जाऊँगा । ई अनुरगवा बड़ी घुटी चीज है, अरे यार उन्होंने मेमो तो भेज दिया कि आपके साथ एक रिश्ता यही सही... पर क्या रिश्ता, यह उनकी एक सदस्यीय जाँच समिति, आज तक निर्धारित ही न कर पाई । हे हे हे हा हा

कुश : अमूमन आपकी टिप्पणियो में सीधी सपाट बात कही गयी होती है... क्या कभी किसी ने इसकी शिकायत की आपसे ?
डा अमर: आप तो ऎसे पूछ रहे हैं, जैसे कि ब्लागर पर गाँधीवादी बसते हों ? वह लिखें, ' कृपया मेरी अगली पोस्ट पर अवश्य पधार कर एक कटु टिप्पणी से अनुगृहीत करें ।'

एक बार संगीता पुरी और मसिजीवी जी के बीच के कुछ कुछ हो गया .. देखने मैं भी पहुँच गया, टिप्पणी कर दी कि ब्लाग के निचले दायें कोने में पड़े तिरंगे को उचित सम्मान तो दीजिये, बोहन जी..फिर, क्या हुआ होगा ? झुमका तो गिरना ही था । ज़ायज़ है भई, मैं देश के सम्मान का ठेकेदार न सही, पर भी तो नहीं ?भला बताओ, मैं कोई अमेरीकन हूँ क्या ? जो अपने झंडे का कच्छा बना लें, या ट्रेंडी नाइट गाऊन, उन्हें कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता !


कुश : लगता है आपकी बातो को समझने के लिए अलग से डिक्शनरी लेनी पड़ेगी.. वैसे अभी आप ये कॉफी लीजिये.. बिना दूध वाली.. मैं अपने लिए दूध वाली कॉफी ही लूँगा.. मैं अपनी कॉफी बनाता हूँ.. तब तक आपको अनुराग जी के हवाले करते हूँ..

डा. अमर : भई, यह क़ाफ़ी सुशील कुमार छौक्कर जी के नाम !
कपाट खुलते ही,(पहली टिपण्णी) तैय्यार होकर क़ाफ़ी का आर्डर दे दिया.. देखो, कहीं ज़म्हुआई लेते लेते सो तो नहीं गये ?

कुश : जी बिल्कुल.. अनुराग जी.. आपके लिए भी एक स्ट्रोंग काफ़ी बना देता हु..

अनुराग : शुक्रिया कुश..! मेरे लिए शक्कर ज्यादा रखना..

तो शुरू करने से पहले देखते है विडियो कांफ्रेंसिंग से हमारे साथ जुड़े अनूप जी 'फुरसतिया' आपके बारे में क्या फरमा रहे है..

अनूप उवाच
डा.अमर कुमार ने एक ही लेख नारीनितम्बों तक की अंतर्यात्रा उनके लेखन को यादगार बताने के लिये काफ़ी है। लेकिन लफ़ड़ा यह है कि उन्होंने ऐसे लेख कम लिखे। ब्लागरों से लफ़ड़ों की जसदेव सिंह टाइप शानदार कमेंट्री काफ़ी की। रात को दो-तीन बजे के बीच पोस्ट लिखने वाले डा.अमर कुमार गजब के टिप्पणीकार हैं। कभी मुंह देखी टिप्पणी नहीं करते। सच को सच कहने का हमेशा प्रयास करते हैं अब यह अलग बात है कि अक्सर यह पता लगाना मुश्किल हो जाता कि डा.अमर कुमार कह क्या रहे हैं। ऐसे में सच अबूझा रह जाता है। खासकर चिट्ठाचर्चा के मामले में उनके रहते यह खतरा कम रह जाता है कि इसका नोटिस नहीं लिया जा रहा। वे हमेशा चर्चाकारों की क्लास लिया करते हैं।

लिखना उनका नियमित रूप से अनियमित है। एच.टी.एम.एल. सीखकर अपने ब्लाग को जिस तरह इतना खूबसूरत बनाये हैं उससे तो लगता है कि उनके अन्दर एक खूबसूरत स्त्री की सौन्दर्य चेतना विद्यमान है जो उनसे उनके ब्लाग निरंतर श्रंगार करवाती रहती है।

डा.अमर कुमार की उपस्थिति ब्लाग जगत के लिये जरूरी उपस्थिति है!


डा. अमर : शुक्रिया अनूप जी.. ये मेरे लिए ख़ुशी की बात है कि आपने मेरे लिए दो शब्द कहे..

अनुराग : तो ये बताइए कि आपकी सोच क्या कहती है.. ब्लॉग लेखन को क्या कहा जाये ? स्वान्त: सुखाय या अभिव्यक्ति का साधन ?
डा. अमर : कुम्हार की मिट्टी, सलीका हो तो चाहे जो गढ़ लो स्वान्त: सुखाय एक कपट से अधिक कुछ नहीं.. फिर तो डायरी लिखो, या अपने ब्लाग पर पासवर्ड डाल दो
स्वान्त: सुखाय वाले टिप्पणी के लिये छाती क्यों पीटे या जल मरे ? अभिव्यक्ति है, भाई ! लिखोगे ऎसा कि सुगबुगाह्ट भी हो.. टिप्पणी भी चाहते हो.. आलोचना और सुझाव भी हों और आपकी अभिव्यक्ति स्वातः सुखाय है, हुँह ! यह सब क्या हैं ?

अनुराग : क्या निजी जीवन में भी आप इतने ही स्पष्टवादी है ?
डा. अमर : इससे कुछ अधिक.. खुद पर नियंत्रण नहीं रहता.. मेरे पालिश में कुछ कमी ज़रूर है !
पर, मेरा आपके पाठकों से एक प्रश्न है.. लोग स्पष्ट्वादी और स्पष्टवादिता से घबड़ाते क्यों हैं ?

अनुराग : कई बार आपकी टिप्पणी पोस्ट से भी सार्थक होती है ? ये गुण ( सेंस ऑफ़ ह्यूमर ) आपको अपने जींस में विरासत में मिला है या अर्जित किया हुआ है ?
डा. अमर : छोड़ यार, सार्थक होने का मतलब जाकर मोडरेशन के अज़दहे को समझा.. अनमनी टिप्पणियाँ सार्थक लगने लगती हैं.. और सार्थक कहलायी जाने वाली अज़दहे के पेट में होती हैं ! लोचा कहाँ है. पहले यह समझ लूँ, तब तक टिप्पणीबाजी बन्द कर रखा है !

अनुराग : आपको नही लगता कि इंग्लिश ब्लॉग में कोई सीमा रेखा नही है ...स्त्री चेतना या अभिव्यक्ति ज्यादा मुखर है ..अच्छे -बुरे दोनों रूपों में ...हिन्दी ब्लॉग में सरोकार सीमित है ?
डा. अमर : सरोकार सीमित है ? अजी सरोकार ही कहाँ हैं ? सरोकार तो टिप्पणी बक्से में गुम हो गया.. हा हा हा

" बहुत खूब...उत्तम "

कहने वाले लोग क्या इसलिए ज्यादा है की लिखने वाले भी आत्म-मुग्ध है? आलोचना स्वीकारते नही ? या वास्तव में एक "विजन" की कमी है? स्वस्थ विचारधारा का अभाव है?

अनुराग : इन सबमे कोई ख़ास कारण देखते है..?
डा. अमर : चिट्ठाकारी के प्रतिमान स्थापित करने वाले बड़े भाई लोग अभी भी बचपन इन्ज़्वाय कर रहे हैं अब इससे अधिक पूछियेगा !

अनुराग : जी नहीं पूछते.. लेकिन " बहुत खूब...उत्तम " कहने वाले लोग क्या इसलिए ज्यादा है की लिखने वाले भी आत्म-मुग्ध है? आलोचना स्वीकारते नही ? या वास्तव में एक "विजन" की कमी है? स्वस्थ विचारधारा का अभाव है?
डा. अमर : आत्ममुग्ध ??? यहाँ अपनी सैकड़ा पोस्ट के शीर्षक तक याद नहीं.. और भाई लोग अपनी पोस्टों के लिंक इस तरह फर फर उवाचते हैं..कि मर जाने को जी चाहता है...शर्म से !

आलोचना की बात पर 27 मार्च की चिट्ठाचर्चा पर कविता जी और मेरी नोंक-झोंक देख लीजिये और उनकी मज़बूरी भी जान लीजिये.. फिर पूछियेगा ! चिट्ठाकारी के इस आमोद-प्रमोद युग में विज़न की बात बेमानी है !

स्वस्थ विचारधारा का अभाव तो नहीं है.. किन्तु यहाँ भी स्वस्थ विचारधारा मीडिया की तरह मायोपिया के शिकार हैं ..


अनुराग : मसलन ?
डा. अमर : तुमने कहाँ फँसा दिया, कुश ? मसलन जाकर खुद ही देख .. मैं तो ब्लागजगत से कई हफ़्तों से दूर था अधिक से अधिक चिट्ठाचर्चा.. पर इस चुनावी माहौल में नेता से अधिक तो ब्लागर टर्रा रहे होंगे वह भी इतनी सीट उतनी सीट.. ये पीएम कि वो पीएम..किसको चिन्ता है पार्टी एज़ेन्डा क्या है और कौन अपने में कितना ईमानदार है


अनुराग : तो आपको क्या लगता है.. हिन्दी ब्लोगिंग की शैशव अवस्था कितनी लम्बी है ?..
डा. अमर : यह शैशव अवस्था बनी रह्ननी चाहिये..इसके लाभ भी तो देखो.. जैसे भारत को गरीब बनाये रख चाँदी कट रही है, आप भी काटो ! अलबत्ता यह कहूँगा.. कि हिन्दी ब्लागिंग की मूँछ की रेख निकल रही है, देखते नहीं कि बात बेबात मूँछ की लड़ाई छिड़ा करती है !
ऎई कुश हँसो नहीं.. खतरे में जाओगे !


अनुराग : कुश तो वैसे ही निपट लेंगे खतरों से.. आप ये बताइए कि ऐसा क्यों है कि ६००० चिट्ठो में केवल ६० पठनीय है ? क्या वे सब हम तक पहुँच नही पा रहे है या गुणवत्ता में निरंतरता का अभाव है
डा. अमर : आप ६१ पढ़िये कौन रोकता है ? वैसे यह बता दूँ कि ६००० का आंकड़ा भारत सरकार के प्रगति के आँकड़ों से ज़्यादा कुछ नहीं जहां तक गुणवत्ता का प्रश्न है.., मैं नहीं मानता.. मैं तो रैन्डमली चिट्ठे चुनता हूँ.. और १० में से तो निराश नहीं ही करते

अनुराग : जैसा आपने कहा.. अघोषित खेमे यहाँ भी है ..सार्थक बहसों का अभाव भी ....बुद्दिजीवी इनसे कटते है ...ओर बाकी लोग अपने निजी सरोकार से ऊपर नही उठते क्या अभिव्यक्ति हो पा रही है ? आपको क्या लगता है कुछ जरूरी बहसे....कुछ विचार विमर्श क्या यहाँ देखने को मिले है ? या सिर्फ़ उनकी उम्र २४ घंटे ही है !
डा. अमर : गुटबाजी ;क्यूं नहीं? और यह स्वाभाविक है। पड़ोस के 10 अबोध बच्चों को लेकर मजा कराने निकलता हूं। और इंदिरा गार्डेन तक पहुंचते पहुंचते वह चाउमीन गुट, समोसा गुट, मम्मी ने मना किया है गुट में बंट जाते हैं।

और अनुराग यार तुम गुट को लेकर परेशान रहा करो। निर्गुटों का भी तो एक गुट है अभिव्यक्ति हो पा रही है.. बस उसी स्तर पर.. जैसे नये नवेले कवि महोदय अपना कविता संग्रह बगल में दाब कर लोगों को बाँटते फिरते हैं ।आप उल्टा पुल्टा कर अच्छा है.. अति-उत्तम कह उसे रख लेते हैं

जिसकी जितनी उम्र हो.. या वह रखना चाहे.. वैसे दो तीन दर्ज़न कालजयी लेख यहाँ भी हैं ! पुराने मुल्लों से प्याज़ की तरफ़ लपक पड़ने की उम्मीद क्यों भई ?
उनके जैसा बनो.. अघाये हैं, डकार भी लें तो एक पोस्ट निकल पड़ेगी !
हमारे जैसे नये मुल्ले तो प्याज़ तलाशते रहते है..प्याज़ से बिना अंडे का आमलेट बनाने की कला सीखो ! मेरे ट्रेन का टाइम हो रहा है, कुश !

कुश : जी बिलकुल आपका ज्यादा समय नहीं लेंगे.. पर पर चलने से पहले देखते है हम सब के चहेते समीर लालजी जो अभी हमारे साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग से जुड़े है.. उनका क्या कहना है आपके बारे में..
समीर लाल उवाच
डॉ अमर से यूँ तो बहुत दिनों से चिट्ठे पर आलेख और टिप्पणियों के माध्यम से संपर्क रहा
. उनका बेबाकीपन, साफगोई और अख्खड़पन हमेशा ही भाता रहा. जो कहो, साफ कहो वरना मत कहो की निति पर चलते वो कब सबके चहेते ब्लॉगर हो गये, लोग जान भी पाये.

फिर उनसे फोन पर चर्चा का दौर शुरु हुआ और ईमेल के माध्यमों से बातचीत
. जो बात लेखन में, वही ईमेल में और वही का वही फोन पर. एकदम साफ, सीधी और सच्ची बात. इतनी सच्ची कि शायद अक्सर लोगों को बुरी लग जाये या उनका होता काम रुक जाये पर उस हरफनमौला मस्त बाबा को इसकी फिकर कहाँ?
मेरी नजर में जहाँ उनके यह सारे गुण तारीफेकाबिल हैं
, वही उन्हें आज की इस विंडोड्रेसिंग वाली दुनिया के लिए मिसफिट बना देती है. ऑड मैन आउट.

मैं अब सिर्फ उनके लेखन का बल्कि उनका भी मुरीद हूँ और बस, एक ही सलाह देने की चाहत रह रह कर मन में टीस पैदा कर देती है कि कह दूँ क्या-यार, कुछ तो बनावटीपन सीखो..वरना कैसे चलेगा!!

लेकिन चुप रह जाता हूँ कि चल तो रहा ही है!!!

मेरी असीम शुभकामनाऐं इस अल्लहड़ बिंदास लेखक ही नहीं, इंसान को!!


डा. अमर : बहुत बहुत शुक्रिया समीर भाई.. एई मेजबानों तुम दोनों कितने सरप्राइज़ लेकर बैठे हो एक के बाद एक धुरंधरो को लेकर रहे हो.. कॉफी के साथ ये सब भी मिलेगा ये तो अपुन को पता नहीं था.. पर बहुत ही बढ़िया लगा..

कुश : जी डा. साहब हमें भी बहुत ख़ुशी हुई आपने हमें अपना समय दिया.. बहुत बहुत धन्यवाद् आपका.. साथ ही शिव कुमार मिश्र, अनूप जी और समीर लाल जी का भी बहुत बहुत आभार.. अपना अमूल्य समय देने के लिए..

अनुराग : टोस्ट विद टू होस्ट के पहले गेस्ट आप है ये हमारी और से एक गिफ्ट हैम्पर..
डा. अमर : शुक्रिया.. वैसे है क्या इसमें ? कही किताबे तो नहीं..
क्या करूँगा किताबें लेकर ? इसी को पढ़ कर तो जग मुआ..
पाठक यदि ढाई आखर दें तो बेहतर, वरना कुश के बैग पर मेरी नज़र टिकी है.. शब्द गिरते हैं.. वह उठा कर पोस्ट बना लेते हैं, काम की यही एक चीज है, यहाँ !

तो दोस्तों ये था हमारा टोस्ट विद टू होस्ट का पहला एपिसोड एक जिंदादिल सख्शियत डा अमर कुमार जी के साथ.. कैसी लगा आपको कॉफी का ये खुमार.. जरुर बताईएगा.. फिर मिलेंगे जल्द ही अगली कॉफी के साथ.. तब तक के लिए नमस्कार..

फर्स्ट लुक ऑफ़ काफ़ी विद कुश सीजन 2

नमस्कार दोस्तो..

जानता हू कॉफी क़ी महक कब से आ रही है.. पर कॉफी नही आ रही है.. आपको भी लग रहा होगा कि इतना टाइम क्यो लग रहा है.. अब क्या करे आचार सहिता लग चुकी है.. ऊपर से सारी पुलिस फोर्स नेताओ के पीछे लग गयी है.. इसी चक्कर में पल्लवी जी भी कही नज़र नही आ रही.. तो भैया जब आई पी एल पर गाज गिरने का चानस है तो कॉफी के बारे में क्या कहे..

फिर हमारे मेहमान भी तो दमदार है.. उनकी सिक्योरिटी का भी तो ख्याल करना पड़ता है..


खैर ये तो रही मस्ती मज़ाक वाली बात पर वाकई में थोड़ी देरी इस वजह से भी हो रही है कि डा. अमर कुमार जी जो की हमारे मेहमान है, उनकी माताजी का स्वास्थ कुछ दिनो से ठीक नही है.. इसलिए वे समय नही दे पा रहे है .. हमारी यही कामना है कि जल्द से जल्द उनकी माताजी का स्वास्थ ठीक हो और वे हमे समय दे..

नया ले आउट तो आ ही चुका है ज़रा बतलाते जाइए.. और किस तरह से सुधारा जा सकता है.. सुझाव तो आपके बनते ही है.. तब तक यदि आप कोई प्रश्न पूछना चाहते है या फिर कोई आइडिया देना चाहते है.. तो इसी पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में दे सकते है.. आपके सभी सुझाव या सवाल इसी पोस्ट में शामिल किए जायेंगे.. मैं और डा. अनुराग बने रहेंगे आपके साथ.. आपकी किसी भी प्रकार के प्रश्नो का उत्तर देने के लिए और आपके सुझाओ का स्वागत करने के लिए..

तब तक के लिए नमस्कार