कॉफी विद कुश.. (चौथा एपिसोड)

नमस्कार दोस्तो,
स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के चौथे एपिसोड में.. आज के जो हमारे मेहमान है वो ब्लॉग जगत की ऐसी हस्ती है, जिनसे शायद ही कोई अपरिचित हो.. नये हिन्दी ब्लॉग्स लाने की एक मुहिम छेड़ रखी है इन्होने.. विदेश में रहते हुए भी ये हिन्दुस्तान के दिल में रचे बसे है.. दुनिया के किसी भी कोने में ये पलक झपकते ही जा सकते है होकर के सवार अपनी.. ऊडन तश्तरी में.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू ब्लॉग ऊडन तश्तरी क लेखक 'श्री समीर लाल जी' की ..



कुश : समीर जी, स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में! सबसे पहले तो ये बताइए कैसा लगा आपको यहा आकर?
समीर जी : बिल्कुल वैसा ही, जैसा आपको मेरे आने से लग रहा है. आप बताईये न!! आपको कैसा लग रहा है.

कुश : ओहो आप तो बड़े मूड में लगते है,
उड़नतश्तरी बड़ा दिलचस्प नाम है.. अशोक पांडे जी का कहना है की समीर मतलब हवा और उड़नतश्‍तरी तो है ही हवा में उड़नेवाली तश्‍तरी। क्या इसीलिए आपने भी अपने ब्लॉग का नाम उड़न तश्तरी रखा या कोई खास वजह अपने ब्लॉग का ये नाम रखने की ?
समीर जी : अनजान ख्वाबों की बेलगाम उड़ान के लिए इससे बेहतर वाहन और कौन सा हो सकता था.. बढ़ते वजन को लम्बे समय तक ढो सकने के लिहाज से भी यही वाहन उचित लगा. इसीलिए रख लिया और तो कोई खास वजह नहीं थी.


कुश : आपको तो हर कोई पसंद करता है अब आज आप बताइए आप ब्लॉगर्स में किसे पढ़ना पसंद करते है ?
समीर जी : हम्म!! मुझे मालूम था कि यह प्रश्न तो जरुर ही पूछा जायेगा. परिवार के किस सदस्य को आप कम या ज्यादा प्यार कर सकते हैं. सबकी अपनी अपनी कुछ खास विशेषताऐं हैं और सबका अपना विशिष्ट स्थान है मेरी इस बड़ी सी काया के छोटे से दिल में.. अच्छा हुआ, आपने यह नहीं पूछा किसे पसंद नहीं करते हैं? बहुत छोटी सी खास लिस्ट थी मेरे पास, मगर अब नहीं बताऊँगा और जबाब की तरह ही, प्रश्न बदलना अलाऊड नहीं है इस खेल में.

कुश : आपकी प्रोफाइल में लिखा है "समीर लाल की उडन तश्तरी... जबलपुर से कनाड़ा तक...सर्रर्रर्र... " उड़न तश्तरी के इस सफ़र के बारे में बताइए ?
समीर जी : जबलपुर की मिट्टी में पला बढ़ा हूँ. वहाँ की गलियाँ, सड़कें, दीवारें सब मुझे मेरी अपनी लगती हैं. जिन्दगी के सफर में चलते चलते न जाने कब कनाडा में आ गिरा कि अरर्र..अरर्र...करने का तक मौका नहीं मिल पाया-तब सरर्र..सरर्र ..ही कहलायेगी ऐसी स्पीड तो, जिससे मैं जबलपुर से कनाडा आ गया.


कुश : क्या वजह है की आप रहते कनाडा में है और लिखते भारत की बात है ?
समीर जी : किसी ने सही ही कहा है कि आप भारत से भारतीय को तो बाहर ला सकते हैं मगर एक भारतीय में से भारत नहीं निकाल सकते.यही वजह भी है कि कलम तो कनाडा में चलती है मगर बात भारत और जबलपुर की ही होती है.


कुश : बिल्कुल दुरुस्त फरमाया आपने! इसी बात पे लीजिए आपकी कॉफी, बताइए कैसी लगी?
समीर जी : वाह, बहुत बेहतरीन! आनन्द आ गया. (रेडीमेड टिप्पणी का एक नमूना)


कुश : हा हा हा!, बचपन में की गयी कोई शरारत जो अब तक याद हो?
समीर जी : ढ़ेरों हैं-शरारतें ही शरारते हैं. बताने में तकलीफ तो तब होती जब आप पूछते कि बचपन में कोई कायदे का सलीके से किया गया काम?? सुनिये: स्कूल जाने की उम्र में अभी एक साल बाकी ही था मगर बड़े भाई को और दीदी को जाता देख मैं रो रो कर जिद्द करता कि मैं भी जाऊँगा.. तब हम रावतभाटा, राजस्थान में रहते थे..(जी हाँ, बेजी का शहर) मगर तब न तो बेजी थी(वो तो पैदा ही नहीं हुई थी), अब हमसे ज्यादा अच्छा लिखती है तो हमसे बड़ी थोड़े न हो जायेगी. रहेगी तो छोटी ही) और न हम लिखते थे, तो पहचान नहीं थी. छोटी जगह..सब एक दूसरे को पहचानते थे इस लिये स्कूल की हेड टीचर पीटर मैडम नें मम्मी से कहा कि भेज दिया करो. हम भी स्कूल जाने लगे बड़े भाई के साथ. पीटर मैडम की कुर्सी के पीछॆ बैठा खेलता रहता और वहीं जमीन पर दूध पीकर सो जाता बीच क्लास में. एक दिन उनकी कुर्सी के पीछे बैठे बैठे उनकी साड़ी के पल्ले के, जो कुर्सी के पीछे लटक रहा था, सारे सलमे सितारे, जो शायद मुझे बहुत लुभावने लगे होंगे(क्यूँकि आज भी लगते हैं), धीरे धीरे करके उखाड़ लिए. उनको पता भी नहीं लगा. क्लास खत्म होने पर बड़ी मासूमियत से उन्हें सौंप भी दिये. पूरे एक मुट्ठी इक्कठे किये थे. वो सर पकड़ कर बैठ गई..हाय!! उनकी इतनी मंहगी साड़ी..क्या पता कितनी मंहगी थी मगर अगले दिन से हमारा स्कूल जाना बंद हो गया.


कुश : कैसे स्टूडेंट थे आप ?
समीर जी : किसके नजरिये से पूछ रहे हैं आप? खुद के हिसाब से तो बेहतरीन सुपर डुपर शाईनिंग स्टूडेंट, मास्साब के नजरिये से महा बदमाश, जो कभी सुधर ही नहीं सकता और रिजेल्ट के दृष्टिकोण से स्कूल में मिडियॉकर, कालेज में अच्छा और सी ए में सुपर, साढे तीन साल में ही पास कर लिया था सी ए जो हमारे समय में सबसे कम अवधि होती थी जिसमें आप पास कर सकते थे.


कुश : सुना है आप राजनीति में भी रहे थे?
समीर जी : जी हा!! सी ए करते हुए बम्बई में स्टूडेंट एसोसिएशन की नेतागीरी भी खूब की. जनरल सेक्रेटरी रहे और बाद में पैनल लड़वाई. शिव सेना से भी जुड़ा फिर कांग्रस में मूव कर गया, नेतागीरी में महत्वाकांक्षा धारकों की एक स्वभाविक प्रक्रिया के तहत..यूथ कांग्रेस, बड़ी कांग्रेस, चैम्बर ऑफ कामर्स आदि में बहुत सक्रियता से जुड़ा रहा.


कुश : गणित की क्लास में अप्लिकेशन देकर छुट्टी लिया करते थे आप ?
समीर जी : हैन्ड राईटिंग अच्छी थी और गणित कमजोर. तो बस अंग्रेजी में एक छुट्टी की अप्लिकेशन नोट करके रख ली थी. लिखकर मास्साब को पकड़ा देते, हिन्दी मिडियम में पढते थे तो मास्साब भी अंग्रेजी में अप्लिकेशन देखकर सोचते रहे होंगे कि पिता जी से लिखवा कर लाया है, हमेशा सफलतापूर्वक बिना शक सुबहे के छुट्टियां ली. फिर क्या, दिन भर खेलना, तालाब में दोस्तों के साथ तैरना और मटर गश्ती.


कुश : कभी स्कूल भी बंक किया है आपने ?
समीर जी : खूब किया, मगर ११ वीं में आकर. उसके पहले तक बड़े भाई साहब जो मात्र १ साल बड़े थे मगर जो कि जरुरत से ज्यादा शरीफ और थोड़ा सिरियस टाईप के वाकई बड़े थे, उनके रहते कभी बंक नहीं मार पाये. खूब सिनेमा देखा स्कूल से भाग भाग कर. उनके स्कूल से निकलते ही हम बादशाह हो गये और फिर ११वीं के बाद हम बी कॉम करने लगे और वो इन्जिनियरिंग करने राउरकेला चले गये..


कुश : जब स्कूल से भाग कर जाते थे तो कभी पकड़े नही गये आप?
समीर जी : स्कूल से भाग कर मूवी जाते तो लोग समझ न पायें कि स्कूल से भाग कर आयें है तो बस्ते में कॉपी किताब की जगह उस दिन दूसरी शर्ट पेन्ट रख कर ले जाते थे.


कुश : सुना है कालेज में बेस्ट अटेंडेन्स का अवॉर्ड भी जीता आपने ?
समीर जी : कालेज में भी हमारी बादशाहत कायम रही. कॉलेज की तो ३ साल की सारी अटेडेंस एक डाक टिकिट के पीछे नोट की जा सकती है , फिर भी जगह खाली बच ही जायेगी. साईकिल स्टैंड से लेकर रजिस्ट्रार ऑफिस तक के बाबू सब सेट रहते थे, उनकी मेहरबानियों से बेस्ट अटेडेंस का अवार्ड भी ले आये. याने अवार्ड लूटने के हम शुरु से शौकिन थे.


कुश : पहली बार सिनेमा में फिल्म कब देखी आपने ?
समीर जी : पहली बार तो छुटपन में स्कूल की तरफ से, नीली हॉफ पेन्ट और सफेद कमीज पहनकर, सारे बच्चे लाईन में लगकर पूरा स्कूल से सिनेमाघर तक पैदल (५-७ मिनट का रास्ता था) जागृति फिल्म देखने ले जाये गये थे. ११ वीं में जब बंक मारना शुरु हुआ तो पहली सिनेमा चाचा भतीजा (धमेन्द्र और रणधीर कपूर वाली) देखी..फिर तो अमिताभ और रेखा की फिल्म लगे और हम पहले दिन पहले शो में हाजिर न रहें तो समझो फिल्म बॉक्स ऑफिस में ही पिट गई. वहीं से रेखा से इश्क का आगाज हुआ.


कुश : साइकल बहुत चलाते थे आप ?
समीर जी : खूब चलाई और जम कर चलाई. कितनी चलानी है यह इस पर निर्भर रहता था कि जिस लड़की की साईकिल के पीछे पीछे जा रहे हैं, वो कहाँ तक जाती है. खुद का तो कोई कार्यक्रम ही नहीं रहता था. निपट फुरसतिया. फिर कॉलेज में सेकेन्ड ईयर से सुवेगा मिल गई थी. शायद घर वालों को शाम को हमें कॉलेज से थका हारा लौटते देख दया आ गई होगी.


कुश : सुना है आप आम तोड़कर खाते थे, कभी पकड़े नही गये?
समीर जी : ११ वीं बोर्ड एक्जाम की तैयारी चल रही थी. रात भर पढ़ाई चलती. १-२ बजे रात सारे दोस्त घूमने निकलते चुपके से.हमारा मित्र संजीव नहीं आता था साथ में. बहुत डरता था अपने पिता जी से. एक मेहता जी थे और उनके घर पर आम के पेड़ पर आम खूब लदते थे मगर दिन भर उनके पिता जी निगरानी करते और हम ललचाई दृष्टी से देखकर मन मसोस कर रह जाते. एक रात उनके घर में बाऊन्डरी वाल कुड कर हम सब आम तोड़ने घुसे. संजीव हमेशा की तरह साथ नहीं था और मैं गैंग का सरगना. न जाने कैसे, पत्तों की खड़ खड़ से या किसी और सुरसुराह से मेहता जी जाग गय और चिल्ला कर बोले. कौन है, बे!! सब के सब भागे..मगर मैने भागते समय चिल्ल दिया कि संजीव, भाग!!!..बस, फिर मेहता जी ने पीछा नहीं किया और अगले दिन संजीव को उसके पिता जी ने खूब मारा. उसके बाद संजीव हम लोगों के साथ रोज रात को चुपके से आ जाता. बिना आये भी मार तो पड़ ही चुकी थी फिर आनन्द काहे खोना. :)



कुश : सुना है बचपन में जादू टोना भी किया है आपने?
समीर जी : हा हा हा! एक बार मोहल्ले के एक परिवार ने रावण बनाने का चंदा नहीं दिया. हम सब बच्चों ने उन्हें मजा चखाने के लिए रात में उनके दरवाजे पर एक नारियल, हल्दी, कुमकुम, चूड़ी टूटी हुई, चावल के दाने और एक अगरबत्ती आधी जली हुई गोबर में गड़ा कर रख कर चले आये. सुबह उनके यहाँ हाहाकार मच गया. उन्होंने सोचा कोई टोना टोटका कर गया. फिर उन्होंने हवन पूजन करवाया और बाल भोज आयोजित किया. हम सब दोस्तों ने खूब जम कर प्रसाद और बाल भोज दबाया और खूब हंसे. इससे कहीं सस्ते चंदा देकर छूट जाते वो... :)


कुश : पहली बार किस पर दिल आया था ?
समीर जी : पहली बार तो बहुत ही बचपन में पड़ोस की लड़की पर दिल आ गया था. कक्षा दूसरी या तीसरी में रहा हूँगा..किसी को पता ही नहीं चला,यहाँ तक की उसको भी. बहुत गोरी थी इसलिये मैंने भी मूँह दूध की मलाई लगा कर बहुत प्रयास किया कि गोरा हो जाऊँ मगर मायूसी ही हाथ लगी दोनों जगह. एक तो उसके पिताजी का ट्रांसफर हो गया तो वो चली गई और दूसरा, हम जरा भी गोरे नहीं हो पाये. जस के तस...आज तक.


कुश : आप बचपन से ही इतने पतले थे या इसके लिए कठिन परिश्रम किया है?
समीर जी : बचपन से ही अपनी उम्र के हिसाब से हमेशा मोटा रहा. बहुत छोटे में लोग मुझको गाल खींच खींच कर खिलाते थे.. ...गब्दू गब्दू--क्यूट क्यूट!! अल्ल्ले ले..मेरा ब्लैक रोज..और न जाने क्या क्या कह कर. खैर, तब मैं गोद में खेला करता था तो कह गये...कोई बात नहीं.. अब कह कर देखें जरा. पूरा लेख लिख कर हंसाते हंसाते ऐसी खिंचाई करुँगा उड़न तश्तरी पर कि जमाना याद रखेगा.


कुश : बचपन में किस बात से डरते थे आप ?
समीर जी : अरे, हम काहे का किसी से डरते. लोग डरते थे जी हमसे. बस एक बात का डर रहता था कि किसी बदमाशी की खबर घर न पहुँच जाये पिता जी तक. हालांकि मार ज्यादा मम्मी से खाई मगर डर पिता जी से ही लगता था.


कुश : पिताजी का मिज़ाज़ कैसा था ?
समीर जी : बहुत ही मजाकिया और उनके सेन्स ऑफ ह्यूमर के लिये अपने पूरे विभाग के चहेते अधिकारी रहे और बहुत नाम कमाया.मगर हम दोनों भाई उनके गुस्से से डरते भी बहुत थे और समय समय पर मार भी खाई.


कुश : लिखने का शौक कब से हुआ?
समीर जी : नियमित लेखन तो अभी दो ढ़ाई साल से करने लगे. उसके पहले १० या १२ साल की आयु में बच्चों वाली तीन चार कहानियाँ लिखीं और उस वक्त पर बाल स्तंभों में छपी भी. मगर फिर चरम बदमाशी, फिर पढ़ाई, सी ए की प्रेक्टिस और साथ ही नेतागीरी के चक्करों में समय ही नहीं निकला कि इस तरफ देखा जाये. कनाडा आने के इतने सालों बाद अब छिपा शौक फिर से उभरा है.


कुश : कभी ना भुलाया जा सकने वाला पल ?
समीर जी : जीवन के कई वाकये ऐसे हैं जो आज भी एकदम ताजे अंकित हैं मानस पटल पर दृश्य दर
दृश्य.उन्हीं में से एक है जिस रात मेरा रेजेल्ट आया और मैं सी ए पास हो गया. घर पर कोई था नहीं, सब घूमने गये थे. एक दोस्त ने बम्बई से फोन करके बताया था. मैं अकेला ही बड़ी देर तक बिना संगीत के फोन के पास ही नाचता रहा मूँह से डींग डांग बजाते हुए और नाच जाकर तब रुका जब घर वाले लौट आये.


कुश : कौनसी डिश देखकर मूह में पानी आ जाता है ?
समीर जी : कसटर्ड
..मेरी कमजोरी. बस, मैं इसे देख रोक नहीं पाता और यही वजह है कि हमारे घर में इसका बनना बहुत कम होता है कि कहीं और मोटा न हो जाऊँ. यह उनकी साकारात्मक सोच है. कई बार पत्नी को समझाया कि मुर्दे पर क्या नौ मन माटी और क्या दस मन माटी. मानती ही नहीं.


कुश : कुछ ऐसा भी है जो खाना पसंद नही ?
समीर जी : सी फूड, पता नहीं क्यूँ उसका टेस्ट और उससे उठती महक कभी झेल ही नहीं पाया. बाकी तो सब चल जाता है. कुछ दिन पहले तक बताता था कि लौकी, तुरई, करेला बहुत पसंद है मगर कुछ लोगों ने बताया कि यह सब पसंद आना बुढापे में शुरु हो ही जाता है, तब से नाम लेना बंद कर दिया. क्यूँ सब्जी के नाम के कारण अपनी जवानी पर तोहमत लगवायें.


कुश : आप हमेशा से विदेश में बसना चाहते थे ?
समीर जी : बसना?? हम तो आज भी इसे सरायी पड़ाव मानते हैं. जितनी जल्दी संभव हो पायेगा, घर लौट जायेंगे. उसी श्रृंखला की पहली कड़ी थी पिछली बार का छः मासी भारत प्रवास

कुश : आप बीन भी बड़ी अच्छी बजाते है.. ये हुनर कहा से सीखा ? पहली बार लाईव पॅर्फॉर्मेन्स कब दी आपने?
समीर जी : कलम से तो मौके के हिसाब से सारे ही वाद्य बजा लेते हैं फिर बीन क्या चीज है मगर असलियत में ताली छोड़ कोई अन्य वाद्य नहीं बजा पाते. कभी ऑरकेस्ट्रा में बांगो ड्रम बजाया करते थे. अब तो जमाने से उसे छुआ भी नहीं.


कुश : ताली से याद आया.. वॉशिंग्टन में हुए कवि सम्मेलन में आपने ताली पर एक कविता सुनाई थी.. हम उसका वीडियो यहा देते है.. आप कुछ बताइए उस कवि सम्मेलन के बारे में ?




समीर जी : मेरे गुरु, गाईड और भ्राता प्रियवर राकेश खण्डॆलवाल जी ने उस कवि सम्मेलन में बुलवाया था. बड़ा ही सक्सेसफुल और अविस्मरणीय रहा. लोगों द्वारा खूब सराहना मिली. अब तो फिर फिर बुलाये जाने लगे हैं. राकेश जी का बहुत स्नेह मिलता रहा है हमेशा.


कुश : आपकी एक पोस्ट थी वर्ड वेरिफिकेशन के बारे में "टिप्पणी कर और
गाली खा" उसके बारे में क्या कहेंगे..
समीर जी : "टिप्पणी कर और गाली खा" एक संदेशात्मक पोस्ट थी और बाकि सारे ताने बाने उसके इर्द गिर्द काल्पनिक बुने गये थे. उसका उद्देश्य मात्र हास्य हास्य में लोगों को यह बताना था कि वर्ड वेरिफिकेशन की हिन्दी में कोई उपयोगिता नहीं है. मॉडरेशन लगा लेना ही समस्या का समाधान है. वर्ड वेरिफिकेशन से मात्र टिप्पणी करने में तकलीफ बढ़ जाती है और हम जैसे टिप्पणी पीरों के लिए काम तो बढ़ता ही है.


कुश : आपकी नज़र में एक सफल ब्लॉगर बनने के लिए क्या ज़रूरी है?
समीर जी : सफलता के सबके अलग अलग मापदण्ड हैं किन्तु मेरे विचार में आप खूब पढ़ें, किताबें पढ़ें, पत्रिकाऐं पढ़े और बस इमानदारी से अच्छा और नियमित लिखते जायें, फालतू की बेवजह बहसों में न पड़ें, थोड़ा समय तो लगता है पर धीरे धीरे आप सफल हो ही जायेंगे.


कुश : आप सबका उत्साह बढ़ाते हैं, वाह, बहुत बढ़िया आदि कह कर. क्या ऐसा सिर्फ ब्लॉग पर ही है या निजी जीवन में भी इसी तरह लोगों का उत्साह बढ़ाते हैं?
समीर जी : अरे, यह तो बचपन की आदत है, छूटती ही नहीं. एक वाकया सुनाता हूँ-स्कूल में नौवीं या दसवीं कक्षा में हिन्दी की क्लास में मास्साब मैथली शरण गुप्त की पंचवटी पढ़ा रहे थे. जैसे ही उन्होंने दो पंक्तियां पढ़ी-चारु चन्द्र की चंचल किरणें.......-मैं क्लास में बोल उठा, वाह वाह, बहुत खूब, एक बार और. बस, फिर क्या था, ऐसी बेंत से पिटाई हुई कि कई दिन तक दर्द रहा. आज भी जब किसी की कविता पर लिखता या कहता हूँ कि वाह वाह, बहुत खूब..एक बार को पिटाई याद आ जाती है.


कुश : कुछ हफ़्तो पहले आपके भारत आगमन पर आप कई ब्लॉगर्स से मिले थे कैसा रहा ये अनुभव ?
समीर जी : उन अनुभवों को शब्दों में बांधना शायद अनुभवों की मिठास को कम करना होगा
. अलग अलग शहरों में ७५ से ज्यादा ब्लॉगरों से मिला. आनन्द का सागर बह निकला. कभी न भूलाये जा सकने वाला अति सुखद अनुभव रहा.


कुश : आपने एक पोस्ट में "रीता" का ज़िक्र किया था, उनके बारे में बताना चाहेंगे?
समीर जी : आह्ह! किस रग पर हाथ रख दिया आपने..रीत्त्त्ताआआ!!! हाय!! रीता का तो क्या बताऊँ वो तो....!!! अरे अरे, एक मिनट..एक मिनट!! यह आप कॉफी पीने बुलवाये हैं कि घर में बीबी से पिटवाने का इन्तजाम करवाने. ख्याल आ गया समय पर..वरना हम तो धारा प्रवाह में बताने ही जा रहे थे.. अब जाग गया हूँ, संभल कर जबाब दूँगा तो सुनिये..फॉर रिकार्ड..काल्पनिक चरित्र है. यही छापियेगा. क्यूँकि यह इन्टरव्यू बीबी जरुर पढेगी...आप इतनी डुगडुगी जो पीट चुके हैं कि आ रहा है ..आ रहा है...सरर्र...सरर्र..


कुश : देखा जाता है लगभग हर नयी पुरानी ब्लॉग पर समीर जी की टिप्पणी होती है? इतना समय कैसे निकलते है? क्या इसमे भी आप वही "१.३० घंटे मे ५० चिट्ठे मय टिप्पणी निपटायें" वाली नीति अपनाते है..
समीर जी : पूरा राज तो क्या खोलें, कुछ तो बंद पिटारा रहने दें मगर सत्य यह है कि मात्र चार घंटे सोता हूँ..इस वजह से पढ़ने लिखने का समय बहुत मिल जाता है. अतिरिक्त कोशिशें तो करनी ही होती हैं मगर एक प्रयास जरुर रहता है कि जो भी पढूँ उस पर उपस्थिती जरुर दर्ज करा दूँ. प्रोत्साहन की तो हमें और सभी को जरुरत रहती है और टिप्पणियाँ उसी का काम करती हैं.


कुश : राजेश रोशन जी ने अपनी पोस्ट में आपको ब्लॉग जगत का सचिन तेंदुलकर कहा.. क्या कहेंगे आप इस बारे में ?
समीर जी : इस बारे में तो क्या कहें! राजेश जी हमारे शुभचिंतक है और हमारे प्रति स्नेह रखते हैं तो इस तरह कहते हैं. सभी मित्रों से ऐसा ही स्नेह मिलता रहता है. कितने ही प्रियवर हम पर लिख चुके, बड़ा अच्छा लगता है. बस, एक ही प्रयास रहता है कि सबका स्नेह ऐसे ही बना रहे इसलिए और ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है कि उनकी अपेक्षाओं पर कुठाराघात न हो जाये और मैं खरा उतरुँ. हर बार कुछ बेहतर करने का हौसला इन्हीं सब बातों से तो मिलता है.


कुश : अच्छा ये बताइए की अगर आपको हिन्दी ब्लॉगर्स को लेकर शोले फिल्म बनाने को कहा जाए तो आप कौनसा किरदार किसे देंगे ?
समीर जी : हा हा!! बड़ा ही रोचक प्रश्न है. तीन किरदार तो फिट हैं. ठाकुर बनाऊँगा ज्ञानदत्त जी को, सूरमा भोपाली पंगेबाज और हम डबल रोल में, एक तो अंग्रेजों के जमाने के जेलर खुद बन जाऊँगा और दूसरा कालिया. मौसी हमारी घूघूति जी. बाकी के सारे किरदारों को अभी सिक्रेट ही रखते हैं वरना घमासान मच सकती है. यहाँ तक की सारे डाकुओं के घोड़े, धन्नो, वो मालगाड़ी जिससे जय वीरु की एन्ट्री होती है, सब हिन्दी ब्लॉगर्स में से ही लिए जायेंगे.


कुश : अब चलते है हमारे पाठको के सवाल की तरफ..
साधना भाभी जी से आपकी पहली मुलाकात कब और कैसे हुई ? - लावण्या जी
समीर जी : एक हसीन लम्हे में दिल के दरवाजे पर घंटी बजी और दरवाजा खुलते ही वो दाखिल हो गई..दाखिल हुई तो ऐसी कि स्थापित ही हो गई.


कुश : आप सोच कर लिखते हैं या लिख कर सोचते हैं? - नीरज जी
समीर जी : बस, लिख कर लोगों को सोचने के लिए मजबूर करते हैं.


कुश : समीर जी को ख़ुद को एक शब्द में बताये ? - रंजू जी
समीर जी : हा हा!! इतनी बड़ी काया..और एक शब्द में समेटना चाहती हैं. कई वाल्यूम का ग्रंथ बन जायेगा वो एक शब्द. पक्का आप मजाक कर रही हैं.


कुश : यदि समीर जी को कोई सवाल पूछना होता तो वे क्या पूछते? - घुघूती जी
समीर जी : आपसे?? तब पूछता-कैसे लिख लेती हैं इतना बेहतरीन आप?


अब वक़्त है रॅपिड फायर राउंड का.. इन दोनो में से कोई एक चुनना है आपको

कुश : जबलपुर - कनाडा
समीर जी : जबलपुर


कुश : पतली आवाज़ - पतली कमर
समीर जी : पतली आवाज...जिसे सुनकर पतली कमर बल खा जाये.


कुश : समीर लाल - ऊडनतश्तरी
समीर जी : ऊड़नतश्तरी


कुश : अरुणा रॉय - लवली कुमारी
समीर जी : लवली अरुणा (एक हमारी मास्टरनी हैं html पढ़ाती है और दूसरी प्योर कवियत्री-दोनों अपनी अपनी जगह विशिष्ट हैं इसीलिए दोनों का नाम लेना पड़ा-वरना मास्टरनी जी छड़ी दिखाती और अरुणा का पुलिसिया डंडा तो पड़ता ही पड़ता)


कुश : बीवी - बच्चे
समीर जी : बीबी याने पहले आज के खाने का तो जुगाड़ हो जाये फिर बुढ़ापे में बच्चों से कह देंगे कि कुश से टाईपो हो गई थी.

कुश : चलिए शुरू करते है अब हमारा वन लाइनर राउंड.. आपको एक लाइन में जवाब देना है

कुश : लालू प्रसाद यादव
समीर जी : राजनिति का जादूगर


कुश : शिव कुमार मिश्रा
समीर जी : मेरे प्रिय अनुज एक बेहतरीन इन्सान एवं उच्च दर्जे के व्यंग्यकार


कुश : वर्ड वेरिफिकेशन
समीर जी : स्पीड ब्रेकर


कुश : टिप्पणी
समीर जी : ब्लॉग का च्यवनप्राश.


कुश : कुश की कॉफी
समीर जी : मजेदार बखिया उधेडू कॉफी-नार्को वाला ट्रूथ सीरम-पी कर सब सच उगल दो.

अब वक़्त है हमारी खुराफाती कॉफी का. हम आपसे पूछेंगे कुछ खुराफाती सवाल जिसके जवाब भी आपको खुराफात से देने होंगे..

कुश : अगर आपको भारत की महँगाई कम करनी हो तो क्या करेंगे ?
समीर जी : महँगाई को उड़न तश्तरी में बैठा कर मंगल पर भेज देंगे.


कुश : ऊडन तश्तरी को अगर बच्चा हो तो उसका नाम क्या होगा ?
समीर जी : ऊडन कटोरी


कुश : अगर मल्लिका शेरावत आपसे आपका मोबाइल नंबर माँगे तो?
समीर जी : ऑफिस का नम्बर दे दूँगा. मोबाईल तो बीबी भी उठा लेती है कभी कभी.


कुश : अगर कभी सचमुच में कोई ऊडन तश्तरी आपके घर उतार जाए तो ?
समीर जी : भाग खडा होऊँगा

कुश : दूल्हा हमेशा घोड़े पर ही क्यो बैठता है ?
समीर जी : गधे पर गधा कैसे बैठ सकता है, इसीलिये!


कुश : चलते चलते कुछ और सवाल..
हिन्दी ब्लॉगजागत का भविष्य कैसा देखते है आप?
समीर जी : सुनहरा..बड़ी तेजी से हम उस ओर बढ़ रहे हैं


कुश : हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहना चाहेंगे आप?
समीर जी : सब आपसी स्नेह बनाये रखें. मजेदार अच्छा लेखन नियमित करते रहे. खूब पढ़े, खूब लिखें और हमेशा ध्यान रखें कि हमें और बेहतर करना है हर बार


कुश : आप यहा आए और हमारे साथ कॉफी शेयर की.. ये वाकई बहुत बढ़िया अनुभव रहा.. ये लीजिए हमारी और से एक गिफ्ट हेम्पर और साथ में ये कुछ सलमे सितारे..
समीर जी : सलमे सितारे तो पीटर मैडम को दे दूँगा और गिफ्ट हैम्पर को एक सुखद यादगार बना कर दिल की अल्मारी में सजा लेता हूँ. बहुत आभार, आपने हमें आमंत्रित किया और तबीयत से बखिया उधेड़ी. बहुत शुभकामनाऐं.

तो दोस्तो ये था हमारा 'कॉफी विद कुश' का चौथा एपिसोड समीर जी के साथ.. उम्मीद है आपको पसंद आया होगा.. ज़रूर बताईएगा कैसा लगा आपको इस बार का एपिसोड.. अगले सप्ताह फिर मिलेंगे हम इसी जगह पर हिन्दी ब्लॉग जगत के एक और ब्लॉगर के साथ तब तक के लिए.. नमस्कार!

60 comments:

रंजू भाटिया said...

:) मजा आ गया सुबह सुबह इसको पढ़ कर .जैसा सोचा था कि हँसते हँसते होगा बुरा हाल वही हुआ ..रीटा की कहानी नही सुन पाने का अफ़सोस हुआ :).. बहुत सही रहे कुश जी आपने सवाल भी .जवाब उस से ज्यादा बेहतरीन..

कामोद Kaamod said...

bahut achhaa lagaa ..
hasee par control karte hue padte gayeee:)

chavannichap said...

agar guest ka naam sheershak mein den to pathkon ko sahooliyat hogi.
http://www.chavannichap.blogspot.com/

Rajesh Roshan said...

पढ़ते हुए बीच-बीच में हंसी आती रही। बस इसी हंसी के लिए लोग आपको पढ़ते हूं। और समीर जी ऐसा है इन सवाल-जवाब में आपने एक बात गड्मड् कर दी..
आपने कहा चेहरे पर दूध मलाई लगाते थे, एकदम झूठ। आप लाते होंगे चेहरे पर लगाने के लिए लेकिन दूध मलाई पेट में चला जाता होगा। ऐसा सभी का मानना है।
और यह सलमा सितारा का शौक तो दिखता है, आपके पोस्ट के साथ कमेंट में भी।

रही बात मेरे सचिन तेंदुलकर कहने की तो मैं सोच रहा था कि आपसे पूछ कर लिखूं लेकिन फिर लगा आपके बारे में लिखते हुए इतना छूट मैं ले सकता हूं। आप सच में हिंदी ब्लागिंग के सचिन तेंदुलकर हैं। आपको ढेरों बधाई।

Rajesh Roshan said...

एक बात और अगर यह पोस्ट कमेंट्स का रिकार्ड तोड़ दे तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।

CG said...

अर्रे वाह! समीर जी ने तो बचपन में शरारतों पंगेबाज जी के भी कान काटे हैं. धन्यवाद कुश इस पोस्ट को बनाने के लिये.

annapurna said...

मुझे कुछ-कुछ अंदाज़ा था कि नर्सरी में दुद्दू पीकर बीच क्लास में सोते थे होगें…

nadeem said...

और समीर जी को इनके द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा. एक बात और अच्छा हुआ आप ने राजनीति छोड़ दी वरना लालू यादव जी को टक्कर देने वाला सशक्त और हाजिरजवाब एक और नेता होता :)

nadeem said...

समीर जी के बारे में काफी कुछ जानने को मिला और आम वाला किस्सा वाकई शरीफों को सुधरने के लिए टोनिक होगा. कम से कम बिना ग़लती के पीटने से अच्छा है ग़लती करके पीटो :) .

आलोक साहिल said...

कुश जी,नमस्कार.
आपकी काफ़ी के विषय में बहुत सुना था,आज इसका स्वाद भी चख लिया समीर जी के माध्यम से.बहुत ही कड़वी काफ़ी है गुरु,कमबख्त! एक घूंट क्या पि सारा का सारा अंदर का मलबा(सच) बाहर.लाजवाब
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous said...

:);) aare samir ji to bahut shrarti thay bachpan mein,salma sitare wali bahut ;) bahut achhi lagi aur aam churane wali baat ha ha bahut khub.sameer ji ki kalam ki tarah hi unka inteview bhi bahut badhiya raha.sahi haste haste pet dard ho raha hai:):)

सुशील छौक्कर said...

जी मजा आ गया। इनके बारे मे और भी जानने को मिला। बीच बीच में हमारे होठ भी खुले। ऐसे ही महान लोगो को बुलाते रहीये।

श्रद्धा जैन said...
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श्रद्धा जैन said...

aap waqayi kamaal hai
Ranjana ji ke sawal ka jwaab aisa aap hi de sakte the
aapki yahi style to bahut bhati hai

shukriya Kush ji apane sameer ji ko yaha laaye aur hum sabko kuch hanste hue lamhe diye

Abhishek Ojha said...

ये मुलाकात अति मजेदार रही... काफी विथ कुश... सुपरहिट... रिकोर्ड तोड़ !

Shishir Shah said...

kushbhai...bahot hi mazedar...aur sameer ji ki baaton mein aise to kho gayhe ki hum ahmedabad mein baithe baithe canada pahunch gaye the via jabalpur...bada maza aaya udan tashtari mein safar ka...

Advocate Rashmi saurana said...

bhut accha laga sameerji ko jankar. aap ka bhut bhut aabhar.

दीपक कुमार भानरे said...

Sameer ji se mulakat bahut achi lagi. ek UFO ke tarah rahasmayi the. aaj rahasy se parda utha hai. vahut jinda dil vyaktitva hai.

Shiv said...

हमेशा की तरह बहुत शानदार एपिसोड. देखकर मन प्रसन्न है. (और पढ़कर भी...समीर भाई से अपने बारे पढ़कर...)

Alpana Verma said...

वाह, बहुत बेहतरीन! आनन्द आ गया.
sach mein bahut anand aaya--
Sameer ji pranaam!
aap se mil kar bahut achcha lga.

Video ne jaise interview ko sajeev hi kar diya..

one line wale reply to bahut majedaar they---

saara interview enjoy kiya aur Sir ke baare mein jaana--
bahut bahut badhayee Kush excellent interview ke liye-

ghughutibasuti said...

गजब !
घुघूती बासूती

दिनेशराय द्विवेदी said...

धन्यवाद, कुश जी। नम्बर दो की बातें उगलवाने के लिए।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जब अकेले बैठे ,
"कोफी वीथ कुश" पे
समीरजी से बातचीत :
पढते हुए ठहाका लग जाये
तब ..
"उडनतश्तरी का जादू " ही
जलवागार होता है ! :-)
बहुत मज़ा आया ..
सारे सवाल / जवाब
एकदम फुल ओफ लाएफ लगे -
मेरा सवाल पूछने का शुक्रिया -
समीर भाई से अनुरोध है कि साधना भाभी जी से मुलाकात पर भी अवश्य लिखेँ ..
यादगार पोस्ट बनेगी !
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या

डॉ .अनुराग said...

गोया की .....बस पढ़ रहे है ओर मुस्करा रहे है.....तश्तरी को तो खैर अभी बहुत उड़ना है पर समीर जी एक साथ इतनी टिपण्णी कैसे चिपियाते है वो राज गोल कर गये....वर्ड वेरिफिकेशन की उनकी सलाह भी ब्लोग्गर्स ने शायद सुनी नही ...काश उनकी बात ओर भी लोग सुनते ......अभी दुबारा पड़ेगे ओर फ़िर टिपण्णी करेंगे.....आज का दिन थोड़ा व्यस्त रहा

Ashok Pandey said...

वाह, बहुत मजा आया पोस्‍ट पढ़ने में। बेहतरीन इंसान से बेहतरीन मुलाकात। समीर भाई की हाजिरजवाबी ने तो हंसा कर लोटपोट कर दिया। वो दूल्‍हे वाली बात तो हमेशा याद रहेगी-
''कुश : दूल्हा हमेशा घोड़े पर ही क्यो बैठता है ?
समीर जी : गधे पर गधा कैसे बैठ सकता है, इसीलिये!''
आंखें नम करनेवाले क्षण भी आये-
''आप भारत से भारतीय को तो बाहर ला सकते हैं मगर एक भारतीय में से भारत नहीं निकाल सकते.''
कुश जी इस मुलाकात के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद।

Gyan Dutt Pandey said...

इतने बड़े समीरलाल जी से इतना सारा उगलवाया सिर्फ एक कप कॉफी पिला कर।
भैया इतना मस्त इण्टरव्यू तो काफी की फुल टंकी डिजर्व करता है! :)

Priyesh said...

mazaa aa gayaa interview padhkar janaab!!!!!!

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत ही मजेदार इंटरव्यू, समीरजी और कुश दोनों को ही बहुत बधाई। हंसते-हंसते पेट दर्द हो गया।

Manish Kumar said...

इस बार आपके प्रश्न ज्यादा विविधता लिए हुए रहे जिससे इस साक्षात्कार को पढ़ना और रोचक लगा। ये आगे भी बरकरार रहे।

डा. अमर कुमार said...

मैं तो समीर भाई की दूरदर्शिता पर मोहित हूँ !

जोरदार मसाला साथ लाये थे, लगता है
काफ़ी तो थी कुश की, चटपटा नमकीन समीर भाई का !

पूरे इंतज़ाम से तशरीफ़ लाये..और ख़ूब छाये ।


भई वाह !

मीनाक्षी said...

सोच रहे हैं कभी स्कूल से बंक करते पकड़े नहीं गए और वह भी 11वीं बोर्ड की क्लास में...वैसे ज़िन्दगी का मज़ा शरारतों में ही है... कुश जी आपका आभार जो अब हमारी कॉफ़ी भी आपकी कॉफी के साथ ही शुरु होती है.

Anonymous said...

दो बार पढ़ते पढ़ते लिंक लेकर समीर भाई की पुरानी पोस्ट पर घूमने चला गया. अब तीसरी बार नीचे तक पहुचा.
आनददायक पोस्ट रही.

Anonymous said...

समीर जी के साथ कॉफी अच्छी लगी।

नीरज गोस्वामी said...

समीर भाई अपनी कथा में कितना सच बोले हैं कितना झूट ये तो पता लगना मुश्किल है लेकिन शिव के बारे में वो बिल्कुल सच बोले हैं. जैसे वो दीखते हैं वैसे ही जवाब दिए हैं उन्होंने...मजेदार रहा ये एपिसोड..आने वाले लोगों की राह मुश्किल बनाता हुआ...बेंच मार्क जो इतना ऊंचा कर दिया है उन्होंने.
नीरज

Tarun said...

Kush,
maja aa gaya hajir javab sameerji ke lajavab javab parkar. Bahut bahut dhanyvaad.

Sajeev said...

भाई वाह ये तो काफी विथ कारन से भी बढ़िया है, आपके सवाल दमदार थे और समीर जी के तो क्या कहने, जब राजेश जी ने तन्दुलकर कह दिया तो अब हम क्या कहें

Ghost Buster said...

कुश जी, ये एपिसोड तो बेहतरीन रहा. वैसे समीर जी को बकलमखुद पर और भी डिटेल में पढने की इच्छा अभी बाकी है.

Anil Pusadkar said...

babak bindaas aur bemisaal bhi

सतीश पंचम said...

अच्छी जानकारी दी, सलमा सितारे वाले हादसे अवाक कर गऐ :D मजेदार इंटरव्य़ू।....

संजय शर्मा said...

"अनजान ख्वाबों की बेलगाम उड़ान के लिए बेहतर वाहन !"
"बहुत छोटी सी खास लिस्ट "
(रेडीमेड टिप्पणी का एक नमूना)
क्लास में जमीं पर सोना , सलमे सितारे को मुट्ठी में भर लेना . क्लास में १००% उपस्थिति की व्यवस्था .स्कूल कॉलेज ,सी.ए. और अबतक चढाव ही चढाव .कनाडा से बढ़िया भारत , भाग संजीव भाग ! कुल मिलकर बहुआयामी
व्यक्तित्व से मिलना हुआ कुश की बदौलत ! साधुवाद ! साथी .
बचपने की शरारत प्रौढावस्था को साधुआ जाती है .

संजय बेंगाणी said...

आपतो सुपर स्टार को ले आये, इस अंक में. हिट तो होना ही था.


समीरलालजी के बारे में जानते थे, अब और ज्यादा जान लिया.


एक टेस्टी कॉफि सा अंक, मजेदार.

राज भाटिय़ा said...

कुश भाई मे तो आप को सीधा साधा समझता था, अरे आप तो गुरु निकले,, बहुत अच्छा लगा सब पढ कर धन्यवाद

meeta said...

achchi pahchan karwai hamari samir ji se......sochte hai kabhi tumhara bhi interview lena padega....socho kya kya puchenge tumse hum.... :P

Abhijit said...

udan tashtari kaafi rochak thi aur aapke mushkil sawalon ke baach se srr.....srrr....karti hui nikal gayi.

Bahut badhiya interview aur ab agle episode ke intezaar me

Arvind Mishra said...

आनंद आ गया .शुक्रिया !

अजित वडनेरकर said...

ओहो हो...पोल खोलती काफी बैठक
पर खुल न सकी कुछ ज्यादा...
पिछली कड़ियों जैसी ही मज़ेदार रही ये मुलाकात भी। बधाईजी....

pallavi trivedi said...

bahut maza aaya padhkar....sawaal bhi mazedar, jawab bhi mazedar. khaaskar salma sitare wali baat zordar rahi....

Batangad said...

समीरजी के ब्लॉग पर आई टिप्पणियों की तरह यहां भी रिकॉर्ड।
वैसे समीरजी की सबसे बड़ी खासियत ये कि जबलपुर से कनाडा ही सर्र ... सराते नहीं पहुंचे। इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला और कृष्णा कोचिंग के खजांची लाल यादव तक इन्हें पता हैं।
खैर, इस इंटरव्यू के बाद एक कॉमन बात पता चली कि हमारे जैसे इनकी भी राजनीति में रुचि थी। चलिए जब चुनाव लड़ना होगा बताइएगा।

बलबिन्दर said...

मुर्दे पर क्या नौ मन माटी और क्या दस मन माटी ...
वाह वाह, बहुत खूब, एक बार और

Anonymous said...

पढ़ कर एक अजीब सी अनुभूति हुई

अनूप शुक्ल said...

ये टिप्पणी ५१ वी हैं। सो साधुवाद!

सुजाता said...

52 वीं टिप्पी हमारी भी स्वीकार होवे । बहुतै बढिया रहा एपिसोड !

पारुल "पुखराज" said...

humara no 53---sameer ji aap bahut se javab gol mol kar gaye:) ...bahut badhiya rahaa..ye episode bhi

कंचन सिंह चौहान said...

Parul Ki bato se sahamat hu.n... samir ji ne sabko khush rakhne ki koshish ki...aapke udarvaad ko naman

Mohinder56 said...

समीर जी
कुश जी का धन्यवाद की उनकी बजह से हम आपके बारे में इतना कुछ जान पाये. और आपके दिये जबाबों की भी प्रशन्सा करे बिना नहीं रह सकते बहुत ही सलीके से चटपटे जबाब दिये जो आपकी हाजिरजबाबी का नमूना हैं.

Nitish Raj said...

वाह! कुश जी, मज़ा आगया। बहुत चुनिंदा सवाल आपने रखे, इस से पता चलता है आपके होमवर्क का। समीर जी ने जवाब भी उसी अंदाज में दिए जिस अंदाज में हम उन्हें जानते हैं।

राकेश जैन said...

lotpot kar dia ...!!!!!!

नीला आसमान said...

बहुत गोरी थी इसलिये मैंने भी मूँह दूध की मलाई लगा कर बहुत प्रयास किया कि गोरा हो जाऊँ मगर मायूसी ही हाथ लगी दोनों जगह. एक तो उसके पिताजी का ट्रांसफर हो गया तो वो चली गई और दूसरा, हम जरा भी गोरे नहीं हो पाये. जस के तस...आज तक.
hahahaha ;)..mast baati ki kush aur sameer ji na..padh kar dil garden garden hogaya...
:) :)

samagam rangmandal said...

vah! lo g yaha bhi tippaniyo ki bauchhar...jai jabalpur....nice blog keep it up

प्रवीण त्रिवेदी said...

और भी जानने को मिला ..... ऐसे ही महान लोगो को बुलाते रहीये!!!

कुश जी, मज़ा आ गया। बहुत चुनिंदा सवाल आपने रखे!!!

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