नमस्कार दोस्तो..
एक बार फिर हाज़िर है हम कॉफी विद कुशमें एक और ब्लॉगर के साथ.. जी हा दोस्तो इस बार हम आपको मिलवा रहे है.. 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार, कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा जी से.. तो बस आप लोग भी कॉफी हाथ में लेकर बैठ जाइए.. और लुत्फ़ लीजिए इस मज़ेदार इंटरव्यू का.. तो आपका ज़्यादा वक़्त ना लेते हुए.. मैं बुलाता हू श्री शिव कुमार जी को..
कुश : नमस्कार मिश्रा जी स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में.. कैसा लगा आपको यहा आकर?
शिव जी: धन्यवाद कुश. बहुत बढ़िया लग रहा है. कितने दिनों की साध आज जाकर मिटी. असल में जब भी दूसरों को तुम्हारी काफ़ी पीकर मस्त होते देखा, यही बात मन में आती थी कि पता नहीं कब पीने का मौका मिलेगा? और देखो कि आज तुमने बुला ही लिया. बहुत खुश हूँ. जल्दी से काफ़ी मंगाओ.
कुश : जी बिल्कुल! ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
शिव जी : वाह लाजवाब.. वाकई मज़ा आ गया..
कुश : सबसे पहले तो ये बताइए की ब्लॉगिंग में कैसे आना हुआ आपका?
शिव जी : ये तो मज़बूरी की वजह से हुआ. हम कहीं जा नहीं पाते. हम केवल आने के आदी हैं. लिहाजा ब्लॉग-जगत में आना लगा रहता था. ज्ञान भइया ने ब्लॉग बनाया था और हम वहां टिप्पणी करने आते थे. फिर एक दिन उन्होंने कहा कि ब्लागिंग में आ जाओ. मैंने सोचा टिप्पणी करने आते ही हैं. ब्लागिंग करने भी आ जाते हैं.
कुश : पांडे जी के साथ साझा ब्लॉग बनाने की ज़रूरत क्यो महसूस हुई?
शिव जी: साझा ब्लॉग बनाने की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि मुझे कुछ पता ही नहीं था ब्लागिंग के बारे में. ज्ञान भइया को तब तक कुछ-कुछ पता हो गया था. उन्हें लगा कि वे भी साथ रहेंगे तो टेक्निकल बातें बता सकेंगे. फोटो लगाना, पोस्ट सजाना वगैरह मैं नहीं कर पाटा था.
वैसे एक और बात है. हमदोनों हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास में अमर होना चाहते थे. हमें इस बात की ललक थी कि हमारा ब्लाग इतिहास में हिन्दी के प्रथम साझा (मतलब दो लोगों का) ब्लॉग के रूप में दर्ज हो.
कुश : अगर आपको एक और जोड़ी ब्लॉग बनाने का मौका मिले तो किसके साथ बनाएँगे?
शिव जी : नीरज भइया (नीरज गोस्वामी जी) के साथ.
कुश : बचपन के बारे में तो हमने सबसे सवाल किए है.. ये बताइए आपका बचपन कायस गुज़रा?
शिव जी : गुजरा कहाँ? वो तो हमने गुजार लिया. गुल्ली-डंडा, हॉकी और क्रिकेट वगैरह खेलकर और थोड़ी पढाई करके. हमें बचपन गुजारने का बड़ा शौक था. जब छोटे थे तो हमेशा यही सोचते कि कब बड़े होंगे? उस समय इस बात का रोना है. अब इस बात का रोना है कि कभी छोटे नहीं हो सकेंगे. इंसान का जीवन रोने के लिए ही बना है.
कुश : आप सारी शराराते अपनी ब्लॉग पर ही करते है या बचपन में भी करते थे?
शिव जी : लोगों ने हमें शरारती नहीं समझा कभी.. हमारे ऊपर अच्छे बच्चे होने की तोहमत लगा दी. वैसे शरारतों के नाम पर हम लोगों के बगीचे से आम तोड़ लेते थे.. कभी-कभी किसी के घर पर चढ़ी हुई ककड़ी की बेल पर बैठी ककड़ी तोड़ लाते थे.. गाँव में रहने वाला बच्चा शरारतों के मामले में बड़ा गरीब होता है. हाँ, कभी-कभी किसी से मार-पीट कर लेते थे..
क्रिकेट भी खेलते थे तो गाँव के मैदान में. मैदान में इतनी जगह कि गेंद भी खुश रहती थी. बड़ा पछतावा होता है कि बचपन में क्रिकेट खेलकर किसी के घर की खिड़की का शीशा नहीं तोड़ सके..
कुश : बचपन में किस बात से डर लगता था?
शिव जी : अंधेरे से.. गाँव का मकान ऐसा था कि द्वार और घर के आँगन के बीच एक बड़ा सा हाल था. शाम होने के बाद जब भी उससे गुजरते थे तो डर लगता था.
कुश : आपके छोटे भाई साहब ने स्वेटर के बारे में प्रश्न पूछने को कहा है? ज़रा बताइए उस बारे में..
शिव जी : मेरा छोटा भाई दार्जिलिंग गया था. वहां से मेरे लिए एक स्वेटर ले आया था. मुझे देते हुए बोला; "किसी ख़ास दिन पहनना इसे." स्वेटर बहुत पसंद था मुझे. जिस दिन मैं अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने घर से सुबह-सुबह निकला, उसदिन मैंने वो स्वेटर पहन लिया.
जब मैं अपनी शादी के बारे में उसे बता रहा था तो मुझे लग रहा था कि शादी के बात सुनकर वो भौचक्का रह जायेगा. लेकिन मेरी बात सुनकर हंसने लगा और बोला; "मुझे मालूम है. तुमने मेरा दिया हुआ स्वेटर पहना उसी दिन मुझे पता चल गया था." उसकी ये बात मैं कभी नहीं भूलता..
कुश : दोस्तो की नज़र में शिव कुमार मिश्रा कैसे है?
शिव जी: मैं दोस्तों से पूछने का रिस्क नहीं उठाता. कभी नहीं पूछता कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि सबकुछ ढंका-तुपा रहता है. गलतफहमी दोनों की नहीं टूटती. न दोस्तों की और न मेरी.
कुश : दुर्योधन की डायरी के बारे में बताइए?
शिव जी : एक दिन आफिस में बैठे हमलोग एक रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करने के बारे में सोच रहे थे. जिस तरह से रीयल इस्टेट के दाम बढे हैं, उसके बारे में चर्चा करते हुए मैंने कहा; "दुर्योधन ने पांडवों के पाँच गाँव देने की मांग शायद इसलिए ठुकरा दी थी कि इन पाँच गावों में एक गुडगाँव भी था." मेरी इस बात विक्रम और सुदर्शन खूब हँसे. ये कोई चार बजे की बात होगी. और मैंने उसी दिन करीब एक घंटे बाद पहली बार दुर्योधन की डायरी - पेज ३३५० लिखा. उसके बाद लिखते गए.
कुश : दुर्योधन के अलावा और भी किसी की डायरी है आपके पास?
शिव जी : नहीं, डायरी तो नहीं है. हाँ एक दिन मैंने ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की डायरी के कुछ पेज जरूर पढ़ लिए थे. उसमें जो कुछ पढने को मिला था उसे मैंने अपनी एक पोस्ट में छापा था.
कुश : हाल ही में आपको मिली जेंटल मैन की उपाधि के बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : क्या कहें, कुश? मानव शरीर धारण किया है तो उपाधियों से बच पाना मुश्किल काम है. वैसे भी मेरा जेंटलमैनत्व को प्राप्त होना अनूप भइया को नहीं सोहाया और उन्होंने अपनी कानपुरी व्याख्या से साबित कर दिया कि जेंटलमैनी एक छलावा है. नतीजा ये हुआ कि जेंटलमैनी एक दिन में ही टें बोल गयी.
कुश : आपकी पोस्ट का एक किरदार 'सुदामा' बहुत लोक प्रिय हुआ.. उसके बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : बड़े बेचारे किस्म के इंसान थे सुदामा जी. लेकिन जब से उन्होंने गुरुदेव का सिलिंडर ब्लैक किया है, वे मानवीय समर्थता की अद्भुत ऊंचाई पर पहुँच गए हैं. अब तो क्लर्क से लेकर पत्रकार और पीएच डी के स्टुडेंट तक बन जाते हैं. ठीक उसी सहजता से जैसे हिन्दी फिल्मों का हीरो कुछ भी बन सकता है. सुदामा अब बहुत आगे निकल चुके हैं. फरीदाबाद तक.
कुश : राजेश रोशन जी के ब्लॉग पर एक जुमला लिखा था.. उस पर आपने एक पोस्ट भी लिखी, उस बारे में बताइए?
शिव जी : अब पोस्ट लिख ही दी तो और क्या नया बताऊँ, कुश? वैसे मेरा मानना है कि किसी को छोटा कह देना उचित नहीं है. और अगर आप उस उस इंसान के बारे में केवल उसके लेखन से जानते हैं तो कोई भी जजमेंट पास करना अच्छी बात नहीं. खैर, मुझे अब राजेश रोशन जी से शिकायत नहीं है. उनका सेंस ऑफ़ जजमेंट शायद उन्हें यही करने को कहता है.
कुश : क्या ये सच है की बाल किशन जी जब भी आपके पास आते है.. आपको कोई नया टॉपिक मिल जाता है?
शिव जी : नहीं ये सच नहीं है. सच तो ये है कि जब भी मेरे पास कोई टॉपिक नहीं होता तो मैं उन्हें अपने ऑफिस बुला लेता हूँ.
कुश : आपने एक पोस्ट लिखी थी की कुछ ब्लॉगरो ने अपनी प्रोफाइल में दर्शन शास्त्र का प्रयोग किया है.. क्या आप इसे ग़लत समझते है?
शिव जी : मैंने ग़लत नहीं समझा. वो तो लालमुकुंद जी ने ग़लत समझा था. मैंने तो केवल उनकी आपत्ति पर पोस्ट लिखी थी.
कुश : अब तक आप कितने ब्लॉगर्स से व्यक्तिगत रूप से मिल चुके है? क्या खास लगा आपको उनमे?
शिव जी : अभी तक मैं प्रत्यक्षा जी से, प्रियंकर भइया से, बालकिशन से, ज्ञान भइया से और मीत साहब से मिला हूँ. सभी 'जेंटलमैन' हैं. इनलोगों में सबकुछ ख़ास ही है. अगर ख़ास नहीं होता तो ये लोग ब्लॉगर कैसे बनते?
कुश : क्या आपको लगता है की ब्लॉगर्स को इस तरह से मिलते रहना चाहिए?
शिव जी : हाँ.
कुश : आप अधिकतर व्यंग्य ही लिखते है, कितना मुश्किल होता है व्यंग्य लिखना?
शिव जी : जरा भी मुश्किल नहीं है. व्यंग तो बहुत सस्ते में मिल जाता है. वैसे, इसका मतलब ये मत समझना कि मैं किसी को कम पैसे देकर व्यंग लिखवा लेता हूँ. इसका केवल इतना मतलब है कि व्यंग बिखरा पड़ा है. जहाँ देखो, व्यंग ही व्यंग है.
कुश : ब्लॉगर्स में किसके व्यंग्य आप ज़्यादा पढ़ते है?
शिव जी : अनूप शुक्ल जी, आलोक पुराणिक जी, पल्लवी जी और नीरज बधवार के. मुझे एक बात अच्छी नहीं लगती कि काकेश जी आजकल नहीं लिखते.
कुश : अधिकांश ब्लॉगरो को आपसे टिप्पणी ना मिलने की शिकायत रहती है?
शिव जी : नहीं. किसी ने मुझसे शिकायत नहीं की. एक दिन एक ब्लॉगर बता रहे थे कि अच्छा है जो आप मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करते. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि एक पोस्ट पर आपने सबसे पहली टिप्पणी की थी. नतीजा ये हुआ कि उसपर और कोई टिप्पणी नहीं आई.
कुश : ब्लॉगिंग में आपके लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है?
शिव जी : ब्लागिंग के टेक्निकल आस्पेक्ट की जानकारी. करीब एक साल तीन महीने बाद पिछले महीने ही मैंने लिंक लगाना सीखा.
कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत की क्या खास बात लगी आपको?
शिव जी : यही कि इस जगत में सब हिन्दी में लिखते हैं और हिन्दी में पढ़ते हैं.
कुश : ब्लॉग पर कुछ लिखते समय आप क्या ध्यान में रखते है?
शिव जी: टिप्पणियां. पिछली पोस्ट में जितनी मिली थीं, उतनी मिलेंगी तो? हे भगवान एक ज्यादा दिला देना.
कुश : किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करना कितना ज़रूरी है?
शिव जी : हम अभी पाठक ढूंढ रहे हैं. दूसरी बात ये कि अभी शुरुआती दौर में है हिन्दी ब्लागिंग. बहुत सारे लोगों को इसके टेक्निकल आस्पेक्ट्स नहीं मालूम हैं. ज्यादातर लोगों के पास जानकारी नहीं रहती कि उनके ब्लॉग पर कौन लोग आए. ऐसे में अगर टिप्पणियां मिल जाएँ तो लिखने वाले को थोड़ी राहत मिलती है कि लोग उसका लिखा हुआ पढ़ रहे हैं.
नए आए लोगों का हौसला बढ़ाना बहुत ज़रूरी है. और कुछ पढने के बाद अगर अच्छा लगा तो क्या अच्छा लगा, ये बता देना एक अच्छा काम है.
कुश : आजकल आपके नाम पर बहुत चिट्ठिया भी आ रही है?
शिव जी : लोग चिट्ठी लिखना भूल गए थे. मुझे चिट्ठी लिखकर लोग चिट्ठी लिखने की नेट प्रैक्टिस कर रहे हैं. वैसे, मैंने अगर जवाब देने का मन बना लिया तो थोड़ी प्रैक्टिस मेरी भी हो जायेगी.
कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा देखते है आप?
शिव जी : भविष्य तो उज्जवल ही दिखाई देता है. हमें अपनी भाषा में कुछ कहने का मौका मिल रहा है. हम कोशिश करके अच्छा लिखें तो मामला आगे बढेगा. हाँ, ये बात ज़रूर है कि लिखनेवाले और पढने वाले, दोनों मेच्योर्ड हो जाएँ तो बहस वगैरह चलाने का औचित्य रहेगा. अगर तीन-चार लोग जो एक-दूसरे को जानते हैं, बहस चलायें तो ऐसी बहस का कोई ख़ास मतलब नहीं है. हाँ, अगर पाठकों की संख्या बढ़े. बहस में भाग लेने वालों की मेच्योरिटी बढ़े तो बहस चलने का मतलब बनेगा.
चलिए अब चलते है हमारे अगले राउंड की तरफ और देखते है की पाठको ने आपसे क्या सवाल किए है..
कुश : ब्लॉगजगत में इन दिनों उनकी सज्जनता की चर्चा खूब है। वे खुद से भी अधिक सज्जन किन्हीं को मानते हैं क्या, यदि हां तो किन्हें - अशोक पाण्डेय जी
शिव जी : अशोक पाण्डेय जी को. जिस देश में कई देश होने के दावे किए जा रहे हैं, और ये बताया जा रहा है कि इंडिया अलग है और भारत अलग. साथ में ये भी बताया जा रहा है कि इन्टरनेट जैसे हथियार इंडिया के हाथ में हैं. अब अगर अशोक जी ऐसे हथियार का इस्तेमाल करके 'भारत' की समस्याओं को उठा रहे हैं तो उनसे बड़ा सज्जन और कौन हो सकता है?
कुश : सिर्फ ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में ही लिखना क्यों पसंद करते हैं। क्यों सिर्फ कुछ ही ब्लॉगर्स के बारे में लिखते हैं। कुछ अलग क्यों नहीं और अकेले अकेले क्यों मीट ऑर्गनाइज करते हैं? - नीतीश राज जी
शिव जी : नहीं-नहीं नीतीश जी, ऐसी बात नहीं है. मैं ब्लागर्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखता. मैं ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में भी लिखना पसंद नहीं करता. जहाँ तक कुछ अलग लिखने की बात है तो मैं आजतक यही समझता था कि मैंने बहुत सारे विषयों पर लिखा है. खासकर हर समसामयिक मुद्दे पर. लेकिन मेरी इस गलतफहमी को नीतीश भाई ने तोड़ दिया. ग़लतफहमी टूटनी ही चाहिए. एक बार फिर से सोचने की जरूरत है.
कुश : शिव भाई, आपके शहर कलकता की सबसे प्रिय बात क्या लगती है आपको ? - लावण्या जी
शिव जी : बहुत कठिन सवाल है लावण्या जी. मुझे पूरा शहर अच्छा लगता है. सबसे प्रिय एक बात जो है वो है यहाँ के लोगों का संस्कृति के प्रति प्यार.
कुश : शिव बाबू यह बतायें कि ब्लॉगर्स के संबंध में ऐसा कौन सा प्रश्न उनसे पूछा जा सकता है जिसका जबाब देने में उनके पसीने छूट जायेंगे और उसका जबाब वो क्या देंगे? - समीर लाल जी
शिव जी : सवाल है, "ये बेनामी टिप्पणी तो तुम्हारे आई पी एड्रेस से मिली है. तुम अब भी कहोगे कि तुम बेनामी कमेन्ट नहीं करते?" जवाब होगा; "क्या समीर भाई? मैं आपकी कितनी इज्ज़त करता हूँ. मैं ऐसा लिख सकता हूँ भला? किसी ने मेरा आई पी एड्रेस चोरी कर लिया होगा."
कुश : भद्रपुरुष ने अपनी याददाश्त में पिछली अभद्रता किससे, कब और क्यों की थी"? - बस्तर
शिव जी : ये सवाल तो किसी भद्रपुरुष से है. शायद अगले एपिसोड के किसी ब्लॉगर से. वैसे कौन आ रहा है अगले एपिसोड में, कुश?
कुश : आख़िर ऎसा कौन सा यक्षप्रश्न है.. जो केवल आप पर ही लागू हो रहा है, और तुर्रा यह कि.. पूछा भी न जाये, बिन पूछे रहा भी न जाये - डा. अमर कुमार जी
शिव जी : क्या कह रहे हैं? यक्ष अभी तक है इस भूमंडल पर!
कुश : शिव के साथ व्यंगकार का टैग चिपक लिया है। वह दूर हो सकता है क्या? - ज्ञानदत्त जी
शिव जी : जी भैया, मैं प्रयासरत हू..
कुश : शिवजी, नये ब्लॉगरों को हिट पोस्टें देने के लिए क्या गुरुमंत्र देंगे? उत्तर में गीता का उपदेश नहीं चलेगा। - सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी
शिव जी : हिट पोस्ट से क्या मतलब है सिद्धार्थ जी का? हिट का मतलब ये तो नहीं कि आपने लिखा और लोग आकर उसे अपनी टिप्पणियों से हिट कर गए? टिप्पणियों की हिट से पोस्ट और ब्लॉगर दोनों धरासायी.
वैसे हिट का मतलब अगर सुपरहिट, मेगाहिट है, जैसे फिल्में होती हैं तो मैं यही सोचता हूँ कि कोई गुरुमंत्र नहीं है. कौन से पोस्ट 'हिट' जाए और कौन सी सुपरहिट, कोई नहीं जानता.
चलिए पाठको के सवाल तो बड़े दिलचस्प रहे.. अब चलते है हमारे वन लाइनर राउंड की तरफ.. और इस बार एक वन लाइनर राउंड में आपको एक लाइन में बताना है हमारे ब्लॉगर मित्रो के बारे में..
कुश : समीर जी -
शिव जी : टिप्पणी सम्राट
कुश : पांडे जी -
शिव जी : भइया.
कुश : पंगेबाज -
शिव जी : एक बेहतरीन इंसान.
कुश : बॉल किशन जी-
शिव जी : डिप्टी टिप्पणी सम्राट
कुश : पल्लवी जी
शिव जी : संवेदनशील 'हुकुम'
कुश : अनूप जी :
शिव जी : मौज सम्राट
कुश : और हम, अजी हमारे बारे में भी तो बताइए..
शिव जी : आईडिया सम्राट
अब चलते है हमारे अगले राउंड खुराफाती सवालो की तरफ..
कुश : पुलिस का फ़ोन नंबर 100 क्यो होता है?
शिव जी : इशारा है. मतलब सौ से नीचे? कभी नहीं.
कुश : खिस्यानी बिल्ली खंबा ही क्यो नोचती है?
शिव जी : बिल्ली को हर उस चीज से प्यार नहीं होता जिस चीज से कुत्ते को प्यार होता है. दुश्मनी पुरानी है.
कुश : यदि किसी दिन अंतरिक्ष से एक ऊडन तश्तरी आपके घर पर उतरे तो?
शिव जी : समीर भाई के स्वागत में पलकें बिछा देंगे. साथ में नारा....धन्यभाग हमारे जो समीर भाई पधारे.
कुश : गंजे के सर पर बाल क्यो नही होते?
शिव जी : फिसल कर गिर पड़ते हैं.
कुश : यदि आपको एक ब्लॉग को डिलीट करने का मौका मिले तो किसका ब्लॉग डिलीट करेंगे? और क्यो?
शिव जी : ऐसा सवाल मत करो. मैं एक ब्लॉग का नाम लूँगा तो बाकी के नाराज़ हो जायेंगे कि उनके ब्लॉग का नाम क्यों नहीं लिया? मैं किसी को नाराज़ नहीं करना चाहता.
चलते चलते एक और प्रश्न..
कुश : हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहना चाहेंगे आप?
शिव जी : कुश की काफ़ी पीने आईये. काफ़ी तो अच्छी है ही, कुश की 'मेहमानियत' भी अद्भुत है.
कुश : शुक्रिया शिव जी आपने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया और कॉफी पीने आए.. ये लीजिए हामरी तरफ से एक गिफ्ट हेम्पर.. घर जाकर खोलिएगा.. और अपनी अगली पोस्ट में बताएगा की क्या मिला आपको?
शिव जी : यहीं खोलने दो न यार. क्या कहा? यहाँ नहीं! अच्छा ठीक है. घर ले जाकर खोलूँगा और उसपर एक पोस्ट भी लिखूंगा.
तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का एक और एपिसोड एक बेजोड़ प्रतिभा के धनी शिव कुमार मिश्रा जी के साथ.. उमीद है आपको पसंद आया होगा.. अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे.. हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए... 'कीप ब्लॉगिंग'...
39 comments:
पहली बार पढ़ा आपको। पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे मैं ब्लॉग का पाठक नहीं, टी.वी. का दर्शक हूँ। (कॉफी विद करण का स्टारकास्ट मन में दौड़ गया।)प्रस्तुति मोहक अंदाज में थी।
लाजवाब रहा यह अंक भी, शिवजी को ज्यादा कठीन सवाल न कर कुछ राहत जरूर दी लगती है :)
बहुत मज़ा आया शिव कुमार जी से मुलाकात करके....हाज़िर जवाबी भी देखने योग्य रही!और ये तो कुश ने साबित कर ही दिया है की वे एक बेहतरीन होस्ट हैं!
शिव जी से मुलाकात मजे की रही।
शिव तो परिपूर्ण ब्लॉगर हैं। और जो लिखते हैं, उसे फोटो-शोटो की दरकार ही नहीं।
और मुझे तो बहुत गर्व है कि मेरा भाई ऐसा है।
वाह शिवकुमार जी छा गये.जैंटलमैनत्व को प्राप्त हुए व्यक्ति से मिलकर अच्छा लगा.
काकेश
काकेश जी के ना लिखने से हम भी चिंतित है.
ऑफिस में काम ज्यादा है कहकर हमें बदनाम करता है और काम कुछ करता नहीं.आप लोग कहें कि जल्दी से लोगों को उल्लू बनाना आई मीन लिखना शुरु करे.
काकेश का बॉस
रोचक सवाल रोचक जवाब ..शिव जी के बारे में जानना अच्छा लगा
जितने प्यारे सवाल उतने ही सुंदर जवाब....बहुत अच्छा लगा शिव जी मिलकर...ऐसे महसूस हुआ जैसे सामने ही बैठे हैं. थैंक्स कुश जी.
सोचा था कि सिर्फ अपने सवाल का उत्तर देखकर भाग लूंगा, फिर सोचा वहां तक तो पढ़ लो फिर तो समा कुछ यूं बंधा कि मजा आगया। कुश के बारे में मैंने पहले ही कहा है कि होमवर्क जानदार होता है। और शिव जी आपने काफी विष्यों पर लिखा है लेकिन कुछ दिन से आप मेहरबान कुछ ब्लॉगर्स बंधुओं पर मेहरबान थे उस पर लिखा और दूसरे सवाल का जवाब तो मिला ही नहीं।
masale daar ..... bilkul spicy....ye coffee hai ya kuch aur?? :P
कुश जी
आपको बहुत बधाई। आपने पाठकों के लिए नए व्यक्तित्व लेकर आते हैं। शिवकुमार जी के विचारों को जानकर अच्छा लगा। एक सरल चित्त साहित्यकार ऐसा ही होता है। हिन्दी में लिखने वाले अवश्य ही इनसे प्रेरणा लेंगें। आभार।
आप अच्छा लिखते हैं इसके लिए किसी के प्रमाण की जरुरत नही है आपको..... और मेरे इस टैग से आपको कोई फर्क नही पड़ना चाहिए..... अपना अलग अंदाज है आपका.... वैसे उस टैग को हटाने को सोच रहा हू.... अभी घर में हू.... इन्टरनेट की थोडी समस्या है.. दिल्ली आते ही एक पोस्ट के साथ उसे हटा दूंगा..... ढेरो शुभकामनाए.... आप और अच्छा लिखे और जीवन में आपको वो सब कुछ मिले जिसके आप हकदार हैं... पुनः शुभकामनाए
भाई वाह...कुश आपने शिव से मिलवा कर खुशी से सराबोर कर दिया...कुछ जवाब उनके ऐसे हैं जो सिर्फ़ वो ही दे सकते हैं जैसे की:
१.हम कहीं जा नहीं पाते. हम केवल आने के आदी हैं.
२.गाँव में रहने वाला बच्चा शरारतों के मामले में बड़ा गरीब होता है.
३.दुर्योधन ने पांडवों के पाँच गाँव देने की मांग शायद इसलिए ठुकरा दी थी कि इन पाँच गावों में एक गुडगाँव भी था.
४.सच तो ये है कि जब भी मेरे पास कोई टॉपिक नहीं होता तो मैं उन्हें अपने ऑफिस बुला लेता हूँ.(बालकिशन को)
५.यही कि इस जगत में सब हिन्दी में लिखते हैं और हिन्दी में पढ़ते हैं.
६.बॉल किशन जी- डिप्टी टिप्पणी सम्राट
७.इशारा है. मतलब सौ से नीचे? कभी नहीं.
उनकी सिर्फ़ एक बात से हमें घोर आपत्ति है, जिसे पढ़ कर पता चलता है की उनकी कथनी और करनी में कितना फर्क है. कुश भाई आप ने पूछा की"क्या आपको लगता है की ब्लॉगर्स को इस तरह से मिलते रहना चाहिए?
शिव जी : हाँ."
यदि वो हाँ कहते हैं तो बताईये हमारे इतनी बार बुलाने पर भी वो हमें मिलने खोपोली क्यूँ नहीं आए? दो बातें हैं या तो वो हमें ब्लोग्गर नहीं समझते या उनका उत्तर सही नहीं है.
मेरे साथ उनके साझे ब्लॉग की तमन्ना इश्वर जल्द ही पूर्ण करे...आमीन.
नीरज
अद्भुत साक्षात्कार था ये.
पढ़ कर आनंद आ गया.
बहुत सी बातें तो हमें भी नहीं मालुम थी शिव जी के बारे में जो अब मालूम चल गई.
सच. बड़ा मज़ा आया.
बड़े ही सहज उत्तर--जैसी उम्मीद थी --दोनो को बधायी-
Janmashtmi se ek roj pehle shiv aaye aur cha gaye.....bariya prastuti.
Sawal javab ka silsila bhi majedar reha.
tipiniya na karne ke shikayat humari teraf se bhi darj mane ;)
अच्छे रचनाकारों से मिलवाने उनके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने का आपका यह नायाब तरीका काबिलेतारीफ है.साधुवाद के पात्र हैं आप.
आपके सभी मुलाकात पाठकों को सम्बंधित व्यक्तित्व का अनोखा दिग्दर्शन कराती है.
बहुत ही अच्छा.आभार...
वाह क्या बात है, आइडिया सम्राट के सवाल और वयंग्य सम्राट के जवाब...दो सम्राटों की जुगलबंदी को धमाल तो करना ही था :)
लेकिन शिव भइया, इ सज्जनता की गेंद हमारे पाले क्यों फेंकने लगे...हम तो सवाल कर के फंस गए :)
मिश्रा जी कहियेगा की उस अतुलनीय स्वेटर की एक झलक हमें भी दिखा दे ......मुलाकात अच्छी रही ......सवालजवाब मजेदार रहे हमेशा की तरह.......सही "जेन्टल- मेन" है भाई ....
बहुत मज़ा आया शिव कुमार जी से मुलाकात करके
हम कहीं जा नहीं पाते. हम केवल आने के आदी हैं.और वो स्वेटर वाला किस्सा भी बहुत रोचक लगा
बहुत बधाई आप दोनोँ को कुश जी और शिव भाई !
मेरे सवाल का जवाब भी बडा सोचकर दिया और कितना सही :)
..हमने तो कलकत्ता देखा ही नहीँ !भद्रजन की बातेँ ही सुनी हैँ !
..और आप वहीँ के हैँ बहुत खुशी हुई इस ऐपिसोड से ..
-लावण्या
.
भाई कुश, इस इंटरव्यू से तो मुझे भी सुबहा होने लगा है, कि..
शिवभाई को ज़ेन्टलमैन से विभूषित किया जाना अनुचित नहीं बल्कि समुचित है ! अच्छा लगा.. यह इपिसोड !
शानदार, जानदार जेंटिलमैन.
छा गये गुरू,
चक दे पट्टॆ ....
शानदार मुलाकात !
जबरदस्त मुलाकात-जिसका मुझे कब से इन्तजार था. बहुत बेहतरीन रहे हमारे अनुज--और पूरे विश्वास पर खरे उतरे..आनन्द लगा दिया. शाबास-तुम(आप) दोनों को.. :)
जारी रहो और शिव भाई को अनेकों शुभकामनाऐं सदैव की तरह!!!
हम क्या टिपियाये हम तो यहा अधर मे है ना उपर ना नीचे , और ये शिव महाराज आधे मे छोडकर काफ़ी पीने चले गये , :)
शिवकुमार मिश्र की कुश के साथ मुलाकात मैंने कल ही पढ़ी। कुश की प्रस्तुति हमेशा की तरह जानदार रही। शिवकुमार के जबाब पढ़कर मैं पुलकित व किलकित हो गया। विस्मित , चकित भी हुआ लेकिन ऊ कहेंगे नहीं लेकिन अगर हैट धारण करते होते तो कलैहैं शिवकुमार को 'आफ़' कर देते।
छा गए लिखना तो गलत होगा भई क्योंकि शिव जी तो पहले से ही छाए हुए है ब्लॉगजगत पर।
लेकिन हां यह इंटरव्यू शानदार रहा।
arey bhai...ye coffee hai ya hot n sour soup???
Inke Vyangyo aur Duryodhan ki diart se hi inhe jante the abhi tak to.. aapne inke barein mein jaane ka awsar pradan kiya dhanyawaad aapka.
New Post :
मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
behtareen..kai dino se nayi post ka intezaar tha. Padhkar bahut maza aaya. Coffee with Kush aur popular ho..yahi dua hai
शिव कुमार मिश्रा जी ब्लॉगजगत के चर्चित हस्ताक्षर हैं, उनका इन्टरव्यू पढकर मजा ही आ गया। जितने रोचक आपके सवाल हैं, उससे ज्यादा मजेदार उनके जवाब।
अरे जनाब, कहाँ हैं आप? अगर आपकी कॉफी खत्म हो गयी हो तो बताइए, पर हमें किसी और ब्लॉगर से तो मिलवाइए।
Coffee with Kush"...padhke mazaa aayaa ye kehna bohothee kam lagtaa hai, par itnaa kuchh sab keh gaye hain ki har kiseeke saath sehmat hun, ye kehnaa aasan lag raha hai!
Bohot, bohot badhaee, mujh jaisee ek ek adnaa-si pathakse!
badhiya saab. coffe peekar maza aa gya
यह अंदाज तो बेहतरीन था...और आपके परिचय की वो लाइन भी...कुछ शब्द गिर गए...अच्छा लगा..फिर आऊंगा...
कुश जी
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. कायल हो गया हूँ आपका .....क्या गज़ब का इंटरव्यू लिखा है भाई. साधुवाद स्वीकार करें
कॉफी को इसी तरह से गरमाए रखिएगा ताकि स्वाद बना रहे। शिव जी से मुलाकात का आनंद लाइव रहा।
..शिव जी के बारे में जानना अच्छा लगा!!!
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